ये शब्दावली पहले दक्षिणी धुव्र के आस-पास के इलाक़ों के लिए इस्तेमाल की जाती थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि ज़मीन के 20 किलोमीटर ऊपर के हिस्से में ओज़ोन की अस्सी प्रतिशत पर्तें ग़ायब हो गई थीं। इसकी वजह थी कि ऊंचे स्थानों पर सर्द मौसम लंबे समय के लिए मौजूद रहा। ठंड में ओज़ोन की पर्तों को नष्ट करने वाला क्लोरीन रसायन बहुत अधिक सक्रिय होता है।

उपकरण

विज्ञान जगत की पत्रिका 'नेचर' में लिखते हुए वैज्ञानिकों के दल ने कहा है कि हालांकि अभी ये बता पाना असंभव है कि इस तरह का नुक़सान दुबारा कब होगा। हालांकि इससे संबंधित आंकड़े पहले प्रकाशित हो चुके हैं लेकिन इसका पूरा विश्लेषण पहली बार छपा है।

ओज़ोन की पर्तों को नष्ट करने वाले रसायन क्लोरोफ़्लोरोकार्बंस रेफ्रिजरेटर्स और अग्निशामक यंत्रों के इस्तेमाल से बाहर आते हैं। इन उपकरणों का प्रयोग पिछली शताब्दी के अंत में शुरू हुआ था। इसका प्रभाव सबसे पहले दक्षिणी ध्रुव के क्षेत्र में दर्ज किया गया था। वहां हर जाड़ों में ओज़ोन की पर्तों को भारी नुक़सान होता है।

ओज़ोन की पर्ते सूरज से निकलनेवाली तेज़ किरणों (अल्ट्रावॉयलेट) को रोकती हैं। इसकी वजह से चमड़े का कैंसर और दूसरी बीमारियां हो सकती हैं।

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