कानपुर (ब्यूरो) आजादी के पहले शहर का विकास किया गया। कम आबादी की वजह से लोगों की संख्या कम थी। लोगों की सुविधा के लिए फायर स्टेशन बनाए गए। चूंकि ब्रिटिश गर्वनमेंट ने कैंट एरिया में ऑफिसर्स के रहने का इंतजाम किया था, लिहाजा मीरपुर कैंट में फायर स्टेशन बनाया गया। कोतवाली और कर्नलगंज के आस-पास भी अधिकारी रहते थे इसको देखते हुए कर्नल गंज का फायर स्टेशन बनाया गया। आग से बचने के लिए शहर में 213 फायर हाईड्रेंट्स लगाए गए, जिससे आग लगने पर तुरंत पानी का इंतजाम हो सके। थानों में हौजरील रखे जाने का इंतजाम भी तभी से किया गया था। आजादी के 75 साल पूरे हो गए, लेकिन आज की तारीख में शहर में कहां-कहां वॉटर हाइड्रेंट्स है। यह पता नहीं लग पा रहा है। समय के साथ शहर की आबादी बढऩे लगी। लोगों ने रहने के लिए मकान, होटल और दफ्तर बना दिए गए। इस विकास की बसावट में फायर हाईड्रेंट्स जमीन में दफन होते चले गए। बीते दो दशकों में कई बार गुम हुए इन हाईड्रेंट्स की तलाश में शासन से आदेश जारी किए गए।

तलाश करने पर नहीं मिले
हाईड्रेंट्स तलाशने के शासन से जारी ये निर्देश कागजी घोड़े साबित हो रहे हैैं। इन हाईड्रेंट्स की तलाश भी सिर्फ कागजों में की जा रही हैैं। जिसकी रिपोर्ट में लिख दिया जाता है कि बहुत तलाश करने के बाद भी इन हाइड्रेंट्स का पता नहीं चल सका। वे मिट्टी के नीचे गहरे में दब गए हैैं। असलियत तो ये है कि इन हाईड्रेंट्स को तलाशा ही नहीं गया।

आग के मुहाने पर कानपुर
कानपुर की भौगोलिक स्थिति की बात की जाए तो एक तरफ एचएएल और दूसरी तरफ इंडियन ऑयल की पेट्रोल लाइन है। इसी लाइन से साउथ सिटी में भी पेट्रोल लाइन भेजी गई है। आर्डिनेंस इक्विपमेंट फैक्ट्री और स्मॉल आम्र्स फैक्ट्री के साथ तमाम ऐसे प्वाइंट्स हैं जहां देश की रक्षा के लिए गोला बारूद का उत्पादन व स्टोर किया जाता है। शहर की सीमा पर कई बड़े संस्थान हैैं, जहां ज्वलनशील पदार्थ इकट्ठा रहता है। ऐसे में कभी कोई बड़ा आग लग गई तो उसको संभालना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन होगा।
कानपुर के फायर स्टेशन
- किदवई नगर, मीरपुर
- लाटूश रोड, फजलगंज
- महाराजपुर, कर्नलगंज
- अर्मापुर, बिल्हौर
- चौबेपुर, भोगनीपुर (कानपुर देहात)

फायर कर्मियों की कमी भी
एक फायर स्टेशन में एक अग्निशमक अधिकारी (एफएसओ), दो लीडिंग फायर मैन, दो चालक, 13 फायर मैन, एक दमकल वाहन, एक एंबुलेंस, एक पानी की टंकी(4500 लीटर)। इसके अलावा बड़े इलाके वाले फायर स्टेशन में स्टाफ बढ़ा कर रखा जाता है। अगर औसत देखा जाए तो किसी भी फायर स्टेशन में पूरा स्टाफ नहीं है। कई सालों से शासन ने फायरमैन की भर्ती नहीं की गी है। जिसकी वजह से कर्मचारियों की विशेष कमी है। हालांकि छह महीने पहले शासन ने भर्ती निकाली थी लेकिन कोई फायदा नहीं हो सका।

तीन दिन में चेक किए पांच सौ से ज्यादा
आग की बड़ी वारदातें कानपुर में पहले भी बहुत बड़ी-बड़ी हुईं, लेकिन कभी कानपुर का फायर विभाग इतना एक्टिव नहीं हुआ। राजधानी में जब वारदात हुई तो पूरे प्रदेश के फायर विभाग के अधिकारियों की नींद उड़ गई। शासन से जारी हुई आदेश जैसे ही मॉनीटर पर दिखा मातहत सक्रिय हो गए। पूरे जिले में तीन दिनों में 500 (हाईराइज बिल्डिंग्स, मॉल्स, हॉस्पिटल्स और स्कूल्स) इमारतें चेक करने के बाद फोटो खिंचवाकर डाटा शासन को भेज दिया गया। सीनियर ऑफिसर्स ने कहा कि 40 से 50 लोगों को नोटिस भेजा गया। हालात ये हैैं कि ये नोटिस किसे और कहा सर्व किए गए, न तो ये बताने के लिए अधिकारी तैयार हैैं और न ही वे लोग जहां चेकिंग के बाद मानक के अनुरूप इंतजाम नहीं पाए गए हैैं। वहीं घनी आबादी वाले इलाके में दमकल कर्मियों ने आंख बंद कर फार्मेलिटी पूरी की। केवल उन इमारतों की लिस्ट बनाई गई है, जो घनी आबादी वाले इलाकों में हैैं। न तो इनको नोटिस जारी की गई और न ही इनके खिलाफ तीन दिन में कार्रवाई की गई।
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'' जिले में गंभीरता से अभियान चलाया जा रहा है। दमकल विभाग के अधिकारियों को ऐसे इंतजाम करने को कहा गया है, जिससे आग से ज्यादा नुकसान न हो सके। हाईड्रेंट्स को तलाशने की प्रक्रिया भी चल रही है.ÓÓ
एमपी सिंह, सीएफओ कानपुर