कानपुर (ब्यूरो)। सचेंडी कस्बे में पुलिस की अवैध वसूली से परेशान होकर व्यापारी सुनील ने फांसी लगाकर जान दे दी। जान देने से पहले वीडियो बनाकर वह खाकी का असली चेहरा भी सबको दिखा गया। चौकी इंचार्ज की कारगुजारी को कोई न जान पाता अगर सुनील की मौैत खामोशी से हो जाती। जान देने से पहले सुनील ने वीडियो बनाकर दारोगा सत्येंद्र यादव और सिपाही अजय यादव की कारगुजारी सबके सामने ला दी। इससे खाकी जहां शर्मसार है वहीं ये भी साबित हो गया कि पुलिस कमिश्नर से लेकर शासन तक दावे कितने भी किए जाएं, खाकी क्रूर चेहरा बदल नहीं रहा है। क्योंकि इससे पहले भी चोरी, लूट, डकैती, रेप, सट्टबाजी, एक्सटॉर्शन, ड्रग्स के धंधे में भी खाकी का चेहरा काला हो चुका है। बदनामी से बचाने के लिए इनमें शामिल पुलिसकर्मियों को पहले तो बचाने की कोशिश होती है लेकिन जब सच छिप नहीं पाता तो कार्रवाई और दंड भी दिया जाता है। लेकिन, जल्द ही ये दोषी पुलिसकर्मी फिर से पोस्टिंग पाकर हमारे आपके बीच आ जाते हैं। अगर आंकड़ों की बात करें तो कमिश्नरेट बनने के बाद 881 पुलिसकर्मियों ने डिपार्टमेंट को बदनाम किया। वहीं सैकड़ों मामले तो सामने ही नहीं आ पाते हैं।


क्रिमिनल्स से रखते याराना

खाकी की कारगुजारी के ये दो मामले कोई नए नहीं है। इसके पहले भी कस्टोडियल डेथ, पुलिस की दरिंदगी, कारोबारी से लूट, रिश्वत लेते हुए पकड़े जाना, क्रिमिनल्स से याराना और चार्जशीट या फाइनल रिपोर्ट के नाम पर रुपये लेना व अधिकारियों के आदेश की अवहेलना करना समेत तमाम ऐसे मामले सामने आए हैैं, जिसमें पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। पुलिस रिकॉर्ड की मानें तो कमिश्नरेट बने हुए चौथा साल चल रहा है। कमिश्नरेट पीरियड में 881 पुलिसकर्मियों को दंड दिया जा चुका है। कभी ये दंड छोटा होता है, कभी बड़ा तो कभी बहुत छोटा। अति लघु दण्ड में विभागीय जांच होती है, जिसमें पुलिस कर्मी बरी हो जाते हैैं। लघु दण्ड में लाइन हाजिर से लेकर सस्पेंशन तक हो सकता है जबकि दीर्घ दण्ड में बर्खास्तगी तक की जाती है।

सारे आदेश फाइलों में

पुलिस की छवि सुधारने और उनकी मनमानी रोकने को लेकर तमाम प्लान बनाए गए लेकिन पुलिसकर्मी भी हर प्लान का तोड़ निकालते रहे और प्लान फेल हो गए। दागी पुलिसकर्मियों की लिस्ट बनाने के लिए शासन से निर्देश के बाद कवायद शुरू की गई थी। कमाई के हिसाब से अधिक प्रॉपर्टी होने की जांच भी शासन के आदेश के बाद की गई थी। ऐसे पुलिसकर्मियों की लिस्ट भी तैयार की गई थी। कहा गया था कि ऐसे पुलिसकर्मियों की तैनाती जिलों में नहीं की जाएगी लेकिन ये आदेश भी फाइलों तक रह गया।

निरंकुश हो गए पुलिसकर्मी
अब अगर पुलिस विभाग के दंड की बात करें तो जो ग्राफ सामने आता है उसमें पुलिसकर्मियों को दिए गए दंड का ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। थाना और चौकी पुलिस के व्यवहार की शिकायतें शासन से लेकर अधिकारियों से की गईं। क्रिमिनल्स और नशे के कारोबारियों के साथ पुलिसकर्मियों की दोस्ती के नतीजे के कारण ही नवाबगंज और काकादेव पुलिस के बीच हुआ विवाद था। ये बात पुलिस अधिकारी भी मानते हैैं कि कमिश्नरेट के पुलिसकर्मी निरंकुश हो गए हैं।

4 महीने में शासन को पहुंचीं 129 शिकायतें

जनवरी 2024 से लेकर अप्रैल 2024 तक शासन को कानपुर से 129 शिकायतें जा चुकी हैैं। जिनकी जांच शासन से कानपुर में तैनात पुलिस अधिकारियों को सौंपी गई हैैं। तमाम थानों में तैनात दारोगा और सिपाहियों की इन शिकायतों पर भी गौर नहीं किया जा रहा है। आपको बताते चलें कि जिले में तैनात होने पर पहली मीडिया ब्रीफिंग में पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार ने भी जनता से थाना पुलिस की फीडिंग लेने का वादा किया था लेकिन ये सब नहीं हो पाया। अगर जनता से थाना पुलिस की फीडिंग की जाती तो सचेंडी कस्बे का सुनील जिंदा होता