कानपुर (ब्यूरो)। मुगल शासन से लेकर अंग्रेजों के शासन तक। आजादी के बाद न जाने कितनी यादें संजोए कानपुर का हार्स राइडिंग क्लब धीरे-धीरे अपनी पहचान खोता जा रहा है। वर्तमान में हालात ये हैैं कि मुगल काल से घुड़सवारी सिखाने के लिए जाने जाने वाले हार्स राइडिंग क्लब को पुलिस कर्मियों के बच्चों ने क्रिकेट का मैदान बना दिया है। गेट पर लगा इतिहास बताने वाले पत्थर के चार टुकड़े हो गए हैैं। मैदान के बाहर मिट्टïी का ऊंचा ढेर लग गया है जबकि अंदर सूखी हुई घास और जानवरों की गंदगी पड़ी मिली। घुड़सवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले हर्डल भी टूट गए हैैं।

नवंबर 1999 में की गई थी स्थापना
दरअसल कानून व यातायात व्यवस्था के संचालन के लिए घुड़सवार पुलिस की भूमिका अहम होती है। इसे और ज्यादा प्रभावी बनाने और जनता व पुलिस के लिए संबंधों को और ज्यादा सुदृढ़ करने के लिए नवंबर 1999 में तत्कालीन एसएसपी सुतापा सान्याल की प्रेरणा से तत्कालीन एसपी लाइन सुनील सक्सेना और तमाम पुलिस अधिकारियों की कोशिश के बाद इस ऐतिहासिक विरासत को संभालने के लिए कोशिश की गई। इस दौरान सीओ ट्रैफिक अरुण कुमार दीक्षित और टीआई महेश सिंह राना थे। इसका उद्घाटन डीआईजी कानपुर जोन उत्थान कुमार बंसल ने 2 नवंबर 1999 को किया था।
2 दिसंबर 2021 को हुआ जीर्णोद्धार
वक्त के साथ ही इस ऐतिहासिक धरोहर का मेंटिनेंस नहीं हो पाया और ये खंडहर में तब्दील हो गई। कानपुर में कमिश्नरेट लागू हुआ। पहले कमिश्नर असीम अरुण ने पदभार ग्रहण कर लिया। शहर की तमाम चीजें देखी गईं तो इस ऐतिहासिक धरोहर की याद आ गई। सालों से धूल धूसरित हो रहे इस हॉर्स राइडिंग क्लब का जीर्णोद्धार कराया गया। एक बार फिर कई लाख रुपये खर्च कर दिए गए। तत्कालीन कमिश्नर राजशेखर ने 2 दिसंबर 2021 को इसका उद्घाटन किया। प्लान बना कि पुलिस के साथ आम आदमी को भी हॉर्स राइडिंग सिखाई जाएगी। इससे जो भी आय होगी उससे हॉर्स राइडिंग क्लब का मेंटिनेंस किया जाएगा। कुछ दिन बाद ही कोविड आ गया। हार्स राइडिंग क्लब बंद हो गया। इसके बाद से कुछ ऐसा बंद हुआ कि देश की ये ऐतिहासिक धरोहर पूरी तरह से बंद हो गई।
ये है हार्स राइडिंग क्लब का इतिहास
1719 से 1748 तक भारत में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीले का शासन था। बादशाह के दरबार में कोकी जुई नाम का प्रसिद्ध दरबारी थी, जिसकी अमलदारी गंगा के दक्षिणी किनारे पर स्थित जाजमऊ से पुराने कानपुर तक फैली हुई थी। 1835 में जीटी रोड बन जाने के बाद जीटी रोड का उत्तरी क्षेत्र तो छावनी ही रहा और लगभग समस्त दक्षिणी क्षेत्र जुई के नाम से जाना जाता रहा, जो बाद में बिगड़ कर जूही हो गया। आज भी दक्षिण का ये क्षेत्र जूही के नाम से जाना जाता है। जुई ने इसी स्थान पर हार्स राइडिंग क्लब स्थापित किया था। एक बहुत बड़ा बंगला बनवाया गया था। सन् 1778 में ईस्ट इंडिया कंपनी के कानपुर आने पर कंपनी द्वारा जुई के इस बंगले में घुड़सवारी सिखाने के लिए हार्स राइडिंग स्कूल खोला गया। जिसके साथ घोड़ा लाइन और घोड़ा अस्पताल भी स्थापित किया गया।

इसलिए कानपुर का राइडिंग क्लब व राइडिंग स्कूल अन्य महत्वपूर्ण बातों के साथ साथ ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। इस राइडिंग क्लब या राइडिंग स्कूल के मेन गेट के सामने से गुजरने वाली सडक़, जो मीर जाफर अली की जमींदारी का हिस्सा थी और वर्तमान में मीरपुर कैंट रोड कहलाती है। इसका भी ऐतिहासिक महत्व है। सन् 1842 में इसी सडक़ पर छावनी के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल हरिसन घोड़ा दौड़ाते थे। उन्हीं के नाम पर ये रोड कर्नल हैरिसन ड्राइव भी कहलाती है। इस सडक़ का दक्षिणी किनारा जीटी रोड जाकर मिलता है। जीटी रोड के दक्षिण में कंपनी द्वारा निर्मित यह रेस कोर्स व रेस स्टैण्ड नामित किया गया था। जहां घुड़दौड़ हुआ करती थी। सडक़ का उत्तरी किनारा छावनी की ओर जाकर कटहरी बाग से मिलता है। आजादी के पहले ये कटहरी बाग लूसी पार्क कहलाता था। बाग के चारों तरफ की सडक़ अंग्रेजी बच्चों को घुड़सवारी सिखाने में इस्तेमाल की जाती थी। इतिहास के आइने में कानून और ट्रैफिक व्यवस्था कायम रखने के लिए घुड़सवार पुलिस बहुत प्रभावी थी। सन् 1942 में कानपुर के शहर कोतवाल हांडू साहब घोड़े पर सवार होकर गश्त करते थे।