कानपुर (ब्यूरो)। सर्दी के साथ ही सांस रोगियों की परेशानियों भी बढऩे लगी हैं। दिल्ली में छाई धुंध का असर कानपुर में भी है। ऐसे में सांस उखडऩे, अस्थमा और सीओपीडी अटैक के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। आलम यह है कि मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल में दमा, अस्थमा और सीओपीडी के पेशेंट की संख्या ओपीडी में दोगुनी से अधिक हो गई है। नार्मल दिनों में डेली ओपीडी में 250 के करीब रहने वाली पेशेंट की संख्या बढ़कर 500 से 600 के बीच में हो गई है। एक्सपटर््स के अनुसार, मौसम में उठापटक के चलते ब्रेन से स्टेरॉयड हॉर्मोंस का रिसाव प्रभावित होता है। सुबह यानी दो से चार बजे तक इसका रिसाव कम होता है, इसलिए सांस ज्यादा उखड़ती है।
कोरोना से ग्रसित होने वाले पेशेंट भी आ रहे
मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के मुताबिक, पुराने सांस रोगियों के अलावा प्रदूषण व मौसम के बदलाव ने कोरोना से ग्रसित रह चुके पेशेंट चेस्ट में इंफेक्शन की समस्या लेकर ओपीडी में आ रहे हैं। पेशेंट की संख्या को देखते हुए हॉस्पिटल में अतिरिक्त वार्ड तैयार किया गया है। जिससे गंभीर स्थिति में आने वाले अधिक से अधिक पेशेंट को ट्रीटमेंट मुहैया कराया जाए। वहीं अति गंभीर यानी की ऑक्सीजन में आने वाले पेशेंट को हैलट इमरजेंसी रेफर किया जा रहा है। क्योंकि वर्तमान में हॉस्पिटल में सिर्फ चार बेड का ही आईसीयू हैं।
धुंध और धूल बढ़ा रही समस्या
मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल के एचओडी डॉ। संजय वर्मा ने बताया कि मौसम में बदलाव के साथ सांस रोगियों की संख्या में भी परिवर्तन होता है। मई-जून के माह में टीबी की समस्या से ग्रसित पेशेंट बड़ी संख्या में ओपीडी पहुंचते हैं। जबकि, अक्टूबर के एंड से फरवरी तक अस्थमा, दमा और सांस नली और फेफड़ों में सिकुडऩ की समस्या धुंध और धूल के सूक्ष्म कणों के कारण बढ़ जाती है। ठंड की शुरुआत होने पर सांस के रोगी फॉलोअप के लिए भी हॉस्पिटल आते हैं।
हॉस्पिटल में अतिरिक्त टीम की गई तैनात
उन्होंने बताया चेस्ट हॉस्पिटल में दीपावली के बाद से अचानक सांस रोगी बढ़ जाते हैं। इसको देखते हुए हॉस्पिटल में अतिरिक्त वार्ड को खोला गया है। इसमें आक्सीजन युक्त बेड होने से गंभीर पेशेंट का ट्रीटमेंट किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हॉस्पिटल में 24 घंटे पेशेंट को एडमिट कर एक्सपर्ट की देखरेख में ट्रीटमेंट को तैनात किया गया है। जिससे गंभीर स्थिति में हॉस्पिटल आने वाले पेशेंट की लाइफ को सेव किया जा सके।
रिजर्व में रखे गए ऑक्सीजन सिलेंडर
मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल के एचओडी के मुताबिक, इस मौसम में सांस, अस्थमा के पेशेंट की संख्या काफी बढ़ जाती है। हॉस्पिटल में इमरजेंसी में आने वाले केस में 80 परसेंट पेशेंट को ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत होती है। लिहाजा ऑक्सीजन सिलेंडर की डिमांड भी बढ़ जाती है। पेशेंट की संख्या को देखते हुए ऑक्सीजन के सिलेंडर को भी रिजर्व में रखा जाता है। कई बार इमरजेंसी में एक ही दिन में दो-दो दर्जन से अधिक पेशेंट गंभीर हालत में एडमिट हो जाते हैं।
248 हुआ एएक्यूआई
सेंट्रल पाल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड के मुताबिक, मंगलवार शाम को कानपुर का एयर क्वालिटी इंडेक्स 248 पहुंच गया। यानि पुअर कैटागिरी में दर्ज हुआ। पाल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड ऑफिसर्स के मुताबिक ह्रï्यूमिटिडी बढ़ जाने के कारण एयर पाल्यूशन एटमास्फियर में ही बना हुआ है। इसी वजह एक्यूआई बढ़ गया है।
इन लक्षणों से पहचानें
सर्दी-जुकाम के साथ ही नाक से पानी बहना, सांस फूलना, ब्रेथलेसनेस (सांस छोटी होना), तेज खांसी, सांस के साथ घरघराहट की आवाज, खांसी के साथ कफ जैसे लक्षणों से इन्हें पहचान सकते हैं। गंभीर समस्याएं होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
क्यों बढ़ती है सर्दियों में समस्या
निष्ठा सिंह की मानें तो ठंडक बढऩे के साथ अस्थमा के मरीजों के लिए परेशानियां इसलिए बढ़ जाती हैं क्योंकि सर्दी के प्रभाव से सांस नलिकाओं में संकुचन हो जाता है। इससे जुकाम और कफ की समस्या होती है। कई बार नलिकाओं में इतना संकुचन हो जाता है कि नली एकदम पतली या ब्लॉक हो जाती है। ऐसे में मरीज को सांस लेने में काफी परेशानी होती है और अस्थमा अटैक का रिस्क बढ़ जाता है।
ये एक चीज हमेशा रखें पास
एक्सपर्ट के मुताबिक, अस्थमा रोगियों को इन्हेलर को हमेशा अपने पास रखना चाहिए। यही उनका सच्चा मित्र है। सर्दियों में तो खासतौर पर इसे साथ रखें क्योंकि इसके जरिए मरीज दवा को इन्हेल करता है। सांस लेने में किसी भी तरह की परेशानी होने पर आप फौरन इन्हेलर लें। इससे सिकुड़ी हुई सांस नलियां वापस अपने स्वरूप में आ जाती हैं। लेकिन इन्हेलर को लेने का सही तरीका सीख लें, ताकि आपको उसका पूरा लाभ मिल सके।
ये है इन्हेलर लेने का सही तरीका
एक्सपर्ट के मुताबिक, इन्हेलर को ठीक से लेने के लिए आपको अपनी सांस छोड़कर फेफड़ों को पहले खाली करना है, जब फेफड़े खाली होंगे, तभी दवा उन तक पहुंच पाएगी। फेफड़े खाली करने के बाद इन्हेलर मुंह पर लगाकर सांस को खींचें और दस सेकंड तक सांस को रोककर रखें। इसके बाद नाक से सांस को छोड़ दें और पानी से कुल्ला कर लें।