कानपुर (ब्यूरो)। नई-नई बीमारियों के हमले और रोड एक्सीडेंट्स की बढ़ती संख्या के कारण साल-दर-साल सिटी में ब्लड की डिमांड बढ़ती जा रही है। बीते छह वर्षो में ही शहर में ब्लड की डिमांड 6 हजार यूनिट तक बढ़ गई है। ये आंकड़ा केवल जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज का है। जबकि उर्सला, आईएमए के अलावा सिटी में कई प्राइïवेट ब्लड बैंक भी चल रही है। हालांकि घबराने की बात नहीं। ब्लड की डिमांड बढऩे के साथ ब्लड डोनर्स की संख्या भी कई गुना बढ़ी है। बस जरूरत है तो आपको भी इसमें नाम जोडऩे की। क्योंकि ब्लड को किसी फैक्ट्री में बनाया नही जा सकता है। हमारे आपके ब्लड डोनेट करने से जरूरत पूरी होगी। यह कभी भी किसी को भी पड़ सकती है, इसलिए ब्लड डोनेट करते रहें। 14 जून को ब्लड डोनर डे है। आप भी रक्तदान कर किसी जान बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
हर दिन होते चार एक्सीडेंट
ट्रैफिक डिपार्टमेंट के आंकड़ों की बात करें तो सिटी में डेली चार से पांच एक्सीडेंट होते हैं। जिसमें घायलों की संख्या दो से तीन होती है। इसमें से गंभीर घायल की बात करे तो उसकी संख्या औसतन एक होती है। जिसको सर्जरी की जरूरत होती है। क्योंकि एक्सीडेंट के दौरान भी पेशेंट का काफी ब्लड लॉस हो गया होता है। सर्जरी में भी कुछ ब्लड लॉस होता है। लिहाजा ऐसे पेशेंट को दो से तीन यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती ही है। सिटी में एक्सीडेंट की संख्या बढऩा भी ब्लड की डिमांड बढऩे की एक बड़ी वजह हैं।
हार्ट व किडनी के साथ थैलेसीमिया के पेशेंट बढ़े
बीते कुछ सालों में खासकर कोरोना काल के बाद हार्ट व किडनी पेशेंट की संख्या काफी बढ़ी है। यही कारण है कि कोरोना काल के बाद पैक्ड रेड ब्लड सेल(आरबीसी) की डिमांड 15 से 20 परसेंट बढ़ गई है। कॉर्डियोलॉजी हॉस्पिटल के आंकड़ों को देखें तो डेली हॉस्पिटल में छह से सात मेजर व दो से तीन माइनर ऑपरेशन होते हैं। जिसमें मेजर ऑपरेशन में दो से तीन यूनिट आरबीसी की जरूरत पेशेंट को पड़ती है। इसके अलावा बीते पांच सालों में थैलेसीमिया के कई बच्चों के चिन्हित होने की वजह से रेड ब्लड सेल की खपत बढ़ी है।