ख़ालिद ने मुझसे कहा कि उसके आका ओसामा बिन लादेन अफ़ग़ानिस्तान में छिपे हैं और वो अपना पहला टीवी-इंटरव्यू बीबीसी को देना चाहते हैं। बीबीसी अरबी सेवा के मेरे सहयोगी निक पेल्हम पहले से ही ख़ालिद के सम्पर्क में थे और उन्होंने ही हमारी मुलाक़ात का इंतज़ाम किया था।
बड़े पैमाने पर हत्याओं के अभियोग में मुक़दमे का सामना कर रहे सऊदी अरब के ख़ालिद फ़व्वाज़ उन पांच संदिग्ध चरमपंथियों में से एक हैं जिन्हें ब्रिटेन ने बीते हफ्ते ही अमरीका प्रत्यर्पित किया है।
ख़ालिद और उनके सहयोगी अब्दुल बारी पर नैरोबी और दार-ए-सलाम स्थित अमरीकी दूतावासों में वर्ष 1998 में हुए बम धमाकों में हाथ होने का अभियोग है जिनमें 224 लोग मारे गए थे।
दोनों ही अब न्यूयॉर्क के फ़ेडरल कोर्ट में अपना बचाव कर रहे हैं। वर्ष 1998 में अपनी गिरफ्तारी से पहले ख़ालिद लंदन में ओसामा बिन लादेन के मीडिया अधिकारी के तौर पर काम करते थे।
एमआई-5 से सम्पर्क
ऐसी ख़बरें आती रहीं कि नब्बे के दशक में ख़ालिद ब्रिटेन की घरेलू ख़ुफ़िया सेवा एमआई-5 के नियमित सम्पर्क में थे, हालांकि इस सम्पर्क से दोनों से पक्षों को निराशा हाथ लगी।
एमआई-5 को शायद उम्मीद थी कि इससे उसे ब्रिटेन में रहने वाले इस्लामी चरमपंथियों के बारे में सुराग हाथ लगेगा, वहीं ख़ालिद को लगता था कि वो इस सम्पर्क के बूते ब्रिटेन में महफूज़ रहेंगे।
लेकिन पूर्वी अफ्रीका में अमरीकी दूतावासों पर बम हमलों के बाद अमरीका के ही आग्रह पर उन्हें पकड़ लिया गया जिसके बाद से ही वो प्रत्यर्पण के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे।
साल 1996 की गर्मियों में उन्हीं दिनों पश्चिम-एशिया में तनाव बना हुआ था क्योंकि दो महीने पहले ही सऊदी अरब के धाहरान में यूएस एयरफोर्स के बैरकों पर ज़बर्दस्त हमले में अमरीका के 19 सैनिक मारे गए थे।
तब ओसामा बिन लादेन ने ये तो नहीं कहा था कि इस हमले में उनका हाथ है, लेकिन उन्होंने अपनी रज़ामंदी ज़रूर ज़ाहिर की थी। ये वही समय था जब लादेन ने सीआईए की वजह से सूडान का अपना ठिकाना छोड़कर अफ़ग़ानिस्तान के पहाड़ी इलाके में पनाह ली थी।
'माथे का निशान, पक्का मुसलमान'
ख़ालिद फ़व्वाज़ से मिलने के लिए मैं अपने सहयोगी निक पेल्हम के साथ उस होटल पहुंचा जहां वे ठहरे थे। थोड़ी देर में हमारे सामने मज़ूबत कदकाठी वाला एक व्यक्ति आया जिसका लिबास सऊदी अरब के लोगों जैसा था। उनके माथे पर एक निशान बना था जो बता रहा था कि वो नमाज पढ़ने से कभी नहीं चूकते और पक्के मुसलमान हैं।
ख़ालिद ने वक्त ज़ाया किए बिना सीधे शब्दों में कहा, ''शेख़ अबू अब्दुल्लाह आपसे मिलने के लिए तैयार हैं। वे अपना पहला टीवी-इंटरव्यू बीबीसी को देना चाहते हैं.''
ओसामा बिन लादेन के दोस्त और अनुयायी उन्हें इसी नाम से पुकारते थे। वे सूडान छोड़ने से पहले एक अख़बार को साक्षात्कार दे चुके थे। इसके पांच साल बाद अमरीका पर 9/11 हमला हुआ और ओसामा बिन लादेन के वीडियो अल जज़ीरा टीवी पर दिखाई दिए।
ख़ालिद ने जब ओसामा बिन लादेन से मुलाक़ात की पेशक़श की तो मैं और निक दोनों यही सोच रहे कि क्या ऐसा करना महफ़ूज़ होगा। इसकी वजह ये थी कि कुछ दिनों पहले ही ओसामा बिन लादेन और अलक़ायदा ने अमरीका के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा की थी।
इंटरव्यू की तैयारी
ख़ालिद शायद हमारी सोच को भांप गए थे। वो बोले, ''मैं इस घोषणा के समय को लेकर शेख़ से सहमत नहीं हूं, लेकिन आप चिंता न करें, वो आपकी सुरक्षा का इंतज़ाम करेंगे, आप उनके मेहमान होंगे.''
एक बात तो कहनी पड़ेगी, ख़ालिद अपनी ज़बान के पक्के थे। बाद के महीनों में पश्चिम के कई पत्रकार अफ़ग़ानिस्तान गए और सुरक्षित वापस लौटे।
ख़ालिद ने अपनी योजना हमें बताई, कहा ओसामा बिन लादेन नहीं चाहते कि हम उनसे मिलने के लिए पाकिस्तान के रास्ते आगे बढ़ें। उन्होंने कहा, ''आईएसआई आपका पीछा करने लगेगी.'' ख़ालिद ने कहा कि बजाए इसके हम दिल्ली जाएं और वहां से सीधे जलालाबाद की उड़ान पकड़ें।
योजना ये थी कि जलालाबाद हवाई अड्डे पर उतरने के बाद बीबीसी की टीम को नंगाहर प्रांत के पहाड़ी इलाके में ले जाया जाएगा जहां ओसामा बिन लादेन बीबीसी को अपना पहला टीवी-इंटरव्यू देंगे।
इधर हमारे अफ़ग़ानिस्तान जाने के लिए वीज़ा और दूसरी ज़रूरी तैयारियां हो ही रही थीं कि हमारे रवाना होने के सिर्फ़ दो दिन पहले घटनाक्रम तेज़ी से बदला।
तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने दक्षिणी पहाड़ी गढ़ से राजधानी काबुल की ओर आक्रामक तरीके से बढ़ना शुरू कर दिया। ऐसे में ओसामा बिन लादेन ने लंदन में बैठे ख़ालिद के पास संदेश भिजवाया, ''बीबीसी से कहिए हालात सामान्य होने तक इंतज़ार करें.''
और इसके बाद पांच साल बीत गए, अमरीका पर 9/11 का हमला हुआ और ओसामा बिन लादेन अफ़ग़ानिस्तान से भागकर पाकिस्तान पहुंच गए। रही बात ख़ालिद की तो वो इसके बाद सिर्फ़ दो साल तक आज़ाद घूम सके और इसके बाद मेरी उनसे कभी मुलाक़ात नहीं हुई।
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