कानपुर (ब्यूरो) आईआईटी से मैकेनिकल इंजीनियङ्क्षरग में एमएस करने वाले पूर्व छात्र निशांत अग्रवाल ने लाइफ एंड ङ्क्षलब कंपनी की स्थापना की थी। उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सेंसर तकनीक का इस्तेमाल करके दिव्यांगों के लिए आर्टिफिशियल हाथ व पैर विकसित करना शुरू किया था। कुछ महीनों पहले कंपनी ने 300 ग्राम का हाथ बनाया था, जिसकी मदद से दिव्यांग व्यक्ति आम हाथ की तरह काम कर सकते हैं। यह हाथ मांसपेशियों में मौजूद तरंगों से संचालित होते हैं और इनसे विभिन्न तरह के काम लिए जा सकते हैं। इन दिनों गांधीनगर में चल रहे डिफेंस एक्सपो में कंपनी ने अपने इन्हीं हाथ का प्रदर्शन किया है।

सेंसरों की प्रोग्रामिंग में बदलाव
निशांत ने बताया कि डीआरडीओ के अधिकारियों व विशेषज्ञों ने उनके कृत्रिम हाथ को देखकर उसे उन सैनिकों की जरूरत के मुताबिक विकसित करने के लिए कहा है, जो किसी युद्ध या अन्य आकस्मिक दुर्घटना की स्थिति में अपने हाथ गंवा चुके हैं। वर्तमान में कंपनी का आर्टिफिशियल हाथ आठ किलोग्राम तक का वजन उठा सकता है और उसमें लगी बैटरी आठ घंटे तक चलती है। सैनिकों की जरूरत को देखते हुए उसे और मजबूत बनाने के साथ ही बैटरी की क्षमता भी बढ़ाई जाएगी। साथ ही हाथ में लगे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक आधारित सेंसरों की प्रोग्राङ्क्षमग में भी कुछ बदलाव किए जाएंगे।

अभी तक विदेशों से खरीदे जाते थे
निशांत ने बताया कि वर्तमान समय में सेना की ओर से दुर्घटना का शिकार हुए जवानों के लिए विदेश से आर्टिफिशियल हाथ खरीदे जाते हैं। इनकी कीमत 10 से 12 लाख रुपये तक पड़ती है, लेकिन लाइफ एंड ङ्क्षलब की ओर से सैनिकों के लिए विकसित होने वाले स्वदेशी कृत्रिम हाथ महज तीन से चार लाख रुपये तक होगी।

कंपनी को मिला सर्टिफिकेट आफ मेरिट
निशांत ने बताया कि डिफेंस एक्सपो में कंपनी को डीआरडीओ की ओर से होने वाली प्रतियोगिता डेयर टू ड्रीम के अंतर्गत योग्यता का प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट आफ मेरिट) भी प्रदान किया गया है। डीआरडीओ की सलाह पर आइडेक्स कार्यक्रम में भी आवेदन किया जाएगा, इसमें 10 करोड़ रुपये तक बजट मिलता है।