कानपुर (दिव्यांश सिंह)।एजूकेशनल कैंपस में स्टूडेंट और टीचर दोनों को एकेडमिक फ्रीडम मिलनी चाहिए। इस बात की डिमांड भी होने लगी है। बीते महीने वी डेम की ओर से वल्र्ड से 179 देशों को लेकर एकेडमिक फ्रीडम पर रिपोर्ट तैयार की गई है। जारी रिपोर्ट में भारत उन 22 देशों की लिस्ट में शुमार है, जहां एजूकेशनल इंस्टीट्यूट्स और एजूकेशनिस्टों को कम फ्रीडम है। जारी रिपोर्ट में भारत को बाटम के 20 से 30 परसेंट वाले देशों की लिस्ट में शामिल किया गया है। वी डेम की रिपोर्ट चौंकाने वाली और चिंताजनक है। वी डेम की रिपोर्ट के आधार पर सिटी के एजूकेशन कैंपसों में जाकर एकेडमिक फ्रीडम पर बातचीत की तो यहां भी फ्रीडम की डिमांड सामने आई। कैंपसों के स्टूडेंट और फैकल्टी का मानना है कि एकेडमिक फ्रीडम बढ़े तो क्वालिटी और बेहतर हो सकती है।


दबे सुरों में बोले, कुछ तो फ्रीडम को जानते ही नहीं
सिटी के एजूकेशनल कैंपस में एकेडमिकल फ्रीडम की बात करने पर दबे हुए सुरों में आवाजें आने लगी। कहा जाने लगा कि एकेडमिक फ्रीडम तो मिलनी चाहिए। फिक्स पैटर्न पर काम करने से कई बार कुछ इंपार्टेंट कंटेंट स्टूडेंट के पास पहुंचने से छूट जाता है। वहीं, बीते सालों से फिक्स पैटर्न पर काम करने से कुछ लोग तो ऐसे हैैं जो एकेडमिक फ्रीडम को समझ ही नहीं पा रहे हैैं। एकेडमिक फ्रीडम पर सवाल पूछते ही कुछ देर के लिए वह सोच में पड़ गए क्या हम भी किसी गुलामी में जी रहे हैैं।


कुछ ऐसे होता है स्वतंत्रता का हनन
एकेडमिक फ्रीडम कम होने का मतलब यह नहीं है कि आपको गुलामी करनी पड़ रही है। इसको समझने के लिए हम कुछ उदाहरण आपके सामने रख रहे हैैं। सिटी के एक प्रोफेसर ने बताया कि उसने बीते सालों में कई रिसर्च वर्क किए और कई ऐसी बातें थी जो कि उसके नाम से मीडिया तक पहुंचनी चाहिए थी। लेकिन वाया सिस्टम (मीडिया प्रभारी) जाने की वजह से उसकी आवाज दबी है। यदि आउट आफ वे जाकर न्यूज को मीडिया तक पहुंचाते हैैं तो अफसरों के कोप भवन का शिकार होना पड़ता है। एजूकेशनल सिस्टम में कुछ टॉप लेबल अफसरों को ही अपनी बात रखने और डिसीजन लेने की आजादी है। इसके अलावा अलग अलग डिपार्टमेंटों में टीचिंग कर रहे प्रोफेसर्स को रबर स्टैैंप की तरह यूज किया जा रहा है। वह खुद से कोई डिसीजन नहीं ले सकते छोटे छोटे कामों के लिए अफसरों से परमिशन का कागज लेना होता है।

पाकिस्तान में एकेडमिक फ्रीडम इंडिया से ज्यादा, बीते सालों में स्थिति हुई बदतर
एकेडमिक फ्रीडम इंडेक्स में पाकिस्तान जैसे देश में एकेडमिक फ्रीडम इंडिया से ज्यादा बताया गया है। पाकिस्तान का स्कोर 0.42 है जबकि इंडिया को 0.38 स्कोर मिला है। पाकिस्तान को बाटम के 30 से 40 परसेंट कैटेगरी वाले देशों में रखा गया है। बीते दस सालों की तुलना करें तो इंडिया की स्थिति एकेडमिक फ्रीडम में खराब हुई है। 2012 में इंडिया स्टेटस बी वाले देशों में शामिल था जो कि अब स्टेटस डी है। बताते चलें कि स्कोर 0 से 1 के बीच दिया गया है।

