कानपुर(ब्यूरो)। वह दौर सन् 1973 का था, जब 15 अगस्त को पद्मश्री सम्मान मिलने की खुशी में &झंडा ऊंचा रहे हमारा&य के रचयिता श्याम लाल गुप्त &पार्षद&य नंगे पांव ही कानपुर से राष्ट्रपति भवन पहुंच गए। वहां पहुंचने पर उनके लिए जूते का इंतजाम किया गया और अगले दिन उन्हें पद्मश्री का सम्मान दिया गया। आज हम इन बातों से आपको क्यों रूबरु करा रहे हैं, शायद इसका आपने अंदाजा लगा लिया होगा। दरअसल दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने अपने रीडर्स के लिए स्वतंत्रता दिवस पर पद्मश्री श्याल लाल गुप्त &पार्षद&य पर एक खास रिपोर्ट तैयार की है। जिसे पढक़र आपके अंदर भी देश भक्ति भावना जाग उठेगी।
1924 में पहली बार गाया
श्यामलाल गुप्त पार्षद जी का जन्म 9 सितंबर 1896 को नर्वल गांव में हुआ था, वह जीवन भर नंगे पैर ही चले थे। शिक्षा-दीक्षा के चलते शहर आ गए और जनरलगंज इलाके में एक छोटे से मकान में बस गए। पार्षद जी गीत, लेख लिख कर लोगों को आजादी के लिए जागरूक करते थे। अंग्रेज अफसरों को जब पार्षद जी की हकीकत पता चली तो गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। जेल से छूटने के बाद बाद इस गीत को तैयार करने के लिए फूलबाग में बरगद के पेड़ के नीचे एकांत में बैठा करते थे। उन्होंने पहली बार 13 अप्रैल 1924 को फूलबाग मैदान में हजारों लोगों के सामने ये गीत गाया। जवाहर लाल नेहरू भी इस सभा में मौजूद थे। नेहरू जी को उनका ये गीत बेहद पसंद आया। वह उस वक्त भले ही लोग श्याम लाल गुप्त को नहीं जानते होंगे, मगर उन्होंने कहा था कि आने वाले दिनों में पूरा देश राष्ट्रीय ध्वज पर लिखे उनके गीत से उन्हें पहचानेगा।
बिना टिकट पहुंच गए दिल्ली
पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बुलावे पर दिल्ली गए और 15 अगस्त 1952 को लालकिला पर यही गीत गुनगुनाया। जिसके बाद जीवन की महान उपलब्धियों को देखते हुए सरकार ने 15 अगस्त 1973 को पार्षद जी को पद्मश्री से सम्मानित किया। परपौत्र अंकित गुप्ता ने बताया कि पद्मश्री मिलने की खबर से वह बहुत खुश हुए थे। वह अवॉर्ड लेने के लिए कानपुर से दिल्ली बिना टिकट और नंगे पैर ही राष्ट्रपति भवन पहुंच गए थे, धोती और कुर्ता में पुरस्कार लेने पहुंचे पार्षद को देखकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रो पड़ी थीं। जहां उनका सम्मान किया गया था। पार्षद जी की परपौत्र अंकित बताते हैं, कि पार्षद जी का जीवन बेहद कठिनाइयों में गुजरा था। जिंदगी के आखिरी दिनों में इन्हें उर्सला हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। 11 अगस्त 1977 को इनकी मौत हो गई।
पहचान खो रही धरोहर
जनरलगंज स्थित छोटे से घर के निचले कमरे में इसी कुर्सी पर बैठकर विजयी विजय विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा गीत रचने वाले श्याम लाल गुप्त पार्षद की ये धरोहरें आज अपनी पहचान खो रही है। घर जर्जर हो चुका है। छत से बारिश का पानी टपकता है। हालत है कि कभी भी ये अमूल्य निशानियां छत के मलबे के नीचे दबकर हमेशा के लिए खत्म हो सकती है। पार्षद जी के वारिस धरोहरों को इसी मकान के एक कोने में रखकर तीन छोटे-छोटे और जर्जर कमरों में गुजर-बसर कर रहे हें। बावजूद इसके कोई नेता सुध लेने नहीं आ रहा है। पौत्र संजय गुप्ता और परपौत्र अंकित कहते हैं कि वह चाहते हैं कि इस मकान का जीर्णोद्धार किया जाए, ताकि पार्षद जी की धरोहर खत्म होने से बचाई जा सके।
यह भी जान लीजिए
- पार्षद जी गीत, लेख लिख कर लोगों को आजादी के लिए जागरूक करते थे
- अंग्रेज अफसरों को जब पार्षद जी की हकीकत पता चली तो गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
- पहली बार 13 अप्रैल 1924 को फूलबाग मैदान में हजारों लोगों के सामने ये गीत गाया
- जवाहर लाल नेहरू भी इस सभा में मौजूद थे। उन्हें यह झंडा गीत बहुत अत्यधिक पसंद आया
- नेहरू जी ने कहा था कि एक दिन पूरा देश राष्ट्रीय ध्वज पर लिखे उनके गीत से उन्हें पहचानेगा।