कानपुर (ब्यूरो)। कोयले और खनिज की ढुलाई ट्रक या ट्रेन से की जाती है। खदान से तय स्थान तक पहुंचने तक के समय में कई प्रॉब्लम्स होती हैं। तेज स्पीड में गाडिय़ों के चलने से कोयला उड़ता है जो एयर पॉल्यूशन की वजह बनता है। इसके अलावा इन ट्रांसपोर्ट के साधनों से चोरी की संभावना अधिक रहती है। यार्ड या आउटर में खड़ी गुड्स ट्रेन से अक्सर कोयला चोरी के मामले रेलवे पुलिस में दर्ज होते हैैं। इसके अलावा समय भी ज्यादा लगता है। इन सभी प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन आईआईटी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट ने दे दिया है।
तैयार किया सिस्टम
डॉ। बिशाख भट्टïाचार्य ने सीनियर प्रोजेक्ट साइंटिस्ट कन्हैया लाल चौरसिया और प्रोजेक्ट इंजीनियर यशस्वी सिंहा के साथ मिलकर एक सिस्टम तैयार किया है, जिसका नाम हाइपरलूप ट्रांसपोर्टिंग सिस्टम विथ रोबोट व्हीकल फॉर ट्रांसपोर्टिंग गुड्स रखा गया है। आईआईटी ने टेक ट्रांसफर नाम के एक्स अकाउंट पर अपनी इस उपलब्धि को शेयर किया है।
120 किमी की रफ्तार से होगा काम
इस सिस्टम को एनर्जी सोर्स के रूप में कंप्रेस्ड एयर के कोयले को एक छोर से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है। इसमें रोबोट लगभग 120 किमी/घंटे की गति से काम कर सकता है और लोड किए गए ब्लॉक को रिसीविंग और अनलोडिंग सब-सेक्शन में लगातार ट्रांसपोर्ट कर सकता है। यह एक सतत प्रक्रिया होगी।
कंप्रेस्ड एयर ब्लोअर
वर्कलोड और आवश्यकता के आधार पर सीरीज में एक से अधिक रोबोटिक व्हीकल संचालित हो सकते हैैं। रोबोट में एक सटीक, विश्वसनीय और निरंतर वाहन पोजिशनिंग सिस्टम भी है। यह सिस्टम एक पाइपलाइन की तरह है। इसमें कंप्रेस्ड एयर ब्लोअर और कैब्ज मॉड्यूल समेत कई चीजें लगी हुई हैैं। यह कंप्रेस्ड फ्लूड फ्लो से संचालित होता है।
गेमचेंजर साबित होगा सिस्टम
एक्सपर्ट मानते हैैं कि यह सिस्टम गुड्स ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में एक गेम-चेंजर है। कम एनर्जी और एक साथ पाइपलाइन निगरानी के अपने दोहरे लाभ के साथ यह तकनीक भूमिगत और ओपन-कास्ट खनन से उत्पादन और उत्पादकता में काफी सुधार करेगी। इस प्रणाली के प्रयोग के साथ ट्रकों और रेलवे वैगनों की संख्या में होने वाली भारी गिरावट, माल ढुलाई वाली पटरियों और रोडवेज पर दबाव को कम किया जा सकेगा।