कानपुर (ब्यूरो)। आमतौर पर माना जाता है कि प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद जॉब लगना तय है। प्रोफेशनल कोर्स में एडमिशन यही सोचकर लिया जाता है कि इसको करने के बाद कैंपस प्लेसमेंट के जरिए जॉब मिल जाएगी। लेकिन शहर में बेरोजगारों की लिस्ट में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट पासआउट कैंडीडेट भी हैं। यह हम नहीं कह रहे बल्कि सेवायोजन ऑफिस मेें मिलने वाले रजिस्टर्ड बेरोजगारों के आंकड़े कह रहे हैैं। यह आंकड़े उन रजिस्टर्ड बेरोजगारों के हैैं, जिनका रजिस्ट्रेशन इस समय एक्टिव है।
बीटेक और डिप्लोमा मिलाकर 14 हजार
टोटल रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या में 14069 कैंडीडेट इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के हैैं। इनमें से बीटेक के 4896 और डिप्लोमा इंजीनियरिंग के 9173 कैंडीडेट हैैं। इसके अलावा बीबीए और एमबीए करने वालों की बात करें तो वह 1726 हैैं। यह वह हैैं, जिनको अभी तक कहीं भी जॉब हाथ नहीं लगी है। बताते चलें कि डिप्लोमा इंजीनियरिंग को इंटर पास, बीटेक और बीबीए को ग्रेजुएट और एमबीए वालों की पीजी की कैटेगरी मेें काउंट किया जाता है।
सबसे ज्यादा बेरोजगारी इंटर पास वालों की
सिटी में इंटरमीडिएट पासआउट स्टूडेंट्स सबसे ज्यादा बेरोजगार हैं। एंप्लॉयमेंट ऑफिस के पोर्टल में टोटल 149355 कैंडिडेट रजिस्टर्ड हैैं, जिसमें इंटरमीडिएट पास वालों की संख्या 70456 हैैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर 41434 कैंडीडेट्स हैैं जो कि ग्रेजुएशन कैटेगरी हैं। तीसरे नंबर पर हाईस्कूल पास 15359 कैंडीडेट हैैं। चौथे नंबर पर 13207 पीजी कैटेगरी है। सबसे कम रजिस्ट्रेशन 8897 कैंडीडेट्स का है जो कि हाईस्कूल से कम कैटेगरी में रजिस्टर्ड हैैं।
जॉब तो आई लेकिन पा नहीं पाए
सेवायोजन आफिस में लगने वाले जॉब फेयर की बात करेें तो उसमेें इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट पासआउट के लिए जॉब आई लेकिन वह अपनी काबिलियत प्रूफ न कर पाने के कारण जॉब नहीं पा सके हैैं। आफिस के आंकडे बताते हैैं कि बीते एक साल में इंजीनियरिंग बैैंकग्राउंड वालों को लगभग 1500 जॉब आफर की गई, जिसमें वह महज 500-600 जॉब ही पा सकें। इसके अलावा मैनेजमेंट पासआउट के लिए 800-850 जॉब्स आई। वह भी जॉब को पाने में फिसड्डी साबित हुए हैैं। मैनेजमेंट वालों को केवल 500 के लगभग नौकरियां ही मिली हैैं।
पैकेज और क्वेश्चंस के चलते फंसी जॉब
असिस्टेंट डायरेक्टर (सेवायोजन) उज्जवल कुमार सिंह ने बताया कि इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट बैकग्राउंड के फ्रेशर कैंडीडेट ज्यादा हैैं। अक्सर वह कंपनी के एचआर की ओर से किए जाने वाले सवालों के आंसर नहीं दे पाते या फिर मोटा पैकेज पाने की चाहत में जॉब ऑफर स्वीकार नहीं करते हैैं। जो कैंडीडेट कम पैकेज में भी ऑफर स्वीकार करके आगे बढ़ लेते हैैं वह एक्सपीरियंस की दम पर अपना पैकेज एक से दो साल के अंदर की बढ़वा भी लेते हैैं।