कानपुर (ब्यूरो)। सरकारी नौकरी मिलते ही सात फेरों की कसम तोड़ दी। पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक का केस दाखिल कर कहा कि पत्नी का हर सहयोग करते हुए पढ़ाया-लिखाया, जब उसे टीचर की नौकरी मिल गई तो बेटे को लेकर उससे अलग हो गई। बेटे को नहीं मिलने दिया जाता है। कोर्ट ने तलाक मंजूर कर लिया।
2008 को हुई थी लव मैरिज
विश्व बैंक कालोनी बर्रा निवासी एक युवक ने आरएस पुरम सर्वोदय नगर निवासी पत्नी के खिलाफ तलाक का केस दाखिल किया था। इसमें कहा था कि उन दोनों की मुलाकात इंस्टीट््यूट आफ फार्मेसी कानपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान हुई थी। 21 फरवरी 2008 को दोनों का प्रेम विवाह हुआ। इसके बाद उसने पत्नी 2009-10 में बीएड कराया। उसके एक 13 और दूसरा 10 साल का बेटा है। पत्नी जब चाहती थी तब मां से झगड़ा कर छोटच् बच्चे को लेकर मायके चली जाती थी।
2012 में अलग रहने का फैसला
2012 में पिता ने दोनों का वैवाहिक जीवन बचाने के लिए दोनों को अलग रहने के फैसले को मंजूर कर लिया। 2015 में पत्नी का चयन सरकारी अध्यापिका के पद पर हो गया। वह इटावा के एक गांव में कमरा लेकर रहने लगी। उसके बेरोजगार होने के कारण मिलने से आने पर रोक लगा दी। छोटे बेटे से भी नहीं मिलने दिया जाता है। अधिवक्ता अनूप शुक्ला ने बताया कि पति की तरफ से कोर्ट में परिवार न्यायालय अपर प्रधान न्यायाधीश की कोर्ट में अर्जी लगाकर तलाक की मांग की। पत्नी ने अपना पक्ष कोर्ट में नहीं रखा। इसलिए एक पक्षीय सुनवाई हुई। कोर्ट ने बेटे से पिता को न मिलने देने और पति का परित्याग करने को मानसिक्र क्रूरता मानते हुए विवाह को विच्छेदित (तलाक) करने का आदेश दिया।