कानपुर (ब्यूरो)। साहब थप्पड़ से नहीं, प्यार से डर लगता हैदबंग फिल्म का डायलाग आपने जरूर सुना होगा। इसी तरह हमारे शहर में लोगों को अपराधियों से नहीं खराब ट्रैफिक सिस्टम और रोड््स से डर लगता है। क्योंकि यहां जितने मर्डर नहीं होते उससे दो गुना लोग तो सडक़ हादसों में दम तोड़ देते हैं। शहर की सीमा से गुजर रहे 100 किलोमीटर से ज्यादा लंबे हाईवे कानपुराइट्स के लिए काल बन गए हैं। शायद ही कोई दिन बीतता हो जब ये हाईवे खून से लाल न होते हों। बसे बसाए घर को न उजाड़ते हों। किसी के घर की खुशियां पहियों तले न रौंदते हों।

कभी तेज रफ्तार तो ट्रैफिक रूल्स की अनदेखी, कभी शराब का नशा तो कभी खराब सडक़ें मातम का कारण बनती हैं। तभी 2024 के साढ़े चार महीनों में ही 133 लोग रोड एक्सीडेंट में अपनी जान गवां चुके हैं। वहीं इस दौरान शहर में 75 मर्डर हुए।

पुलिस विभाग की ओर से जारी किए गए ये आंकड़े न सिर्फ डराने वाले हैैं बल्कि आम आदमी के लिए चिंता जनक भी हैैं। जैसे जैसे शहर की सडक़ों पर गाडिय़ों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे वैसे हादसे भी बढ़ रहे हैं। सडक़ हादसे में मरने वालों में पुरुष ही नहीं महिलाएं, किशोर और बच्चे भी हैैं। हालांकि ट्रैफिक विभाग लगातार हालात सुधारने के लिए अपना काम कर रहा है लेकिन सिर्फ ट्रैफिक सिस्टम और सडक़ों को दोष देने से काम नहीं चलेगा। लोगों को खुद की अवेयर और अलर्ट रहना होगा। ट्रैफिक रूल्स हर हाल में फॉलो करने होंगे। वरना ये सिलसिला रोकना मुश्किल होगा।

नौबस्ता से घाटमपुर तक

तीन दिन पहले ही तेज रफ्तार कार की टक्कर से एक ही परिवार की चार महिलाओं की मौत हो गई। ये सभी सडक़ पार कर रही थीं कि फतेहपुर से आ रही कार उन्हें कुचलते हुए निकल गई। इसके ठीक पहले अहिरवां में तेज रफ्तार ट्रक डिवाइडर तोड़ता हुआ दूसरी तरफ निकल गया और राजस्थान से आ रहे ट्राले में टक्कर मारता हुआ रुका। दोनों के इंजन में आग लग गई और ट्राले के क्लीनर की मौत हो गई। ये दो मामले तो केवल उदाहरण के लिए हैैं। असलियत ये है कि लापरवाही से वाहन चलाने के कई मामले सामने आए हैैं। हाईवे और फ्लाईओवर पर अक्सर डिवाइडर से टकराने की वजह से ही हादसे होते हैैं। सबसे ज्यादा हादसे हमीरपुर रोड पर नौबस्ता से घाटमपुर के बीच और एनएच टू में महाराजपुर के पास होते हैं।

गैर जिम्मेदार हो गए विभाग

ट्रैफिक डिपार्टमेंट और एनएचएआई सडक़ हादसों को रोकने के लिए जिम्मेदार विभाग हैं। इसके बाद भी हादसे नहीं रुक रहे हैैं। सूत्रों की मानें तो हादसे के बाद अगर सही समय पर लोगों को इलाज मिल जाए तो कई जानें बच सकती हैं। घायलों तक एंबुलेंस और फार्मासिस्ट पहुंचाने की जिम्मेदारी नेशनल हाईवे पर तैनात एंबुलेंस और गश्ती दल पर है, लेकिन हाईवे पर न तो गश्ती दल मिलते हैैं और न ही एंबुलेंस। जिसकी वजह से हादसों में मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। अब अगर थाना पुलिस की बात की जाए तो 35 किलोमीटर के दायरे में 5 थाने आते हैैं। सचेंडी, पनकी, नौबस्ता, चकेरी और महाराजपुर। महाराजपुर और सचेंडी थाने तो हाईवे पर ही बने हैैं इसके बाद भी इनका मूवमेंट नहीं दिखाई देता है।