कानपुर (ब्यूरो) जेनेटिक बीमारी लीबर कंजेनिटल एमोरोसिस व रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा के पेशेंट्स के लिए जीन थेरेपी को अचूक इलाज माना जा रहा है। एक्सपट्र्स के मुताबिक दो दर्जन से अधिक जीन्स में आने वाली विकृतियों के कारण लीबर कंजेनिटल एमोरोसिस होती है। इसका इलाज आईआईटी कानपुर के साइंटिस्ट ने जीन्स की विकृतियों को दूर करने वाली तकनीक से संभव किया है।
स्वस्थ डीएनए में बदल देते
जीन थेरेपी को ईजाद करने वाले आईआईटी के प्रो। जयनधरन गिरधर राव व शुभम मौर्य ने इस टेक्नोलॉजी का पेटेंट भी हासिल किया है। प्रो। राव के अनुसार इस तकनीक की मदद से जीन्स के विकृत डीएनए को स्वस्थ डीएनए से बदल दिया जाता है। एडिनो-एसोसिएटेड वायरस की मदद से जीन्स में मौजूद विकृतियां को दूर किया जाता है। इससे आंखों में ²ष्टिहीनता खत्म हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस टेक्नोलॉजी का सफल प्रयोग पशुओं पर किया जा चुका है।
सभी को मिलेगा सस्ता ट्रीटमेंट
आईआईटी के डायरेक्टर प्रोफेसर अभय करंदीकर और रिलायंस लाइफ साइसेंज के अध्यक्ष केवी सुब्रमण्यम ने जीन थेरेपी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर एमओयू पर साइन किए। आईआईटी के डायरेक्टर ने कहा कि इससे आम हिन्दुस्तानियों को सस्ता उपचार मिल सकेगा। जेनेटिक नेत्र रोगों के उपचार में यह तकनीक बेहद सफल है। इसका प्रयोग अन्य रोगों के उपचार में भी किया जा सकता है। इस मौके पर इनोवेशन एवं इनक्यूबेशन सेल के प्रोफेसर अंकुश शर्मा व आईआईटी के जैविक विज्ञान एवं बायोइंजीनियङ्क्षरग (बीएसबीई) के एचओडी प्रोफेसर अमिताभ बंदोपाध्याय, प्रो जे गिरधरराव भी मौजूद रहे। बीएसबीई डिपार्टमेंट की टीम ने जीन थेरेपी का अनुसंधान किया है।
फोटोफोबिया भी बीमारी का लक्षण
जेनेटिक नेत्र रोग रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा का बिगड़ा हुआ स्वरूप ही लीबर कंजेनिटल एमोरोसिस है। इसके तहत रोगी में अंधता का रोग जन्मजात होता है। फोटोफोबिया को भी इस बीमारी का शुरुआती लक्षण माना जाता है जिसमें रोगी को दिन के प्रकाश या तेज रोशनी से परेशानी होती है। वह अंधेरे में ही रहना पसंद करता है। एक्सपट्र्स के मुताबिक माइग्रेन के गंभीर रोगियों में भी फोटोफोबिया के लक्षण होते हैं।