- आईआईटी कानपुर ने डेवलप किया इंटीग्रेटेड हाईब्रिड बायो आर्टिफिशियल लीवर सपोर्ट सिस्टम
- प्लाज्मा सेपरेशन के साथ न्यूट्रियंट्स का भी करेगा बॉडी में सर्कुलेशन, डिवाइस के पेटेंट का इंतजार
KANPUR: क्रोनिक लीवर डिजीज हो, हेपेटाइटिस हो या फिर लीवर फेल होने की और कोई वजह। ऐसी स्थिति को संभालने के लिए आईआईटी कानपुर के डिपार्टमेंट ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेस एंड बायोइंजीनियरिंग ने एक इंटीग्रेटेड हाईब्रिड बायो आर्टिफिशियल लीवर सपोर्ट सिस्टम डेवलप करने में सफलता पाई है। यह डिवाइस लीवर फेल होने की स्थिति में उसे सपोर्ट करेगी और लीवर के प्राइमरी फंक्शन को भी वर्किंग में रख सकेगी। इस डिवाइस के क्लीनिकल ट्रॉयल भी जल्द शुरू होंगे। आईआईटी ने इसके पेटेंट की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
कैसे काम करती है डिवाइस
आईआईटी के बायोलॉजिकल साइंसेस डिपार्टमेंट ने क्रायोजेल बेस्ड बायो रिएक्टर को तैयार करने में सफलता पाई है। यह डिवाइस एक्यूट लीवर फेल्योर में कारगर तरीके से काम करती है। यह डिवाइस एक सिस्टम के रूप में लीवर के सभी फंक्शन सही तरीके से परफार्म कर सकती है। इस डिवाइस में प्लाज्मा सेपरेशन यूनिट, डिटॉक्सिफायर यूनिट और बायो रिएक्टर यूनिट को इंटीग्रेट करके बनाया गया है। जोकि हयूमन बॉडी में डायजेस्टिव ट्रैक से आने वाले ब्लड को फिल्टर करता है। साथ ही केमिकल्स और मेटोबालिज्म को भी टॉक्सिटी को खत्म करता है। इसके अलावा यह सिस्टम पेशेंट को ग्लूकोज, स्लायन चढ़ाने या दूसरे न्यूट्रिंयट्स देने पर उसे बॉडी में सर्कुलेट भी कर सकती है।
डिवाइस का होगा पेटेंट
इंटीग्रेटेड हाईब्रिड बायो आर्टिफिशियन लीवर सपोर्ट सिस्टम को बायोसांइसेस एंड बायोइंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो। अशेाक कुमार ने डेवलप किया है। साथ ही क्रायोजेल बेस्ड इस बायो रिएक्टर के क्लीनिकल ट्रायल अभी शुरू नहीं किए हैं,लेकिन इसे पेटेंट कराने की प्रक्रिया काफी आगे बढ़ चुकी है।
लीवर डिजीज वाले पेशेंट्स को फायदा
बदलती लाइफस्टाइल के साथ लीवर से जुड़ी बीमारियां भी तेजी से बढ़ी हैं। सीनियर गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट डॉ। गौरव चावला बताते हैं कि लीवर में सूजन अब बेहद सामान्य बात हो गई। इसी के साथ लीवर सिरोसिस, हेपेटाइटिस सी व दूसरी क्रोनिक लीवर डिजीज के केसेस भी पहले से काफी बढ़ गए हैं। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे पेशेंट्स भी होते हैं जिनकी लीवर फेल होने से मौत हो जाती है। अभी तक एक्यूट लीवर फेल्योर जैसी स्थिति से बचने के लिए लीवर ट्रांसप्लांट ही विकल्प है।