कानपुर (ब्यूरो)। देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने में कानपुर ने अहम भूमिका निभाई थी। फिर वो चाहे अपनी कलम से अंग्रेजों की नींव हिलाने वाले कलमकार हों, अंग्रेजों से सीधे लोहा लेने वाले क्रांतिकारी या फिर अंग्रेज अफसरों में अपनी सटीक प्लानिंग से मौत का खौफ भरने वाले आजादी के दीवाने हों। कई बड़ी क्रांतिकारी घटनाओं का गवाह रहा है कानपुर। घटनाओं, घटनाओं की प्लानिंग और क्रांतिकारियों के मिलने से लेकर कई ऐसे किस्से हैैं जो कि इतिहास के पन्नों में दर्ज हैैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी तो मेरठ से उठी थी लेकिन वह ज्वाला कानपुर में ही बनी। देश की आजादी के उत्सव में हम आपको ऐसे ही कुछ किस्सों को बता रहे हैैं, जिन्हें पढक़र न सिर्फ आप इस आजादी की कीमत समझ सकेंगे बल्कि उन वीरों के लिए आपके मन में सम्मान और भी बढ़ जाएगा जिन्होंने अपनी जिंदगी के ऊपर देश की आजादी का तरहजीह दी। इन किस्सों को हमसे डीएवी कालेज के हिस्ट्री डिपार्टमेंट के रिटायर्ड एचओडी प्रो। समर बहादुर सिंह ने शेयर किया है।
सामने थी मौत और अजीजन बाई ने मांगी थी आजादी
आजादी की लड़ाई में केवल पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी आगे रही हैैं। इसी में नाम आता है नृत्यांगना अजीजन बाई का। यह 400 महिलाओं को मस्तानी टोली बनाकर रात में मुजरा करके अंग्रेजों की रणनीति पता लगाकर क्रांतिकारियों को बताती थी। मूलगंज की रोटी वाली गली में रहने वाली अजीजन बाई की सूचना पर ही होली के दिन क्रांतिकारियों ने कोठे पर हमला करके कई अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतारा था। जनरल हैवलॉक ने इनको पकडक़र तात्याटोपे का पता पूछा और छोड़ देने की बात कही तो इन्होंने मना कर दिया और मौत को गले लगाया।
भगत सिंह लिखते खबरें, चंद्रशेखर आजाद करते थे प्रिंटिंग
आजादी की ज्वाला को जलाने में कलम ने भी कम रोल प्ले नहीं किया हैैं। बताया जाता है कि गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रताप अखबार मेें भगत सिंह खबरें लिखते थे, उनकी खबरें बलवंत सिंह के नाम से छपती थी। चौरी चौरी और काकोरी समेत कई कांडों को प्रताप में प्रकाशित किया गया था। प्रेस फीलखाना में था। इस अखबार से क्रांतिकारी अपनी बात को जनता तक पहुंचाने का काम करते थे। बताया जाता है कि चंद्रशेखर आजाद यहां अपने हाथों से प्रिंटिंग करते थे।
डीएवी हास्टल में बनी थी काकोरी कांड की योजना
नौ अगस्त 1925 को हुए काकोरी कांड की योजना डीएवी हॉस्टल में बनी थी। स्टूडेंट शिव वर्मा के रूम में कांड से 10 दिन पहले चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिणी, मन्मथ नाथ गुप्ता और शचींद्र नाथ सान्याल समेत कई क्रांतिकारी मौजूद थे। कांड के बाद डीएवी के कई स्टूडेंट्स को अरेस्ट भी किया गया था। यहां के टीचर मुंशीराम शर्मा (सोम) समेत कई टीचर क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन करते थे। यहां के सालिग्राम शुक्ला, डॉ। गया प्रसाद, जयदेव कपूर, विजय कुमार सिंहा और सुरेंद्र पांडेय समेत कई स्टूडेंट क्रांतिकारियों के दल में शामिल हुए।
26 जनवरी को मनाया जाता था स्वतंत्रता दिवस
कानपुर इतिहास समिति के जनरल सेक्रेटरी अनूप शुक्ला ने बताया कि 26 जनवरी 1930 को सबसे पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी (कानपुर) के आदेशानुसार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। यूथ लीग ने एक विशाल जुलूस निकाला। जो सनातन धर्म कॉलेज नवाबगंज से दोपहर एक बजे शुरू हुआ और सारे शहर मेें आजादी का जश्न मनाते हुए शाम छह बजे श्रद्धानंद पार्क पहुंचा। सभा में यूथ लीग के सभापति पंडित बालकृष्ण शर्मा ने स्वतंत्रता की घोषणा पढी। 1934 में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर गोपीनाथ सिंह, प्रकाश नारायण सक्सेना और शिवराम पांडेय को अरेस्ट किया गया। इनको ढाई साल की सजा दी गई। गिरफ्तारी के समय प्रकाश नारायण सक्सेना पीटे भी गए, जिससे उनका एक कान हमेशा के लिए खराब हो गया। साल 1938 में डॉ जवाहरलाल रोहतगी डीएवी कॉलेज सोसाइटी कानपुर के मंत्री थे। आप ने स्टूडेंट्स के साथ मिलकर लॉन में नेशनल फ्लैग को फहराया।