कानपुर (ब्यूरो)। जमाना हाईटेक है, बिना कंप्यूटर कोई भी काम मुमकिन नहीं है। कई बार कंप्यूटर में हिन्दी में लिखना जरूरी होता है। कभी खुद की सहूलियत के लिए, कभी दूसरों की सुविधा के लिए। ऐसे में अंग्रेजी भाषा को समझने वाले कंप्यूटर को हिन्दी सबसे पहले किसने सिखाई होगी। यह सवाल कभी न कभी आपके मन में भी आया होगा। जवाब है आईआईटी-कानपुर ने। गूगल से पहले कंप्यूटर पर हिन्दी लिखने का तोहफा पूरी दुनिया को आईआईटी कानपुर ने ही दिया था। इसी का नतीजा है कि आज चाहे ई-मेल हो या व्हॉट्सएप हम तेजी से हिन्दी लिख सकते हैं। अगर लिखने में परेशानी हो रही हो तो इसे बोलकर लिखा जा सकता है। जो बोलते हैं, शब्दश: वैसा ही लिख जाता है। यह काम एक या दो दिन में नहीं, बल्कि चार दशकों की मेहनत का परिणाम है। आज हिंदी दिवस है, ऐसे में दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की स्पेशल रिपोर्ट में हिंदी की शुरुआत के बारे में आप भी पढि़ए

सिर्फ अंग्रेजी जानते थे
दरअसल, आईआईटी कानपुर में एक समय ऐसा था जब ज्यादातर टीचर या स्टूडेंट सिर्फ अंग्रेजी जानते थे। संस्थान ऐसे स्थान पर था जहां लोगों का हिन्दी बोलने वालों से हर पल वास्ता रहता था। ऐसे में शुरुआत से ही यहां हिन्दी पर ध्यान दिया गया। एक समय ऐसा भी आया जब हिन्दी विभाग का सृजन भी हुआ। इसमें हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार रहे गिरिराज किशोर की भूमिका अहम रही।

80 के दशक में पहल
80 के दशक में यहां के कम्प्यूटर साइंस विभाग ने एक तरह से हिन्दी को अपना लिया। इसके पीछे उद्देश्य यह भी था अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी कुछ ऐसा किया जाए जिससे इनका लिखना और अनुवाद आसान हो जाए। तब टारगेट यह था कि अगर ऐसा किया जाता है तो 40 करोड़ जनता को इसका लाभ मिल सकता है। ऐसे में यहां के वैज्ञानिकों ने हिन्दी का कम्प्टूयर भाषा के साथ समन्वय करना शुरू कर दिया। लक्ष्य यह था कि किस तरह इसे कम्प्टूर से जोड़ा जाए। की-बोर्ड तैयार किया जाए।

मशीन लैंग्वेज से जोड़ा
आईआईटी कानपुर के आरएमके सिन्हा और वीना बंसल की भूमिका अहम रही। करीब तीन दशक तक इन्होंने देवनागरी पर शोध किया। एक-एक अक्षर को कम्प्यूटर की भाषा में ढाला। इनके उच्चारण को इसमें समाहित किया। इसे कम्प्यूटर की भाषा बनाने में देश के अन्य संस्थान जैसे सीडैक भी साथ आए। प्रोफेसर सिन्हा ने देश के अनेक स्थानों पर जाकर हिन्दी के प्रति अपना समर्पण जारी रखा और आखिर इसे कम्प्यूटर की भाषा बनाने में सफलता पाई। दशकों के प्रयास के बाद हिन्दी को न सिर्फ कम्प्यूटर के माध्यम से लिखा जाने लगा बल्कि आगे इसमें अनुवाद भी होने लगा। फिर बोल कर लिखने की भी शुरुआत हो गई। आज गूगल की चर्चित हिन्दी इसी शुरुआत का परिणाम है।

खोज को &जिष्ठ प्रणाली&य दिया था नाम
प्रो सिन्हा ने कंप्यूटर पर हिन्दी लिखने की अपनी ईजाद को &जिष्ठ प्रणाली&य नाम दिया था। इस प्रणाली के तहत अंग्रेजी अक्षरों की सहायता से ही कंप्यूटर पर हिन्दी लिखी जा सकती थी। इसके लिए उन्होंने कंप्यूटर पर एक विशेष प्रकार का सॉफ्टवेयर भी तैयार किया था, हालांकि देश में कंप्यूटर का अधिक चलन न होने के कारण हिन्दी लिखने की &जिष्ठ प्रणाली&य अधिक प्रचलन में नहीं आ सकी। इससे इसका प्रयोग सिर्फ एजुकेशनल संस्थानों में ही होता रहा। इसी प्रणाली के तहत कुछ साल बाद आईआईटी कानपुर ने अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद की प्रक्रिया खोज निकाली।

वेद-पुराण की साइट भी बनाई
आईआईटी के प्रोफेसर आर प्रभाकर ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए एक ऐसी धार्मिक साइट बनाई जहां वेद-पुराण को पढ़ा जा सकता है। इस साइट पर दुनिया भर के लोग जुड़ कर अपना ज्ञान बढ़ाते हैं। आईआईटी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने एक शोध पत्र-ए जर्नी फ्रॉम इंडियन स्क्रिप्ट्स प्रोसेसिंग टु इंडियन लैंग्वेज प्रोसेसिंग का हवाला देते हुए बताया कि इसमें हिन्दी के कम्प्टूरीकरण की पूरी कहानी दर्ज है।

आईआईटी के प्रोफेसर आर प्रभाकर ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए एक ऐसी धार्मिक साइट बनाई जहां वेद-पुराण को पढ़ा जा सकता है। इस साइट पर दुनिया भर के लोग जुड़ कर अपना ज्ञान बढ़ाते हैं। आईआईटी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने एक शोध पत्र-ए जर्नी फ्रॉम इंडियन स्क्रिप्ट्स प्रोसेसिंग टु इंडियन लैंग्वेज प्रोसेसिंग का हवाला देते हुए बताया कि इसमें हिन्दी के कम्प्टूरीकरण की पूरी कहानी दर्ज है।