कानपुर (ब्यूरो)। शहर में पुलिस के कई विभाग ऐसे हैं, जो कागजों में चल रहे हैं। लेकिन असल में निष्क्रिय हो चुके हैं। यहां के अधिकारी हो या कर्मचारी आराम फरमा रहे हैं। यह बात हम यूं नहीं कह रहे हैं। इसका खुलासा पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार की जांच के दौरान हुआ है। पुलिस कमिश्नर ने आधा दर्जन विंग की गोपनीय जांच कराई तो छह महीने की वर्किंग सामने आ गई। उन्होंने रिपोर्ट बनाकर शासन को भेज दी है। वहीं, ट्यूजडे को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम ने रियलिटी चेक किया तो कई कुछ में ताला लगा हुआ है तो कहीं पर कहीं काम के नाम पर फार्मेलिटी होती मिली। फिलहाल अब ऐसे विभागों के जिम्मेदारों पर कार्रवाई की तैयारी चल रही है।

विभागों का कुछ ऐसा हाल है.

1. एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल: छह महीने से कोई केस दर्ज नहीं
पुलिस कमिश्नर ऑफिस से चंद कदम की दूरी पर और डीसीपी वेस्ट ऑफिस की बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर ये ऑफिस बना हुआ है। शहर में कई मानव तस्करी के मामले सामने आ चुके हैैं। कानपुर से टीन एजर्स को बहला फुसला कर और बरगला कर लोग ले जाते हैैं और दूसरे प्रदेशों मेंं प्रॉस्टीट्यूशन के धंधा कराते हैैं। दो साल पहले कानपुर क्राइम ब्रांच ने ओमान से कई महिलाओं की बरामदगी की थी। इसके बाद भी कमिश्नरेट की इस विंग में बीते छह महीने से कोई केस दर्ज नहीं किया गया।

2. परिवार परामर्श केंद्र: सिर्फ केस का निपटारा
परिवार परामर्श केंद्र में 8 टीमें काउंसिलिंग के लिए हैैं। जबकि इसकी प्रभारी महिला इंस्पेक्टर हैैं। कुछ दिन पहले तक ये डीसीपी वेस्ट ऑफिस के करीब होती थी लेकिन अब परिवार परामर्श केंद्र के लिए महिला थाने में एक कमरा चुना गया है। जनवरी 2024 से जून 2024 तक इस सेल के पास कुल 32 मामले पारिवारिक विवाद के आए। चार मामलों में समझौता कराया गया लेकिन इन चार मामलों में से दो मामले फिर से विवाद के बाद परामर्श केंद्र में वापस आ गए। कुल मिलाकर 6 महीने से 30 मामलों में कोई रिजल्ट नहीं निकल पाया।


3. एसआईटी थाना: ताला लगा मिला
कोतवाली में सिख दंगे में जांच, विवेचना के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी और कोर्ट तक ले जाने की जिम्मेदारी एसआईटी थाने को सौंपी गई थी। एसआईटी को टारगेट दिया गया था कि ये स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम बड़े मामलों का खुलासा करेगी। सिख दंगे की जांच को पूरा हुए और आरोपियों की गिरफ्तारी हुए एक साल का समय हो गया। इसके बाद से कोतवाली थाने में बने एसआईटी के थाने में ताला लगा हुआ है। इस विंग में पूरे थाने की तरह स्टॉफ है और सारी सुविधाएं भी थाने की तरह ही दी गई हैं, लेकिन बीते छह महीने से इस विंग ने भी कमिश्नरेट की किसी जांच में कोई हेल्प नहीं की।

वर्दी स्टोर: ऑफिस में पसरा सन्नाटा
जीटी रोड के किनारे बनी बिल्डिंग में यूं तो वर्दी स्टोर केवल वर्दी के लिए ही है। इसके अलावा लॉ एंड ऑर्डर बिगडऩे और ट्रैफिक बिगडऩे के दौरान यहां के पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगाई जाती है। यहां एक एसपी, एक डिप्टी एसपी, दो इंस्पेक्टर, चार सब इंस्पेक्टर और 22 सिपाहियों की तैनाती है। बीते छह महीने में कुंभ मेें तैनात होने वाले पुलिस कर्मियों की वर्दी के अलावा कोई दूसरा काम नहीं हो पाया। यहां पुलिस कर्मी कार्पोरेट ऑफिस की टाइमिंग के हिसाब से आते हैैं और शाम को चले जाते हैैं। यहां एसपी ऑफिस के अलावा सारे ऑफिस में सन्नाटा छाया रहता है।


आराम के लिए कराते पोस्टिंग
कमिश्नरेट में इन चार विंग के अलावा आधा दर्जन विंग और भी हैैं, जहां पुलिस कर्मी अपनी पोस्टिंग आराम के लिए कराते हैैं। शारीरिक रूप से अक्षम और जुगाड़ वालों की पोस्टिंग यहां थोड़ी मशक्कत के बाद हो जाती है। यहां पोस्टिंग होने के बाद लोग आराम से थोड़ा- थोड़ा समय बढ़वाते रहते हैैं और काम चलता रहता है।

लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन रखना चुनौती

यूपी पुलिस के बीच से निकले तेज तर्रार जवान एसएसएफ (स्पेशल सिक्योरिटी फोर्सेस) में चले गए। पांच जिलों में ये जवान तैनात हैैं। कुछ जवान अपनी मर्जी से एएनटीएफ (एंटी नॉरकोटिक्स टॉस्क फोर्स) में चले गए। बचे जवानों में एएचटीयू, परिवार परामर्श केंद्र, गल्ला गोदाम, गैस गोदाम, गुमशुदा सेल, वीआईपी सेल, एसआईटी और वर्दी स्टोर समेत एक दर्जन निष्क्रिय सेल मेें चले गए। ऐसे में जिले के लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन रखना किसी भी जिले के सीनियर ऑफिसर्स के लिए बड़ी चुनौती है।