लेकिन अमरीका ने उसे खोजने में वर्षों का समय लगाया। पहली बार ओसामा 2001 में तोरा-बोरा में दिखाई दिए थे। उसके बाद उनके ऐबटाबाद में होने की पुख्ता जानकारी थी। आइए जानते हैं ओसामा की तलाश कैसे पूरी हुई

2002

सितंबर 11, 2001 को अमरीका के विश्व व्यापार केंद्र पर हुए हमले के तुरंत बाद अफगानिस्तान पर हमले किए गए। उसके बाद अमरीका की खुफिया एजेंसी सीआईए और अमरीकी सेना ने संदिग्ध अल कायदा के सदस्यों की क्यूबा के गुआंतानामो की खाड़ी में या दूसरे गुप्त जेलों में पूछताछ करना शुरू किया। सरकारी अधिकारियों ने उससे जुड़े महत्वपूर्ण लोगों जैसे कुरियरवाले, पैदल सैन्यकर्मियों और अल-कायदा को आर्थिक सहयोग देने वाले लोगों की पहचान करनी शुरू की।

गंभीर यातना दिए जाने वाले कैदियों, खासकर पानी पहुंचाने वाले और पहरेदारी करनेवालों से पूछताछ करने पर पता चला कि ओसामा बिन लादेन का एक काफी विश्वसनीय कूरियरवाला था, जिसका छद्मनाम अबू अहमद अल-कुवैती था।

2003

वर्ष 2003 के मार्च महीने में कराची ने खालिद शेख मोहम्मद को गिरफ्तार किया गया। इनके बारे में बताया जाता है कि वे 9/11 के मास्टर माइंड थे। गिरफ्तारी के बाद उन्हें थाइलैंड के गुप्त जेल में रखा गया था।

जब उससे पूछताछ करनेवाले अधिकारियों ने छद्मनाम वाले कुरियवाले के बारे में पूछा तो उन्होंने उनके बारे में अनभिज्ञता जताई और शक जाहिर करते हुए सुझाया कि हो सकता है कि वह कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हो।

सीआईए के काउंटर टेरेरिज्म सेंटर (सीटीसी) के 2002 से 2005 तक डायरेक्टर रहे जोस रॉडिग्ज ने टाइम पत्रिका को कहा था कि मोहम्मद ने ही कुछ हफ्ते या महीने पहले कुरियर के बारे में जानकारी दी थी।

हालांकि मोहम्मद ने इस बात को माना कि वे अल-कुवैती को जानते हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि अल-कुवैती का अल-कायदा से कोई लेना-देना नहीं है।

2004

उत्तरी इराक में अल-कायदा के प्रमुख लोगों में एक हसन गुल को जनवरी में पकड़ा गया। उन्होंने सीआईए को बताया कि अल-कुवैती अल-कायदा और उसके नेताओं में शामिल है।

गुल ने यह भी बताया कि कुरियर अबू फराज-अल लिबी का काफी करीबी था और उसने खालिद शेख मोहम्मद की जगह लिया था।

2005

अबू फराज-अल-लिबी को उत्तरी पाकिस्तान के मरदान शहर में मई के महीने में गिरफ्तार किया गया। सीआईए के पूछताछ में उन्होंने बताया कि जब उसे खालिद शेख मोहम्मद की जगह पर पदोन्नति दी गई तो उन्हें कुरियर से संदेश दिया था, लेकिन उन्होंने किसी और का नाम लिया था। उन्होंने भी अल- कुवैती को जानने से इनकार कर दिया था।

लेकिन जोस रॉड्रिग्ज ने बताया कि लिबी ने कुरियर के बारे में बहुत ही अहम जानकारी दी थी। लिबी ने बताया था कि कुरियर हर दो महीने में ओसामा बिन लादेन की जानकारी बाहरी दुनिया को देता है। रॉडिग्ज का यह भी कहना था कि लादेन अल-कायदा के काम-काज को पूरी तरह क्रियान्वित नहीं करता था।

हालांकि रॉड्रिग्ज ने यह भी कहा कि कड़ी पूछताछ से जो जानकारी मिली थी उससे ओसामा बिन लादेन को खोजने में काफी मदद मिली लेकिन व्हाइट हाउस इससे इनकार करता है।

