कानपुर (ब्यूरो)। नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट (एनएसआई) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) कानपुर मिलकर बायोफ्यूल की नेक्स्ट जेनरेशन को तैयार करेंगे। इस काम के लिए सैटरडे को एनएसआई और आईआईटी के बीच सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) फॉर बायो फ्यूल्स पर एमओयू हुआ। आईआईटी डायेक्टर डॉ। मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि इस सेंटर में दोनों संस्थान मिलकर बायोफ्यूल की नेक्स्ट जेनरेशन को यूज के लायक बनाएंगे। इसके अलावा पूरे स्पेक्ट्रम में साइंस से लेकर यूजर के पास तक ले जाने के लिए काम करेंगे।
सीएनजी में मिलाएंगे सीबीजी
एमओयू पर ज्वाइंट सेक्रेटरी (शुगर) भारत सरकार, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण अश्वनी श्रीवास्तव, आईआईटी डायरेक्टर डॉ। मणींद्र अग्रवाल और एनएसआई डायरेक्टर प्रो। सीमा परोहा ने साइन किए। एमओयू के बाद सीओई की लैब का फीता काटकर उद्घाटन किया गया। ज्वाइंट डायरेक्टर (शुगर) अश्वनी श्रीवास्तव ने कहा कि आने वाले कल में सीएनजी में कंप्रेस्ड बायो गैस (सीबीजी) को कुछ मात्रा में मिलाया जाएगा। सीबीजी का प्रोडक्शन शुगर मिल्स में किया जाएगा।
20 परसेंट इथेनॉल का टारगेट
बताया कि अभी हम पेट्रोल में 12 परसेंट इथेनॉल को मिला रहे हैैं। 2025 तक 20 परसेंट मिलाने का टारगेट है। इस टारगेट को पूरा करने के लिए सीओई में काम किया जाएगा। पेट्रोल में जितना ज्यादा इथेनॉल को मिलाया जाएगा। उतना इंपोर्ट कम करना पड़ेगा। इसके अलावा कार्बन एमीशन में भी कमी आएगी। आने वाले कल में फ्लेक्सी फ्यूल वाले व्हीकल आने वाले हैैं। जो कि 100 परसेंट इथेनॉल से चलेंगे। कहा कि गन्ना आधारित फीड स्टॉक की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए इथेनॉल के उत्पादन के लिए मक्के को एक प्रमुख फीड स्टॉक के रुप में बढ़ावा दिया जा रहा है।
इन पर होगी स्टडी
एनएसआई डायरेक्टर प्रो। सीमा परोहा ने बताया कि इस सेंटर में बायोमास के इथेनॉल, मीथेनॉल, सीबीजी, एविएशन फ्यूल, ग्रीन हाइड्रोजन आदि के डेवलपमेंट पर काम किया जाएगा। इसके अलावा कास्ट कटिंग, बाई प्रोडक्ट का यूज और एनवायरमेंट पर पडऩे वाले इफेक्ट समेत कई पहलुओं पर स्टडी की जाएगी। इस काम के लिए सीओई में पायलट प्लांट, आवश्यक उपकरण और माडर्न लैब को स्थापित किया जाएगा। इस काम में खर्च होने वाले बजट को मिनिस्ट्री की ओर से दिया जाएगा, जिसकी स्वीकृति दी जाएगी।
वेस्ट से वेल्थ पर दिया जाएगा ध्यान
इस सेंटर में बायोफ्यूल्स के निर्माण में बेस्ट से वेल्थ पर ध्यान दिया जाएगा। इसका सीधा सा मतलब है कि शुगर मिल्स से निकलने वाले वेस्ट को यूज बायोफ्यू्ल्स में किस तरह से कर सकते हैैं। इस पर भी काम होना है। बताते चलें कि एनएसआई डायरेक्टर प्रो। सीमा परोहा ने शुगर मिल्स के निकलने वाले प्रेसमेड (वेस्ट) से सीएनजी बनाने पर रिसर्च की है, जिसमें सक्सेस मिली है।
यह है मॉनिटरिंग कमेटी
सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में होने वाले काम के लिए एग्जीक्यूटिव और मॉनीटरिंग कमेटी को बनाया गया है। इस कमेटी में एनएसआई डायरेक्टर प्रो। सीमा परोहा, आईआईटी के प्रो। राजीव जिंदल, आईआईटी के प्रो। देवोपम दास, विनय कुमार (असिस्टेंट प्रोफेसर, शुगर इंजीनियरिंग एनएसआई), अनूप कुमार कनौजिया (असिस्टेंट प्रोफेसर, शुगर इंजीनियरिंग एनएसआई) और डॉ। अनंतलक्ष्मी रघुनाथन शामिल हैैं।
सेंटर में ये अहम काम होंगे
-सीबीजी, एविएशन फ्यूल, ग्रीन हाइड्रोजन आदि के डेवलपमेंट पर काम किया जाएगा
-कास्ट कटिंग, बाई प्रोडक्ट का यूज और एनवायरमेंट पर पडऩे वाले इफेक्ट पर स्टडी
-सीओई में पायलट प्लांट, आवश्यक उपकरण और माडर्न लैब को स्थापित किया जाएगा
-इस काम में खर्च होने वाले बजट को मिनिस्ट्री की ओर से दिया जाएगा