हक़्क़ानी पर आरोप है कि उन्होंने कथित रुप से पाकिस्तान में सेना की बढ़ती ताकत के खिलाफ़ अमरीका से मदद मांगी। माना जाता है कि हुसैन हक़्क़ानी अमरीका में रहने वाले एक 'लॉबीस्ट' हैं जिन्होंने पाकिस्तान में सेना की ओर से तख्ता पलट की संभावित कोशिशों को रोकने के लिए अमरीकी सरकार को एक ज्ञापन सौंपा था।
गुप्त ज्ञापन
हालांकि हक़्क़ानी ने ऐसे किसी भी ज्ञापन को तैयार करने या पेश करने की बात से इंकार किया है। इस बीच विवाद गहराता जा रहा है और अमरीकी सेनाओं के प्रमुख माइकल मलेन ने इस तरह का एक गुप्त ज्ञापन सौंपे जाने की पुष्टि की है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि इस ज्ञापन को उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया और इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
बीबीसी संवाददाता साजिद इक़बाल का कहना है कि हुसैन हक़्क़ानी के इस्तीफ़े ने पाकिस्तान में सत्ता पर काबिज़ लोकतांत्रिक सरकार और सेना के बीच कटु संबंधों के विवाद को हवा दे दी है।
अमरीका की मदद
इस कथित गुप्त ज्ञापन पर विवाद उस वक्त शुरु हुआ जब समाचार पत्र फाइनेंनशियल टाइम्स में पाकिस्तानी मूल के एक अमरीकी व्यापारी मंसूर इयाज़ ने लेख लिखा।
मंसूर इयाज़ ने इस लेख में मलेन को दिए गए एक ज्ञापन का हवाला देते हुए लिखा कि, ‘पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने सेना की कमान बदलने और चरमपंथी संगठनों से नाता तोड़ने की बात कही थी.’ इस लेख के मुताबिक ज़रदारी पाकिस्तान के खुफ़िया तंत्र में मौजूद उस धड़े को हटाना चाहते थे जो चरमपंथियों की ओर नरम है।
तलब हुए हक़्क़ानी
लेख के मुताबिक, ‘ज़रदारी अपनी सरकार को सेना की ओर से किए जाने वाले तख्ता-पलट से बचाने में जुटे हैं। इस बाबत उन्हें सेना को काबू में रखने के लिए अमरीका का साथ और उसकी दबंग ताकत चाहिए.’
हुसैन हक़्क़ानी को पाकिस्तान की नागरिक सरकार और ओबामा प्रशासन के बीच एक कड़ी माना जाता है और यही वजह है कि पाकिस्तानी मीडिया में उन पर ये ज्ञापन तैयार करने के आरोप लगे। इस बीच पाकिस्तान सरकार ने हुसैन हक़्क़ानी को इस्लामाबाद तलब किया है।
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