कानपुर (ब्यूरो) एजेंसी के सूत्रों की माने तो हवाला के जरिए दूसरे देशों से पैसा कानपुर आया था। कानपुर में ये रुपये तीन भागों में बांटे गए थे। एक पार्ट कानपुर में रखा गया था, दूसरा पार्ट ईस्टर्न यूपी और तीसरा पार्ट वेस्ट यूपी भेजा गया था। प्लानिंग के मुताबिक 3 जून को पूरा पुलिस फोर्स वीवीआईपी प्रोग्राम में होगा, इसी दौरान कानपुर से सांप्रदायिक हिंसा की न सिर्फ शुरूआत करनी थी बल्कि कानपुर को पूरी तरह से हिंसा की आग में झोंक देना था। इसके बाद पूरे देश में दंगा फैलाने की साजिश रची गई थी। अपनी रिपोर्ट में एजेंसी ने जिक्र किया है कि कानपुर में तैनात पुलिस अधिकारियों के एक्टिव होने की वजह से कानपुर में ही इस सांप्रदायिक चिनगारी को बुझा दिया। पीएसी और आरएएफ के साथ पुलिस की टीमों ने गलियों में घुस घुस कर लोगों को चेतावनी दी।
पुलिस के एक्टिव होते ही भागे बवाली
सूत्रों के मुताबिक ये भी कहा गया है कि पुलिस का पहला प्रयास था कि दंगा आगे न बढ़े, इसके लिए पुलिस ने जब तक एरिया डोमिनेशन स्कीम लागू की। उससे पहले ही बवाली कानपुर की सीमा छोड़ चुके थे। दरअसल बवाल में शमिल लगभग 50 लोगों को ये आदेश था कि कानपुर के बाद पड़ोसी जिले में पहुंचकर उपद्रव करना है लेकिन शासन के तुरंत सख्त होने की वजह से बवाली अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सके।
एनआईए के टारगेट पर 50 बवाली
3 जून को बवाल के दौरान सैकड़ों लोगों की फुटेज सामने आई, लेकिन इनमें से केवल 50 बवालियों को टीम ने चिन्हित किया है। टीम के सूत्रों की माने तो ये बवाली किस जिले के थे? कौन थे? इसकी जानकारी जफर हयात हाशमी और जावेद को है। उनसे पूछताछ के बाद इन 50 अंडरग्राउंड बवालियों की तलाश में छापेमारी की जाएगी।
डी-टू गैंग का उन्नाव नया ठिकाना
डी-टू (जिला स्तर पर नंबर दो पर पंजीकृत अपराधी गैंग) को लेकर चल रही जांच में एक नया तथ्य सामने आया है। अब तक माना जा रहा था कि कानपुर से डी-टू का अस्तित्व खत्म हो चुका है। नई सड़क उपद्रव में गैंग के सदस्यों के नाम सामने आए तो एक बार फिर गिरोह की कुंडली खंगाली जाने लगी। पुलिस की जांच का नया पर्दाफाश हुआ कि गैंग वाकई अभी ङ्क्षजदा है और उसका नया ठिकाना उन्नाव जिला है। गिरोह बनाने वाले भाइयों के परिवार अब उन्नाव शिफ्ट हो गए और उनके बेटे गैंग की कमान संभाले हैं। पहले जहां गैंग कानपुर तक सीमित था, अब उसका प्रदेश के करीब 12 जिलों में प्रभाव है, वहीं चार से पांच महानगरों में गिरोह की गतिविधियां हैं।
ये है गैैंग की हिस्ट्री
पुलिस रिकार्ड के अनुसार डी-टू का पंजीकरण नौ जून, 1997 को हुआ। उस वक्त गिरोह के नौ सदस्य थे, जिनका सरगना तौफीक उर्फ बिल्लू था। गिरोह में इसके अलावा अतीक, शफीक, इकबाल, रफीक और अफजाल सरगना बिल्लू के भाई थे, जबकि तीन अन्य सदस्य इशरत, लईक कालिया और वीरेंद्र दुबे थे। 19 जनवरी, 2010 को उसे इंटरस्टेट गैंग में दर्ज कर लिया गया और इसका नाम आईएस-273 हो गया। पिछले एक दशक से गिरोह की गतिविधियां सामने नहीं आई, तो यही माना गया कि डी-टू दम तोड़ चुका है।
डी-टू ने चोला बदला, शहर ब,दला
जांच में सामने आया है कि भाड़े पर हत्याएं, लूट और डकैती की वारदातों को अंजाम देने वाला गैंग अब धार्मिक संस्था की आड़ में काम कर रहा है। गैंग के सदस्य दहशत और पैसों के दम पर प्रभाव वाले करीब 12 जिलों में एक वर्ग विशेष की बस्ती बसाने और बढ़ाने के मिशन पर जुटे हैं। गैंग के पूर्व सरगना रहे शफीक की पत्नी चमन उन्नाव के मुस्लिम बहुल मोहल्ले में परिवार के साथ रह रही है। अतीक का परिवार शुक्लागंज में है, जबकि एक अन्य भाई के परिवार के किसी गांव में बसने की सूचना है। चमन भी अपने पति की राह पर चली और उसके खिलाफ अनवरगंज में रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज है। परिवार की कमान भी उसके हाथों में है। पुलिस जांच के मुताबिक हरदोई, रायबरेली, फतेहपुर, प्रयागराज, वाराणसी, उन्नाव, कानपुर नगर, कानपुर देहात आदि दर्जन भर जिलों में गैंग सक्रिय है। हैदराबाद, मुंबई, पुणे आदि महानगरों में भी गैंग के लोग मौजूद हैं। नई सूचना के बाद पुलिस अब डी-टू गैंग बनाने वाले भाइयों के परिवारों से जुड़ी जानकारियां जुटा रही है।