कानपुर (ब्यूरो) विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का ये मामला 2004 का है। तब सपा की सरकार थी, मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। कानपुर में अधाधुंध बिजली कटौती के विरोध में तत्कालीन बीजेपी विधायक सलिल विश्नोई और कार्यकर्ता ने मुख्यमंत्री का जुलूस निकाल कर शिवाला में पुतला दहन किया था। इस पर गुस्साई पुलिस ने बीजेपी विधायक और कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज किया। इसमें सलिल विश्नोई का एक पैर टूट गया। कई बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी गंभीर चोटें आईं। इसके बाद विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना की सूचना 25 अक्टूबर 2004 को विधानसभा सत्र में रखी गई थी।

17 साल पहले माने जा चुके दोषी

विधानसभा से मिली जानकारी के मुताबिक विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के मामले में इन सभी 6 पुलिसकर्मियों के खिलाफ साल 2004 से मई 2005 तक सुनवाई हुई। सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद 17 साल पहले सभी पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया जा चुका था, लेकिन इसके बाद सरकारें बदलने की वजह से मामला पेंडिंग पड़ा रहा और दोषी पुलिसकर्मियों की सजा का ऐलान नहीं हुआ था।

सपा ने सदन से वॉकआउट किया

इस मामले को लेकर सपा के सदन से वॉक आउट करने पर तत्कालीन विधायक व वर्तमान में एमएलसी सलिल विश्नोई ने कहा कि संसदीय दल अपने दल के विधायकों की आवाज को दबाने का प्रयास करेगा, तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष ने डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह को पूर्व सीओ कानपुर के साथ पांच अन्य पुलिसकर्मियों को पेश करने के निर्देश दिए थे। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना की ओर से सदन में रखे गए विशेषाधिकार से जुड़े प्रस्ताव को सर्वसम्मति से सदन की मंजूरी मिल गई थी।

छह पुलिसकर्मियों की पेशी

कानपुर में लाठीचार्ज के दौरान जिन 6 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया था। उनमें तब के सीओ अब्दुल समद के अलावा किदवई नगर के थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, एसआई थाना कोतवाली त्रिलोकी सिंह, किदवई नगर थाने के सिपाही छोटे सिंह यादव, काकादेव थाने के सिपाही विनोद मिश्र और काकादेव थाने के सिपाही मेहरबान सिंह शामिल हैं। ये सभी कानपुर में उस वक्त शहर के ही विभिन्न थानों में तैनात थे। अब्दुल समद बाद में प्रशासनिक सेवा में आ गए थे। इसके बाद वह हाल में ही रिटायर हुए हैं। वहीं, ऋषिकांत शुक्ला, त्रिलोकी सिंह, छोटे सिंह, विनोद मिश्र और मेहरबान सिंह अभी पुलिस सेवा में हैं।