दरअसल हेस की क़ब्र को नव नाज़ी एक तीर्थस्थान का दर्जा देने लगे थे। इसे रोकने के लिए इस क़ब्र को नष्ट करने का फ़ैसला किया गया। दक्षिणी जर्मनी के वुनसिडेल शहर में बनी हेस की क़ब्र खोदी गई और उनके अवशेष निकाले गए। बाद में इन अवशेषों को जला दिया गया और राख समुद्र में बहा दी जाएगी।

रूडोल्फ़ हेस को वर्ष 1941 में पकड़ा गया था और उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। लेकिन वर्ष 1987 में बर्लिन की जेल में उन्होंने आत्महत्या कर ली। उस समय उनकी उम्र 93 वर्ष की थी।

इच्छा

अपनी वसीयत में उन्होंने वुनसिडेल शहर में दफ़नाए जाने की इच्छा जताई थी। इसी शहर में उनके माता-पिता भी दफ़नाए गए थे और उनका एक पारिवारिक घर भी यहाँ था।

उस समय स्थानीय चर्च ने उन्हें इस शहर में दफ़नाए जाने की अनुमति दी थी और तर्क ये दिया था कि मृत व्यक्ति की इच्छाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती।

लेकिन इस क़ब्र पर आने वाले धुर दक्षिणपंथियों की तादात ने उन्हें चिंतित कर दिया था। हर साल उनकी बरसी पर नव नाज़ी एक मार्च निकालने की कोशिश करते हैं।

चर्च काउंसिल के एक सदस्य हैंस जुएर्गन बुचटा ने समाचार एजेंसी एएफ़पी को बताया, "उस दौरान पूरा शहर बंद हो जाता है और अफ़रा-तफ़री का माहौल रहता है। पुलिस का भारी बंदोबस्त रहता है। हम भी क़ब्र पर मौजूद रहते हैं लेकिन हम इस स्थिति को संभाल नहीं पाते."

वर्ष 2005 में अदालत ने ऐसी सभा पर पाबंदी लगाई लेकिन इसका कुछ ख़ास असर नहीं पड़ा। आख़िरकार चर्च ने इस साल अक्तूबर से हेस के परिजनों को दिए क़ब्र का पट्टा रद्द करने का फ़ैसला किया।

हेस की एक पोती ने इस फ़ैसले पर आपत्ति की और मामला अदालत में ले गईं ताकि चर्च आगे की कार्रवाई न कर पाए। लेकिन बाद में उन्हें अपना मुक़दमा वापस लेने के लिए मना लिया गया।

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