कानपुर (ब्यूरो)। ये शहर बड़ा ही सेंसटिव है। छोटी छोटी बात पर अक्सर यहां का माहौल खराब हो जाता है और शांति भंग का खतरा बना रहता है। लेकिन, ये शहर इतना संवेदनशील है कि मुर्दों और बच्चों से भी इसे खतरा रहता है। शहर में 73 ऐसे लोग हैं जो मरने के बाद भी शहर के लिए खतरा बने हुए हैं। वहीं करीब 250 ऐसे बच्चे भी हैं जो लॉ एंड ऑर्डर बिगाड़ सकते हैं। जी हां, सही पढ़ा आपने और यह हमारे आंकड़े नही हैं बल्कि कमिश्रनेट पुलिस के हैं जिनके जांबाज अधिकारियों ने दिन रात कड़ी मेनहत और मशक्कत के बाद ये लिस्ट तैयार की है। चुनाव होने वाले हैं, इसलिए इन मुर्दों और बच्चों के घर शांति भंग में पाबंद करने की नोटिस भी भेज दी गई। घरवालों ने नोटिस पढ़ी तो उनके होश उड़ गए।
निजी मुचलके से पाबंद
बता दें कि शहर में 13 मई को लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। फ्री एंड फेयर इलेक्शन कराने के लिए तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। इसमें सबसे अहम जिम्मेदारी पुलिस कमिश्नरेट के कंधों पर है जिससे कोई भी अपराधी या अराजकतत्व माहौल न बिगाड़ सके। ऐसे में पुलिस ने प्रिवेंटिव एक्शन शुरू कर दिए हैैं। बड़ी संख्या में 107/16 की कार्रवाई की जा रही हैैं। शांति भंग की आशंका के चलते लोगों को निजी मुचलके से पाबंद किया जा रहा है। लेकिन ये नोटिस आंख बंद कर ग्राउंड लेवल पर हकीकत को बिना समझे भेजी जा रही हैं। यही कारण है कि थाना पुलिस ने काफी पहले इस दुनिया से जा चुके लोगों के खिलाफ भी शांति भंग की नोटिस जारी कर दी है। 8 से 15 साल तक की उम्र के बच्चे और किशोर भी पुलिस की सूची में हैैं।
नोटिस पढक़र उड़े होश
लोगों के घर जब नोटिस पहुंची तो पढक़र सकते में आ गए। अब वो नोटिस लेकर अपनी पीड़ा बताने के लिए पुलिस अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं। इस सब के लिए थाना पुलिस ही जिम्मेदार है, जब ये बात खुलकर सामने आई तो अधिकारी भी परेशान हो गए। आनन फानन में नोटिस सर्व करने वाले पुलिसकर्मियों की मीटिंग कर बताया गया कि नोटिस सर्व करने से पहले उस व्यक्ति की जानकारी कर लें, जिसके नाम नोटिस दिया जा रहा है। अब इन नोटिस को खत्म किया जा रहा है। हालांकि, इसे खत्म करने के नाम पर भी उगाही की जा रही है। किसी से 500 तो किसी से हजार रुपए लिए जा रहे हैं। पुलिस के झंझट से बचने के लिए लोग पैसे दे भी रहे हैं। पूरे शहर में बीते 26 दिनों में 8655 शांति भंग की कार्रवाई की गई
सिर्फ फॉर्मेलिटी करती है पुलिस
समय बचाने के लिए शार्टकट अपनाना पुलिस को खूब आता है। दरअसल एक बार थाने की लिस्ट में नाम शामिल होने के बाद थाने के 8 नंबर रजिस्टर (क्राइम रजिस्टर) में नाम दर्ज कर लिया जाता है। इसके बाद पुलिस कर्मी लगातार इसी लिस्ट को देखकर नई लिस्ट बना देते हैैं। इसी शार्टकट की वजह से इस तरह के मामले सामने आ रहे हैैं। थाना पुलिस मौके पर जाकर ये भी नहीं पता करती है कि जिस शख्स को नोटिस दी जा रही है वो जिंदा है या मर गया। या फिर वो वहां पर रह रहा है या नहीं।
क्या होती है धारा 107/16
किसी भी चुनाव के पहले किसी व्यक्ति से शांति भंग का खतरा हो तो उसके खिलाफ पुलिस 107/16 की कार्रवाई करती है। निजी मुचलके से पाबंद किया जाता है। इसके बाद अराजतकता फैलाने पर तय की गई राशि ट्रेजरी में जमा करनी पड़ती है या कोर्ट जितने दिनों के लिए जेल भेजती है, जाना पड़ता है या दोनों भी हो सकता है। एक बार 107/16 की कार्रवाई का मतलब होता है कि हर चुनाव में पुलिस आपकी निगरानी करेगी, हालांकि नई व्यवस्था के चलते ये जिम्मेदारी बीट पुलिस ऑफिसर को सौंपी गई है।
कार्रवाई होने पर क्या करें
अगर किसी के खिलाफ कार्रवाई की गई तो उसे थाने से नोटिस जारी किया जाता है। इस नोटिस में संबंधित कोर्ट का नाम लिखा होता है। किसी वकील के साथ संबंधित कोर्ट में पहुंचकर हाजिरी लगानी होती है। उसके बाद कोर्ट जिन तारीखों पर बुलाती है, उन तारीखों पर जाकर कोर्ट को बताना पड़ता है कि वह जिले में शांतिपूर्ण तरीके से रह रहा है। ये प्रक्रिया चुनाव संपन्न होने के बाद काउंटिंग तक चलती है।