उसी साल सीआईए ने अपने कई आला अधिकारियों को पाकिस्तान मे तैनात कर दिया था। सीआईए के अधिकारियों को वहीं उनके द्वारा पाकिस्तान के भीतर परिवार के लोगों को भेजे गए ईमेल और किए गए फोन से पता चला कि उनका असली नाम शेख अल अहमद है, जो पाकिस्तानी मूल का है लेकिन उसका जन्म कुवैत में हुआ था।

2009

अमरीका की खुफिया एजेंसी ने पाकिस्तान के उस क्षेत्र को चिन्हित किया, जहां से कुरियर और उनके परिवार के लोग काम करते हैं। हालांकि वे यह सुनिश्चित नहीं कर पाए थे कि असली जगह कौन सी है, जहां से वे अपनी गतिविधि चलाते थे।

इस बीच, पाकिस्तान के विदेश विभाग ने बताया कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ओसामा बिन लादेन के ऐबटाबाद के बारे में बताया था।

एक बयान में बताया गया था- जो खुफिया सूचना मिल रही है, उसके अनुसार ऐबटाबाद के उस चारदीवारी के इर्द-गिर्द विदेशियों की उपस्थिति अप्रैल के मघ्य तक बनी हुई थी।

जुलाई 2010

अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) ने कुरियर द्वारा किए गए सेटेलाइट फोन को पकड़ा, जो उन्होंने अल-कायदा के सहयोगी को पाकिस्तान के खैबर प्रांत के पख्तूनख्वाह में कोहाट और चारसाडा में किया गया था।

सीआईए के लिए काम कर रहे पाकिस्तानी एजेंट ने अल-कुवैती को पेशावर में अपनी गाड़ी चलाते हुए पाया था। उसके बाद उनके क्रिया-कलाप पर पैनी नजर रखी जाने लगी।

अगस्त 2010

अल- कुवैती की जानकारी के बगैर वह एजेंट ऐबटाबाद के तीन तल्ला मकान की चारदीवारी में प्रवेश किया जो पाकिस्तान के मिलिट्री अकादमी से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर था।

सीआईए के डायरेक्टर लियोन पनेटा ने अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ-साथ उप राष्ट्रपति जो बाइडन, विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स को इसके बारे में जानकारी दी।

अमरीकी की खुफिया एजेंसी चारदीवारी के भीतर लगातार नजर रखे हुई थी और यह पता लगा रही थी कि आखिर ओसामा बिन लादेन इसके भीतर रहता कहां हैं।

एक अमरीकी अधिकारी ने अमरीकी मीडिया को बताया कि ऐबटाबाद में एक सुरक्षित जगह की तलाश की गई और वहीं से ओसामा बिन लादेन के दैनिक क्रिया कलापों पर पैनी नजर रखी जाने लगी।

अमरीकी अधिकारी का कहना था कि सीआईए ने कैमरा और टेलिफोटो लेंस का इस्तेमाल किया और वहां की आवाज को रिकार्ड करने की कोशिश की गई जिससे कि पता चले कि भीतर क्या हो रहा है। विशेष प्रकार के उपकरणों के इस्तेमाल करने से पता चला कि वहां इंटरनेट और फोन का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

अमरीका के नेशनल जिओस्पैटियल इंटेलिजेंस एजेंसी (एनजीए) ने भी उस क्षेत्र का एक काफी सघन नक्शा तैयार किया और उस मकान की दिनचर्या को रिकार्ड किया गया।

सीआईए ने पाकिस्तान को इस ऑपरेशन में शामिल करने से मना कर दिया। सीआईए का मानना था कि अगर पाकिस्तान को इसमें शामिल किया गया तो यह मिशन नाकाम हो सकता है। सीआईए के प्रमुख पनेटा का कहना था, “वे लक्ष्य को सतर्क कर सकते थे.”

फरवरी 2011

फरवरी के मध्य तक व्हाइट हॉउस में राष्ट्रपति के साथ कई दौर की बैठक हुई। वहां इसकी पुष्टि हुई कि मिली आवाज ओसामा बिन लादेन की ही है। इसके बाद लादेन की मौजूदगी वाली जगह पर आगे की कार्रवाई तय की गई।

सीआईए के प्रमुख पेनेटा ने अमरीका के ज्वाइंट स्पेशल ऑपरेशन कमांड (जेएसओसी) के वाइस एडमिरल विलियम मैकरैवन को व्हाइट हॉउस में बुलाकर बात की और उन्हें हमले की तैयारी शुरू करने को कहा।

