कानपुर (ब्यूरो)। ऑटो लिफ्टिंग यानी वाहन चोरी ने एक इंडस्ट्री का रूप ले लिया है। फिर इंडिस्ट्रयल कैपिटल कहा जाने वाला कानपुर इस मामले में कैसे पीछे रह सकता है। कमिश्नरेट पुलिस के तमाम सुरक्षा दावों के बावजूद कानपुर वाहन चोरी में भी पूरे यूपी में टॉप पर है। जबकि मेरठ दूसरे और गाजियाबाद तीसरे नंबर पर है। सिर्फ कानपुर में औसतन चार बाइक और एक कार डेली चोरी होती हैं। जबकि रिकवरी चार में सिर्फ एक बाइक की होती है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2023 में ही शहर से 1217 बाइक चोरी हुईं और बरामद सिर्फ 300 के करीब ही हुईं। इसी तरह 290 कार चोरी हुईं जिनमें 65 बरामद की गई हैैं। यानि शातिर ऑटो लिफ्टर्स की नजर आपकी गाड़ी पर लगी हुई। जरा सी लापरवाही हुई और गाड़ी गायब।
मेरठ को पछाड़ कर
कोविड के दौरान पूरे प्रदेश में बंदी थी। लिहाजा दूसरे क्राइम की तरह ऑटो लिफ्टर्स भी अपनी जान की खैर मनाए बैठे थे। हालांकि इस दौैरान यानी 2020 में ऑटो लिफ्टर्स का गढ़ कहे जाने वाले मेरठ में केवल 234 बाइक और 067 कार चोरी हुई। वहीं कानपुर में 198 बाइक और 17 कार चोरी हुईं। अब नार्मल टाइम में यानी 2022 में ये संख्या डबल हो गई और 2023 में मेरठ में बाइक चोरी पर तो कंट्रोल रहा लेकिन कार चोरी में ये आंकड़ा फिर बढ़ गया। साल 2022 और 2023 दोनों ही साल कानपुर इस मामले में टॉप पर रहा।

मिनटों में कट जाती हैं गाड़ी
यूपी के हर जिले में कोई न कोई कबाड़ी मार्केट ऐसा होता है कि जहां चोरी की गाडिय़ां काटी जाती हैैं या खरीदी जाती हैैं। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कानपुर में ये मार्केट पहले केवल फजलगंज में था लेकिन अब कानपुर से उन्नाव तक ऐसे पांच से छह कारखाने हैैं जहां चोरी की गाडिय़ों की कटिंग होती है। पुलिस की मानें तो अगर कानपुर में कहीं गाड़ी चोरी होती है तो सबसे पहले इन गोदामों में छापेमारी की जाती है, जहां बड़े-बड़े गैराज बने हैैं।

कानपुर से चोरी, नेपाल में बेचते
अगर यहां गाड़ी न मिले और गाड़ी चोरी होने के बाद लंबा समय हो गया हो तो पुलिस मेरठ या संभल पुलिस की मदद लेती है। हालांकि मेरठ और संभल में नोएडा, दिल्ली और गुडग़ांव से चोरी हुई गाडिय़ां ज्यादा आती हैैं। अगर गाडिय़ां यहां भी नहीं मिलती हैैं तो ये गाडिय़ां नेपाल बॉर्डर पर बिक जाती हैैं और गाडिय़ां नेपाल में चलाई जाती हैैं। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि कानपुर, फतेहपुर, प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ और ईस्टर्न यूपी के जिलों से चोरी गाडिय़ां नेपाल मेें ही बिकती हैैं।

आस पास के जिलों से आते हैं चोरी करने
कमिश्नरेट पुलिस ने फतेहपुर, प्रयागराज, कानपुर देहात, झांसी और जालौन के ऑटो लिफ्टर्स को अरेस्ट करके जेल भेजा है। इसके अलावा कानपुर के भी लोकल ऑटो लिफ्टर्स जेल गए हैैं। दरअसल आस पास के जिलों से कानपुर की सीमा पर किराए पर कमरा लेकर गैैंग के मेंबर्स अलग-अलग रुकते हैैं। उसके बाद बाइक चोरी करने के बाद इन्हीं कमरों के आस-पास सुनसान स्थान, रेलवे स्टेशन, पार्किंग, गुमनाम पार्किंग में बाइक खड़ी कर देते हैैं। इस दौरान कस्टमर मिलने पर निकालकर बेच देते हैैं। वहीं कार चोरी के बाद उसे बेचना थोड़ा मुश्किल होता है। ये कार की नंबर प्लेट बदलकर किसी गैराज में खड़ी कर देते हैैं और फिर कस्टमर तलाशते हैैं।

कम्पयूटर से तैयार करते फर्जी आरसी
पकड़े गए ऑटो लिफ्टर्स से पूछताछ में एक समानांतर आरटीओ ऑफिस चलाने का भी मामला सामने आया। पुलिस के मुताबिक गैंग में अलग अलग तरह के एक्सपर्ट होते हैं। सभी का काम बटा होता है। गाड़ी चुराने का काम अलग लडक़े करते हैं और कस्टमर तलाश कर बेचने की जिम्मेदारी गैंग के दूसरे मेंबर्स की होती है। वहीं गैंग में एक मेंबर ऐसा होता है तो कंप्यूटर से बिल्कुल ओरिजनल की तरह फर्जी आरसी डिजाइन करके बना लेते हैैं। नार्मल चेकिंग के दौरान चेकिंग करने वाले भी शक नहीं करते हैं और ऑटो लिफ्टर्स बच जाते हैैं।

पीडि़त काटता है सिर्फ चक्कर
जिस व्यक्ति की गाड़ी चोरी होती है, वह केस दर्ज कराने के बाद इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम लेने के प्रयास में रहता है। दरअसल क्लेम लेने के बाद वह दूसरा वाहन जल्दी से जल्दी खरीदना चाहता है। लेकिन इसके लिए जरूरी होती है पुलिस की फाइनल रिपोर्ट। इस रिपोर्ट के बाद ही इंश्योरेंस कंपनी क्लेम देती है। लेकिन पुलिस भी इतनी आसानी से एफआर नहीं लगाती है। वहीं अगर गाड़ी बरामद हो गई तो गाड़ी कोर्ट से रिलीज होती है। जिसमें भी अक्सर लंबा समय लग जाता है। पीडि़त थानों के चक्कर लगाता रहता है।