एकेडमिक पैटर्न और सिलेबस देता मुश्किल
सीएसजेएमयू, सीएसए और एचबीटीयू के प्रोफेसर्स ने बातचीत में बताया कि गाइडलाइन और डायरेक्शन के बाद बना एकेडमिक पैटर्न और सिलेबस फ्रीडम को रोकता है। उदाहरण के तौर पर किसी कंटेंट को पढ़ाने के लिए एकेडमिक काउंसिल, बीओजी और शासन की परमिशन लेनी पड़ती है। यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार एक हफ्ते में प्रोफेसर को 12, एसोसिएट प्रोफेसर को 14 और असिस्टेंट प्रोफेसर को 16 घंटे पढाना जरुरी है।

आईआईटी से सीखें
जहां एक ओर सिटी की सभी यू्निवर्सिटी और कॉलेजों की लैब में तय समय पर ताला लग जाता है वहीं दूसरी ओर आईआईटी कानपुर में पूरी रात लैब खुली रहती हैैं। यहां किसी भी समय स्टूडेंट आकर प्रैक्टिकल आदि कर सकता है।

इन बातों को लेकर वी डेम ने जारी की रिपोर्ट

- फ्रीडम टू रिसर्च एंड टीच
- फ्रीडम आफ एकेडमिक एक्सचेंज एंड डिसमिनेशन
- फ्रीडम आफ एकेडमिक एंड कल्चरल एक्सप्रेशन
- इंस्टीट्यूशनल ऑटोनामी
- कैंपस इंटीग्रिटी

नोट - इन सभी प्वाइंट्स पर बीते 10 साल की स्टडी के अनुसार वी डेम ने रिपोर्ट की है।

यूजीसी ने हर कोर्स में क्रेडिट तय कर रखे हैैं। उससे ज्यादा या कम नहीं पढ़ा सकते हैैं। इसके अलावा किसी शार्ट टर्म कोर्स को भी स्टार्ट करने के लिए एकेडमिक काउंसिल, बीओजी और शासन की परमिशन लेनी होती है। यदि यह अधिकार प्रोफेसर्स के पास हो तो फ्रीडम बढ़ेगी।
प्रो। पीके उपाध्याय, रजिस्ट्रार, सीएसए

एनईपी आने के बाद एकेडमिक फ्रीडम बढ़ी है। आने वाले समय में यह और बढ़ेगी। इसके आने के बाद से स्टूडेंट मेन स्ट्रीम के साथ साथ अन्य सब्जेक्ट भी पढ़ ले रहा है। यह फ्रीडम ही है।
डॉ। आशीष त्रिवेदी, एचओडी, एसओईएम, एचबीटीयू

वी डेम की रिपोर्ट एकेडमिक क्वालिटी का मूल्यांकन नहीं करती है। एकेडमिक फ्रीडम में इंडिया को 0.38 स्कोर मिला है जो कि चिंताजनक है। हम नेपाल और भूटान से भी नीचे हैैं। देश में एकेडमिक फ्रीडम की रक्षा करने वाले कानूनों की जरुरत है।
डॉ। जितेंद्र डबराल, प्रोफेसर, सीएसजेएमयू, डिपार्टमेंट आफ जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन

कहीं न कहीं बाउंडेशन तो हैैं। अगर यह दूर हो जाएं तो टीचर खुलकर पढ़ाएंगे, जिससे एजूकेशन सिस्टम सुधरेगा। प्राइमरी से लेकर हायर एजूकेशन तक हर जगह बंदिशें हैैं, जिनको कम करने की जरुरत है।
आलोक दीक्षित, एजूकेशनिस्ट