कानपुर (ब्यूरो)। आईआईटी कानपुर आने वाले दिनों में ह्यूमन डिसीज से जुड़ी साइड इफेक्ट फ्री मेडिसिन बनाएगा। बॉयोसाइंस एंड बॉयो इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में इस पर काम स्टार्ट भी हो गया है। पहली रिसर्च जी प्रोटीन कपल रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) और बेटा रेस्टेन प्रोटीन के बीच की गई है। इस रिसर्च के बाद अब टारगेटेड और साइड इफेक्ट फ्री मेडिसिन बनाने पर काम स्टार्ट हो गया है। डिपार्टमेंट की रिसर्च को इंटरनेशनल जर्नल मॉलिक्यूलर सेल के मई एडीशन में पब्लिश किया गया है। प्रो। अरुण के शुक्ला और उनकी टीम अब मेडिसीन बनाने पर काम स्टार्ट कर चुकी है। मेडिसिन का पहला ट्रायल एनिमल पर किया जाएगा।
जीपीसीआर पर रिसर्च की गई
प्रो। अरूण के शुक्ला ने बताया कि जीपीसीआर पर रिसर्च की गई है। यह हमारी बाडी की सेल्स के मेंब्रेन में रहते है। यह शरीर के प्रोसेस को रेगूलेट करते है। दिल का धडक़ना, ब्लड प्रेशर, इम्यून रिस्पांस आदि इसी पर निर्भर है। बाजार में मिलने वाली आधी दवाएं जीपीसीआर के जरिए काम करती है। जीपीसीआर को समझने के लिए लैब में रिसर्च हो रही है। जाना जा रहा है कि यह कैसे काम करता है और कैसे हम इसको आधार बना कर अन्य मेडिसिन बना सकते है
खास तरह का प्रोटीन
बताया कि सेल में खास तरह का प्रोटीन होता है, जिसे हम बेटा रेस्टेन बोलते है। यह जीपीसीआर को रेगूलेट करने में इंपार्टेंट रोल अदा करते है। अभी तक रिसर्च फील्ड में यह पता नहीं था कि जीपीसीआर को बेटा रेस्टेन किस प्रकार से रेगूलेट करता है। एक एटॉमिक रिजोल्यूशन कंट्रस्ट्रक्चर खोजा है, बेटा रेस्टेन का। यह खोज इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी मैथड की हेल्प से की गई है। जिससे हमें जीपीसीआर और बेटा रेस्टेन को किस तरह से एक्टिवेट करते है। साथ ही आपसी प्रक्रिया का भी पता लगाया गया है।
अब होगी ड्रग डिस्कवरी
जीपीसीआर और बेटा रेस्टेन की आपसी प्रक्रिया पता लगने के बाद आईआईटी में ड्रग डिस्कवरी पर काम स्टार्ट हो गया है। यहां मनुष्यों में होने वाली अलग-अलग बीमारियों की ऐसी दवाओं को खोजा जा रहा है जो कि साइड इफेक्ट फ्री हो और सीधा टारगेट पर काम करें।
गठिया और सूजन का इलाज
इस रिसर्च में जांच किए गए रिसेप्टर्स में से पूरक रिसेप्टर्स की भी यहां जांच की गई है, जो रूमेटोइड गठिया जैसे सूजन संबंधी विकारों के इलाज के लिए इंपार्टेंट है। इसका यूज करते हुए गठिया और सूजन की मेडिसिन बन सकती है। इसके अलावा रिसर्च में अलग अलग बीमारियों को कम करने या रोकने मे कारगर रिसेप्टर्स भी मिले है
स्विटजरलैड की यूनिवर्सिटी के साथ
इस रिसर्च में स्विट्जरलैंड की बेसल यूनिवर्सिटी से डॉ मोहम्मद चामी भी शामिल हैं। यह डीबीटी वेलकम ट्रस्ट इंडिया एलायंस और साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा समर्थित है।
यह है रिसर्च टीम
इस रिसर्च टीम का नेतृत्व प्रो। अरुण के। शुक्ला ने किया ह। इसमें पीएचडी स्टूडेंट जगन्नाथ महाराणा, परिष्मिता सरमा, शिरशा साहा, डॉ। रामानुज बनर्जी, डॉ। मनीष यादव, सायंतन साहा और विनय सिंह शामिल हैं।
साइड इफेक्ट भी करती है दवाएं
एक्सपर्ट का मानना है कि दर्द, फीवर, डायबिटीज, कैंसर और हार्ट समेत कई दवाएं ऐसी होती है, जिनका ज्यादा समय सेवन करने से मनुष्य को अलग-अलग बीमारियां घेर लेती है। इसे साइड इफेक्ट कहते है