कई हफ्ते के बाद वे तीन प्रस्ताव लेकर आए। पहला प्रस्ताव- बी-2 बम वर्षक विमान से हमला, दूसरा– क्रूज मिसाइल से सीधे हमला और तीसरा हेलिकॉप्टर से यूएस कमांडो का हमला। पहले दोनों प्रस्ताव से नुकसान की आशंका थी।

14 मार्च, 2011

अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने पांचवीं में से पहली एसएससी की मीटिंग की अध्यक्षता की और मैकरैवन की ओर से दिए गए विकल्पों पर चर्चा की। सूचना के मुताबिक हमले को लेकर सहमति नहीं थी।

22 मार्च, 2011

एनएससी की बैठक में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उपाय सुझाने को बताया। रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स हेलिकॉप्टर हमले को लेकर संशय में थे। उनका कहना था कि यह जोखिम भरा हो सकता है।

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार उन्होंने सैन्य अधिकारियों को निर्देश दिया कि छोटे बम का इस्तेमाल किया जाए। बाद में उन्होंने कहा कि इसके लिए 2000 पाउंड के 32 बम का इस्तेमाल होगा जिससे ओसामा का शरीर पूरी तरह नष्ट हो जाएगा। बाद में सब लोगों ने हेलिकॉप्टर से हमले करने पर सहमति जताई।

26 अप्रैल, 2011

पनेटा ने 15 लोगों के साथ बैठकर मीटिंग बुलाई जिसमें मुहैया कराई गई खुफिया जानकारी की सत्यता पर बात की गई। बैठक में वहां ओसामा बिन लादेन के होने की पुष्टि हुई। लेकिन किसी भी सैटेलाइट से ओसामा और उनके परिवार के किसी सदस्य की कोई तस्वीर नहीं मिली।

सीआईए के प्रमुख ने कहा कि हमला करने की पूरी गुंजाइश है। हालांकि उपस्थित सहयोगियों को लग रहा था कि वहां ओसामा के होने के 60 से 80 फीसदी ही गुंजाइश है। इसलिए इस मसले पर राष्ट्रपति से बात करने की बात कही।

28 अप्रैल, 2011

एक अधिकारी ने कहा कि सीआईए के प्रमुख ने राष्ट्रपति और उनके सुरक्षा सहालकारों से दोपहर में हमले के समय के बारे में बात की। बैठक में इस हमले के नकारात्मक पहलू पर भी बातचीत हुई। आधे लोगों की राय थी कि हेलिकॉप्टर से हमला किया जाए और कुछ लोगों की राय थी कि मिसाइल से हमले किए जाएं।

सीआईए के प्रमुख पनेटा ने बताया, "वर्ष 2001 में तोरा बोरा की घटना के बाद यह पहली बार हुआ है कि हमारे पास ओसामा बिन लादेन के वहां होने की पुख्ता जानकारी उपलब्ध है। इसलिए हमारे लिए यह जरूरी है कि हम हमला करे.”

आखिर में ओबामा ने बैठक को यह कहते हुए समाप्त किया, “मैं आपलोगों को यह नहीं बताने जा रहा हूं कि मेरा निर्णय क्या है- मैं इसपर सोचने के लिए वापस जा रहा हूं.” उन्होंने आगे जोड़ा, “लेकिन मैं जल्द ही कोई निर्णय लेने जा रहा हूं.”

29 अप्रैल, 2011

लगभग 8 बजे (ईएसटी) को बराक ओबामा ने हेलिकॉप्टर पर चढ़ते हुए व्हाइट हाउस के डिप्लोमेटिक रूम में फोन करके बताया कि मैंने आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, वहां हेलिकॉप्टर से हमला करना है, आगे बढ़िए।

सीआईए के प्रमुख पनेटा ने एडमिरल मैकरैवन को 13:22 ईएसटी पर हमले का आदेश दिया। पनेटा ने कहा, “वहां जाओ और बिन लादेन को पकड़कर लाओ, अगर ओसामा बिन लादेन नहीं है तो उन्हें नरक से भी ढ़ूंढ़कर लाओ.”

30 अप्रैल, 2011

ओबामा ने व्हाइट हॉउस के संवाददातों के रूटीन रिहर्सल से छुट्टी लेकर मैकरैवन को 'गुड लक’ कहा।

1 मई, 2011

वेस्ट विंग से सभी पर्यटकों को हटा दिया गया, जिससे लोगों को चल रही गतिविधियों की जानकारी न मिले।

2 मई, 2011

पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अमरीकी विशेष दस्ते नेवी सील्स की कार्रवाई में ओसामा बिन लादेन मारे गए।

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