कानपुर (ब्यूरो) तिरंगों से से मंच पर एक तरफ कल्चरल प्रोग्राम ने समां बांध रखा था तो दूसरी तरफ पुलिस बैैंड से जन गण मन की धुन बज रही थी। सामने विशिष्ट और अति विशिष्ट अतिथि। उनके पीछे हजारों की संख्या में लोगों की भीड़। लोगों की ये भीड़ सुबह से ही घर से निकल पड़ी थी। ये लोग अपनी मिट्टी के बीच से देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और यशस्वी प्रधानमंत्री को देखने और सुनने आई थी। देर हुई तो भी लोगों ने धैर्य नहीं खोया। तेज धूप और लू के बीच लोग घंटों अपने नेता का इंतजार करते रहे और जब वे आए तो मंच से लेकर दर्शकों तक जय श्री राम का उद्घोष गूंज उठा।
इस सोच को मेरा प्रणाम
पीएम ने कहा कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पिता धार्मिक थे। वह इतने गरीब थे कि वाहन से सफर नहीं कर सकते थे। लोग गांव में बांटने के लिए प्रसाद लाते थे जबकि उनके पिता जहां जाते थे वहां का एक पत्थर लेकर आते थे। कई धार्मिक स्थानों के पत्थर वह गांव मेें लाकर एकत्र करते थे। इसके बाद गांव के लोग भी उन पत्थरों में धर्म देखने लगे। देखते ही देखते वहां मंदिर बन गया और इस स्थान का नाम पथरी देवी पड़ गया। जीवन में ऐसा संघर्ष इंसान को इंसान बनने में बहुत मदद करता है। यहां आना जीवन में एक सुखद अनुभव है। यह मंदिर एक भारत श्रेष्ठ भारत का प्रतीक है। मैैं उनके पिताजी की सोच को प्रणाम करता हूं। यहां भक्ति भी है और देशभक्ति भी।
तपस्या से मिली सफलता
यहां उनके बचपन और उनकी हर वो जगह देखी जो राष्ट्रपति की यादों से जुड़ी है। उन्होंने मुझसे कई यादें साझा कीं। राष्ट्रपति ने बताया कि जब 5वीं में उनका दाखिला 5 मील दूर गांव में हुआ तो वहां पैदल जाना होता था। वह दौड़ कर जाते थे, इसलिए नहीं कि सेहत बन जाए बल्कि इसलिए कि गर्म जमीन से उनके पैर न जलें। उन्होंने कहा जीवन की इसी तपस्या ने उन्हें देश के सबसे उच्च पद पर बिठाया।
न हो कोई भेदभाव
प्रधानमंत्री ने कहा, शत प्रतिशत सशक्तिकरण, न कोई भेदभाव न कोई फर्क, यही तो सामाजिक न्याय है। समरसता और समानता का बाबा साहब का सपना था, जिसे आधार बनाकर उन्होंने हमे हमारा संविधान दिया था। बाबा साहब का वो सपना आज पूरा हो रहा है। देश उस दिशा में आगे बढ़ रहा है,।
प्रतिभाओं का गला घोंटता है परिवारवाद
प्रधानमंत्री ने कहा, भारत में गांव में पैदा हुआ गरीब से गरीब व्यक्ति भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के पद तक पहुंच सकता है। लेकिन, आज जब हम लोकतंत्र की इस ताकत की चर्चा कर रहे हैं तो इसके सामने खड़ी परिवारवाद जैसी चुनौतियों से सावधान रहने की जरूरत है। ये परिवारवाद ही है, जो राजनीति ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में प्रतिभाओं का गला घोटता है और उन्हें आगे बढऩे से रोकता है।
मुझसे भड़के हैं परिवारवादी
प्रधानमंत्री ने कहा, मैं जब परिवारवाद के खिलाफ बात करता हूं तो कुछ लोगों को लगता है कि राजनीतिक बयान है। मैं किसी राजनीतिक दल के खिलाफ बात कर रहा हूं, ऐसा प्रचार होता है। जो लोग परिवारवाद की मेरी व्याख्या में सही बैठते हैं वो मुझसे भड़के हुए हैं। ये परिवारवादी मेरे खिलाफ अब एकजुट हो रहे हैं। वो इस बात से भी नाराज हैं कि देश का युवा परिवारवाद के खिलाफ मोदी की बातों को गंभीरता से ले रहा है। मैं कहना चाहता हूं कि मेरी बात का गलत अर्थ न निकालें। मेरी किसी राजनीतिक दल से या व्यक्ति से व्यक्तिगत नाराजगी नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा, मैं तो चाहता हूं कि मजबूत विपक्ष हो, परिवारवाद के शिकंजे में फंसी पाटियां खुद को इससे मुक्त करें और इसका इलाज करें। तभी भारत का लोकतंत्र मजबूत हेागा। देश के युवाओं को राजनीति में आने का ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेगा। खैर, परिवारवाद पार्टियों से मैं कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर रहा हूं।