कानपुर। डॉक्टर के पास जाए बिना भी ग्लूकोमा, डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसी आंखों की गंभीर बीमारियों समेत सभी जांचें और ट्रीटमेंट अब संभव हो गया है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट के सीनियर प्रोफेसर ने आईटी इंजीनियर्स की मदद से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित एक साफ्टवेयर तैयार किया है। जिसको उन्होंने पोर्टेबल उपकरणों से कनेक्ट किया है। छोटे से बैग में समाने वाले उपकरण से आप्टीशियन कहीं भी आई का चेकअप कर सकते हैं। दूर बैठे डॉक्टर कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखकर परामर्श देंगे।
800 पेशेंट पर ट्रायल
आई डिपार्टमेंट के प्रो। परवेज खान ने बताया कि इस तकनीक के ट्रायल के तहत सिटी के विभिन्न इलाकों और औद्योगिक इलाकों में आठ सौ से अधिक मरीजों की आंखों का चेकअप कर ट्रीटमेंट किया गया। इसकी रिपोर्ट यूपी शासन को भेजी गई है। एक्सपर्ट के मुताबिक इस तकनीक से सिटी के सीनियर सिटीजन, आउटर इलाके व हैलट अस्पताल में ट्रीटमेंट के लिए आने वाले 17 जिले के आई इंफेक्शन, मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और डायबिटीज की वजह से रेटिना की समस्या होने वाले पेशेंट को काफी राहत मिलेगी। उनको समय से नजदीकी अस्पताल में बेस्ट ट्रीटमेंट मिल सकेगा।हैदराबाद के इंजीनियर्स ने
प्रो। डॉ। परवेज ने बताया कि सिटी के आउटर इलाके व विभिन्न जिले के आई पेशेंट को समय से ट्रीटमेंट नहीं मिल पाता है। जिसकी वजह से कई बार उनकी आंख की रोशनी तक चली जाती है। इस तकनीक से हम बेस्ट ट्रीटमेंट लोगों को दे सकेंगे। डॉ। परवेज बताते है कि हैदराबाद के आईटी इंजीनियर्स से अपने मुताबिक एआई आधारित एक साफ्टवेयर तैयार कराया है। इस साफ्टवेयर को पोर्टेबल स्लिट लैंप, ऑटो रिफ्रैक्टोमीटर, टोनोमीटर और फंडस कैमरा 'आंखों की जांच किया जाने वाला विशेष कैमराÓ से जोड़ा गया है। जिसके माध्यम से डॉक्टर मीलों दूर बैठ कर भी पेशेंट को ट्रीटमेंट दे सकता है।
पेशेंट से बात भी कर सकेंगे
सॉफ्टवेयर से लैस आंख की जांच के उपकरणों को इंटरनेट से कनेक्ट किया गया है। जिससे डॉक्टर पेशेंट से बात भी कर सकेंगे। इसके साथ ही आप्टीशियन से भी कनेक्ट रह सकेंगे। इस कारण दूर बैठकर भी डॉक्टर आंख की जांच करते हुए पेशेंट से बात कर सकते हैं। उनकी समस्या की डिजिटल रिपोर्ट तैयार कर सकेंगे। इस सुविधा के आने से चलने-फिरने में असमर्थ सीनियर सिटीजन पेशेंट को हॉस्पिटल के चक्कर काटने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
यह जांच भी हो सकेंगी
इस तकनीक से आंखों की विभिन्न जांच भी जांच हो सकेगी। इनमें रेटिना की सभी प्रकार की जांचे, डायबिटीज से खराब रेटिना की जांच के साथ टोनोमीटर से आंखों के प्रेशर का पता लगाना, स्लिट लैंप से आंखों के कामकाज की जांच और आटो रिफ्रैक्टोमीटर से मोतियाबिंद का पता लगाने में डॉक्टर सफल हो सकेंगे। चश्मे का नंबर भी दिया जा सकता है।
सिटी के आउटर व आसपास जिलों में आई स्पेशलिस्ट की कमी है। हमने एआई आधारित साफ्टवेयर को पोर्टेबल उपकरणों से जोड़ा है। छह माह के ट्रायल की रिर्पोट शासन को भेजी है। सीनियर सिटीजंंस को इससे आसानी हो जाएगी।
प्रो। डॉ। परवेज खान, आई डिपार्टमेंट, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज