कानपुर (ब्यूरो)। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में ब्रेन व स्पाइन ट्यूमर की जटिल से जटिल सर्जरी आसानी से और पहले की अपेक्षा सुरक्षित हो रही है। आधुनिक उपकरण कैविट्रॉन अल्ट्रासोनिक एस्पिरेटर &सीयूएसए&य के यूज से ट्यूमर के आसपास की नसों को कटने से बचा लिया जाता है। जिससे ब्लड अधिक लॉस नहीं होता है। वहीं पेशेंट की बॉडी के किसी भी पार्ट की विकलांगता (पैरालाइज) होने की संभावना न के बराबर होती है।

18 सिटीज से ट्रीटमेंट के लिए आते पेशेंट
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के न्यूरो साइंसेस डिपार्टमेंट में हर महीने ब्रेन और स्पाइन ट्यूमर की औसतन 90 सर्जरी होती है। न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट में सर्जरी की वेटिंग तीन महीने की है। डिपार्टमेंट में सिटी के साथ ही आसपास की 18 सिटीज के पेशेंट भी ट्रीटमेंट के लिए आते हैं। न्यूरो साइंसेस डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ। मनीष सिंह ने बताया कि डिपार्टमेंट में आधुनिक उपकरण सीयूएसए आने से सर्जरी पहले की अपेक्षा और सुरिक्षत व आसान हो गई है। इसमें अल्ट्रासोनिक वेव के जरिए ट्यूमर को काटा ताजा है।

हेल्दी सेल्स को बचा लिया जाता
डॉ। मनीष सिंह ने बताया कि सीयूएसए अलग-अलग अल्ट्रासोनिक वेव पर काम करता है। इसमें ट्यूमर के आसपास की हेल्दी नसें डैमेज होने से बच जाती हैं। इससे वैस्कुलर ब्लीडिंग नहीं होती है। इसी तरह स्पाइनल कार्ड के ट्यूमर का ट्रीटमेंट भी इसी उपकरण से होता है। इससे हेल्दी सेल्स को खराब होने से बचा लिया जाता है। उन्होंने बताया कि हर महीने ब्रेन और स्पाइन ट्यूमर की औसतन 90 सर्जरी होती हैं।

छह घंटे से अधिक चलती सर्जरी
एक्सपर्ट के मुताबिक स्पाइन की सर्जरी छह घंटे से अधिक समय तक चलती है। डिपार्टमेंट की ओटी में डेली इस प्रकार के ऑपरेशन किए जाते हैं। वहीं ब्रेन की सर्जरी 8 से 10 घंटे तक चलती है। जबकि ऑपरेशन के लिए डेली दो से तीन पेशेंट आते हैं। यहीं कारण है कि न्यूरो साइंसेस में सर्जरी के लिए तीन माह की वेटिंग चलती है। अदर सिटी के गवर्नमेंट हॉस्पिटल की बात करे तो छह महीने से एक साल की वेटिंग ऐसी सर्जरी की चल रही है।

पीजीआई लखनऊ से भी आ रहे पेशेंट
डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो। मनीष सिंह ने बताया कि न्यूरो व ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी के लिए कानपुर ही नहीं उन सिटीज से भी पेशेंट आ रहे है। जहां पर सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल है। उन्होंने बताया कि लखनऊ एसजीपीजीआई से भी पेशेंट सर्जरी कराने के लिए आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण छह-छह माह तक चलने वाली वेटिंग है। वहीं अगर एम्स की बात करे तो इन सर्जरी के लिए वहां पेशेंट को एक-एक साल तक का इंतजार करना पड़ता है।