वर्ष 2009 में हुए विवादित राष्ट्रपति चुनाव के बाद से पहली बार संसदीय चुनाव हो रहे हैं.स चुनाव में राष्ट्रपति अहमदीनेजाद पर व्यापक पैमाने पर धांधली के आरोप लगाए गए थे। ये चुनाव इसलिए भी अहम हैं क्योंकि इस समय परमाणु कार्यक्रम को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव अपने चरम पर है।
ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि इसराइल या अमरीका या फिर दोनों ही देश ईरान के परमाणु ठिकाने पर हमला कर सकते हैं। हालांकि राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अमरीका और पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं झुकेंगे और ईरान का परमाणु कार्यक्रम जारी रहेगा।
आपसी लड़ाई
ईरान के राजनीतिक नेता वोट पाने के लिए हर संभव रास्ता अपना रहे हैं। सड़कों के किनारे लगे पोस्टरों में यहाँ तक कहा गया है कि यदि मतदान का प्रतिशत कम रहा तो इससे ईरान पर विदेशी आक्रमण का रास्ता खुल जाएगा।
ईरानी नेताओं का कहना है कि यदि बड़ी संख्या में लोग मतदान करने निकलते हैं तो इससे संदेश जाएगा कि लोग अपने राजनेताओं के साथ हैं और इसकी वजह से इसराइल या अमरीका या दोनों ही ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करने से हिचकेंगे।
वे मान रहे हैं कि यदि ज्यादा लोग मतदान करने निकलते हैं तो सत्तारूढ़ दल को एक तरह की वैधानिकता मिल जाएगी। सुधारवादी विपक्षी दल का ये आरोप रहा है कि वर्ष 2009 के राष्ट्रपति चुनाव में की गई कथित धांधलियों के बाद से सत्तारूढ़ दल ने अपनी वैधानिकता खो दी है।
बीबीसी संवाददाता कासरा नाजी का कहना है कि चूंकि विपक्ष के सुधारवादी नेता तेहरान में नजरबंद हैं इसलिए ये चुनाव कट्टरपंथी नेता आयतुल्ला अली खामनेई के समर्थक गुटों के बीच एक होड़ जैसा ही है। हालांकि उनमें आपस में भी तीखे मतभेद हैं।
आयतुल्ला खामनेई से अलग हो चुके राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के समर्थकों का आरोप है कि उनके उम्मीदवारों को चुनाव में खड़ा ही नहीं होने दिया गया। इनमें से कुछ लोग तो दबे छिपे चुनाव के बहिष्कार की बात कर रहे हैं, ठीक उसी तरह, जिस तरह से विपक्षी सुधारवादी कर रहे हैं। इस बीच देश प्रतिबंध की वजह से देश गंभीर संकटों का सामना कर रहा है। वैसे ये चुनाव देश की किसी भी समस्या को हल नहीं करने वाले हैं।
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