कानपुर (ब्यूरो)। अब ब्रेन की सर्जरी से पहले ही यह पता चल जाएगा कि कितनी गहराई में ट्यूमर है। सर्जिकल इक्विपमेंट अंदर लेकर जाने के प्वाइंट से ट्यूमर की दूरी कितनी है। इसके लिए गणेश शंकर विद्यार्थी सुपर स्पेशियलिटी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट यानी जीएसवीएसएस पीजीआइ में न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम आ गया है। इसकी मदद से छोटा सा चीरा लगाकर ब्रेन सर्जरी आसानी से की जा सकेगी। न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम सबसे कम दूरी से ट्यूमर तक पहुंचने का रास्ता भी बताएगा। ऐसे में ब्रेन सर्जरी के लिए अब सिर खोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। नाक के रास्ते न्यूरो एंडोस्कोपी से ट्यूमर को बिना किसी चूक के गुंजाइश के आसानी से निकाला जा सकेगा। कानपुराइट्स के लिए राहत की बात यह है कि यह सर्जरी प्राइवेट बड़े हॉस्पिटल में दो से तीन लाख में होती है। जो जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट में गवर्नमेंट की निर्धारित फीस मात्र 400 रुपए में हो रही है।
एक करोड़ 65 लाख रुपए से आया न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम
न्यूरो सर्जरी के एचओडी डॉ। मनीष सिंह ने बताया कि आधुनिक तकनीक से की जाने वाली सर्जरी सटीक होने के साथ जिन कोशिकाओं को काटना है, वहीं कटेंगी। इसके लिए हैलट के न्यूरो साइंसेस डिपार्टमेंट में एक करोड़ 65 लाख रुपए का न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम आ गया है। रोबोट के लिए शासन को प्रस्ताव भेज दिया गया है। सीआरएस फंड से भी इसकी व्यवस्था हो सकती है। उन्होंने बताया कि नाक के रास्ते न्यूरो एंडोस्कोपी से ट्यूमर निकाल दिया जाता है।
ट्यूमर पहचाने में भी नहीं होगी कोई चूक
ब्रेन के ट्यूमर यानी लो ग्रेड ग्लायोमा जो कैंसरस नहीं होते हैं। वह भी ब्रेन की तरह ही दिखाई पड़ते हैं। इस वजह से कई बार सर्जन उन्हें ठीक से पहचान नहीं पाते हैं। उन्हें यह भ्रम हो जाता है कि ट्यूमर है या ब्रेन का हिस्सा है। न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम की मदद से उन्हें पहचाने में कोई चूक नहीं होगी।
ऐसे काम करेगा न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम
ब्रेन ट्यूमर के मरीज की एमआरआइ जांच के बाद न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम पर उसे अपलोड किया जाएगा। फिर न्यूरो सर्जन उसकी सर्जरी की प्लानिंग और मरीज के ब्रेन की मैपिंग करके उसमें अपलोड करके उसे फिक्स कर देंगे। उसके बाद न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम ट्यूमर को चिन्हित करके ब्रेन के अंदरूनी हिस्से में कम से कम दूरी से ट्यूमर तक पहुंचने में सर्जन की मदद करेगा।
पेशेंट की होती बेहतर रिकवरी
प्रो। मनीष सिंह बताते हंै कि बिना चीरा लगाए सर्जरी की वजह से न्यूरो पेशेंट की रिकवरी बेहतर होने के साथ ही उन्हें हॉस्पिटल में कम दिनों के लिए रोका जाता है। कम से कम दो सप्ताह का रुकना अब दो से तीन दिन का रह गया है। पेशेंट को तीन के बाद ही डिस्चार्ज कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि जिस सर्जरी के लिए प्राइवेट सेक्टर में पेशेंट को ट्यूमर के ट्रीटमेंट के लिए दो से तीन लाख रुपए खर्च करना पड़ता है। वह डिपार्टमेंट में चार सौ रुपए गवर्नमेंट फीस में मिल जा रही है।
डेली ओपीडी में आते 6 से 7 पेशेंट
डॉक्टर मनीष सिंह ने बताया कि न्यूरो सर्जरी और न्यूरोलॉजी मिलाकर लगभग छह से सात पेशेंट डेली ओपीडी में आते हैं। जिसको सर्जरी की जरूरत होती है। ऐसे पेशेंट का अभी तक सिर को खोलकर सर्जरी की जाती थी। जिसके लिए पेशेंट को सर्जरी के बाद लगभग दो सप्ताह तक रुकना पड़ता था। न्यूरो नेवीगेशन सिस्टम आने से अब यह ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी पेशेंट के लिए आसान हो गई है। उन्होंने बताया कि जल्द ही शासन या फिर सीएसआर फंड से रोबोट मिलने के बाद हम रोबोटिक सर्जरी भी शुरु करने की प्लानिंग कर चुके हैं। जिसका लाभ हजारों पेशेंट को मिलेगा।
18 सिटीज के लोग आते ट्रीटमेंट को
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के हैलट हॉस्पिटल में सिटी के साथ आसपास के 18 सिटीज के पेशेंट डेली बड़ी संख्या में ट्रीटमेंट के लिए आते है। डेली न्यूरो डिपार्टमेंट की ओपीडी में 500 से अधिक पेशेंट ट्रीटमेंट के लिए आते है। जिसमें छह से सात पेशेंट सर्जरी वाले होते है। ऐसे पेशेंट को एडमिट कर एक से दो दिन में बॉडी चेकअप कराकर सर्जरी की जाती है।