ब्राज़ील में सबसे बड़ी और फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय संस्था फ़ीफ़ा से मान्यता प्राप्त, साओ पाअलो सॉकर कोचेज़ एसोसिएशन में वो एक महीना रहेगे। इमरान अपनी कामयाबी का सारा श्रेय अपने कोच ज़ुआं मार्कोस त्रोइया को देते हैं।
उन्होंने बीबीसी को बताया, “पिछले साल मुझे जेल में डाल दिया था, मैं पथराव नहीं कर रहा था, सिर्फ़ विरोध कर रहा था, लेकिन दो दिन जेल में रहा, मेरे कोच मुझे छुड़ाने नहीं आते तो मैं आज विदेश नहीं जा रहा होता.” उसके ख़िलाफ़ अब भी कुछ मामले दर्ज हैं और वो सरकार से माफ़ी की अपील करना चाहते हैं।
वर्ष 2010 में घाटी में हिंसा का एक लंबा दौर चला, जिसमें सैकड़ों युवा पथराव के आरोप में जेल गए थे। इमरान बताते हैं कि तब डॉक्टर, इंजीनीयर और छात्र, सभी ‘आज़ादी’ का नारा लगाने सड़कों पर निकल पड़ते थे।
लेकिन वो कहते हैं, “मैं फिर कभी विरोध नहीं करूंगा, एक इंसान से कुछ फ़र्क नहीं पड़ता, मेरी वजह से मेरे पिता को जेल में गिड़गिड़ाना पड़ा, अब मैं नई शुरुआत करना चाहता हूं”।
मां का सपना
इमरान के पिता मज़दूरी करते हैं और मां घर का काम देखती हैं। एक भाई और एक बहन हैं। दोनों स्कूल में पढ़ रहे हैं। घर की माली हालत ठीक ना होने के बावजूद इमरान कहते हैं कि उनकी मां का सपना था कि वो फ़ुटबॉल खेले। इसीलिए वो सात साल से मेहनत कर रहे हैं।
इमरान के मुताबिक़ वो ज़िला स्तर पर कई बार खेले, लेकिन तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए क्वालिफ़ाई करने के बावजूद चूक गए। खेलने के लिए जन्म प्रमाण-पत्र चाहिए था और पिता के अनपढ़ होने की वजह से उनके पास ये नहीं था। अब ब्राज़ील जाने के लिए पासपोर्ट बना तो उसके लिए इमरान ने ख़ुद ही जन्म प्रमाण-पत्र बनवाया।
इमरान कहते हैं, “कश्मीर के युवा में फुटबॉल का हुनर है, यहां क्रिकेट नहीं बल्कि सब फुटबॉल खेलना चाहते हैं, तो जो बेरोज़गार लड़के हैं वो यही सीखना चाहते हैं”। इमरान सिर्फ़ दसवीं पास हैं, लेकिन जहां से फ़ुटबॉल सीखी, वहीं अब कोच के तौर पर काम कर रहे हैं। वो कहते हैं कि ब्राज़ील में प्रशिक्षण लेने के बाद वो ये काम जारी रखेगा ताकि कमाई होती रहे, साथ ही बतौर खिलाड़ी भी आगे बढ़ने की कोशिश करेगा।
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