कानपुर (ब्यूरो) मतांतरण होने वाले हिंदुओं को मंदिर से चर्च तक पहुंचाना आसान नहीं था। आसान नहीं था भगवान की पूजा को छोड़कर ईशू की प्रार्थना करवाना। आसान नहीं था किसी हिंदू के घर से गीता जैसा पवित्र गं्रथ निकालकर उन्हें बाइबल थमाना। यह बड़ी साजिश थी जो पूरे प्लान के साथ की गई थी। आखिर यह प्लान कैसा था और किसने बनाया, हमारे लिए यह जानना भी जरूरी था। ऐसे में हम पहुंचे घाटमपुर से 8 किमी दूर चिल्ली गांव में और फिर वहां पता चला एक हिंदू की चर्च तक की यात्रा रहस्य
वैसे तो यह गांव विकास में काफी पिछड़ा हुआ है और यहां एक बड़ी आबादी एससी-एसटी समुदाय की है, लेकिन जब हम वहां पहुंचे तो आश्चर्य हुआ कि इस गांव में ही नहीं, बल्कि यहां से कई किलीमीटर के क्षेत्र में कोई मूल ईसाई व्यक्ति नहीं रहता है, इसके बावजूद इस अविकसित गांव में एक बड़ी सी चर्च बनी थी। जब हम चर्च पहुंचे तो पता चला कि यह चर्च सिर्फ संडे को खुलती है और यहां आस-पास के सैकड़ों लोग प्रार्थना के लिए आते हैं। पर मन में एक सवाल था कि आखिर इस गांव में जहां एक भी मूल ईसाई नही रहा, वहां चर्च किसने और क्यों बनवाई। सवाल यह भी था कि आखिर गांव के ये भोले भाले लोग कैसे अपने भगवान को भूलकर अपने धर्म से ही अलग हो गए। हम चर्च के सामने खड़े होकर यह सोच रहे थे तभी उस खड़ंजे वाली गाली में एक ठिलिया लेकर आता शख्स दिखाई दिया। ठिलिया में कुछ सामान था, जिसे शायद वह दूसरे किसी गांव में बेचकर घर वापस आ रहा था। जी हां, यह शाम का करीब पांच बजा था और अंधेरा होने वाला था।
जय ईशू भइया
जैसे ही वह पास आया मैने उससे कहा, जय राम दादा। उसका जवाब था, जय ईशू भइया। यह सुनते ही मुझे पता चल गया कि हम सही जगह हैं और हमे यहां सही जानकारी मिल सकती है। मैंने उससे पूछा, दादा आपका नाम क्या है तो बोला, राम सहाय। मेरे मन में सवाल यह भी आया कि जिसका नाम ही राम सहाय है वो राम नाम न बोलकर जय ईशू बोलने लगा। अजीब खेल है इस मतांतरण का कि अपने नाम में लगे राम को ही भूल गए ये। उसके बाद राम सहाय ने जो भी बताया वह वाकई चौकाने वाला था।
आप भी जानिए
रिपोर्टर: आप चर्च में कब से आ रहे हैं और ईसाई धर्म से कब से जुड़े हैं?
राम सहाय: चर्च बनने के पहले ही हम ईशू से जुड़ गए थे। हम घर में प्रार्थना करने लगे थे। जब चर्च बनी तो चर्च में आने लगे।
रिपोर्टर: आखिर कैसे आपको इन सबके बारे में पता चला?
राम सहाय: हमारे गांव में बाहर से कुछ ईसाई लोग आए थे। वो कुछ पर्चे लिए थे। हम लोगों को पर्चे दिए थे और कहा था इसे पढ़ो अच्छा लगेगा और सारे दुख दूर हो जाएंगे। हम लोगों ने पर्चा पढ़ा। उसमें प्रभु ईशू के बारे में था। काफी अच्छा लगा। फिर दोबारा भी वो लोग आए तो एक एक किताब सबको दे गए। उसमें बहुत सारी अच्छी-अच्छी जानकारी थी। हमने उसे पढ़ी और हमारा मन ही बदल गया। वो लोग कई बार आए। फिर उन्होंने हमें हमारे घर में ही प्रार्थना करवाना शुरू कर दिया। अब हमने भगवान की जगह ईशू को अपना लिया।
रिपोर्टर: क्या लिखा था उस किताब में और पर्चों में?
राम सहाय: उसमें स्वर्ग और नर्क को समझाया गया था। बताया गया था कि कैसे हम सब अभी नर्क को भोग रहे हैं। अगर स्वर्ग में जाना है तो सिर्फ परमेश्वर की शरण में आना होगा। ईशू ही परमेश्वर है।
रिपोर्टर: बाकी लोग गांव के कैसे जुड़े इससे?
राम सहाय: वो ईसाई लोग यहां आते रहते थे। लोगों से मिलते थे। उनको भी पढऩे को पर्चे और किताबें देते थे। लोगों के घरों में शैतान चिल्लाता था। ईसाई लोग जब आए तो लोगों के सिर में जो शैतान चिल्लाता था, वो कहने लगा कि अब नहीं आएंगे। लोगों को घर से शैतान भागने लगा तो फिर लोग भगवान को छोड़कर परमेश्वर की प्रार्थना करने लगे।
रिपोर्टर-क्या तांत्रिकों की तरह झाड़-फूक की जाती थी शैतान के लिए?
राम सहाय: नहीं, केवल किताब पढऩे से और प्रार्थना करने से ही शैतान भाग जाता है। इसीलिए लोग बाइबिल पढ़ते हैं?
रिपोर्टर: कैसे पढ़ते हैं आप किताब? किस भाषा में है?
राम सहाय: ये हिंदी में ही है। इसके लिए पूजा पाठ अगरबत्ती नहीं करनी पड़ती है। न ही कोई नहाने धोने की जरूरत होती है। जब मन करे तब पढऩे लगो।
इस तरह हिंदुओं को चर्च तक पहुंचाया
पहले क्षेत्रों की रेकी की
लोगों का मतांतारण कराने वाले सबसे पहले ऐसे क्षेत्र का चुनाव करते हैं जो थोड़ा सा पिछड़ा हो, जहां लोग जरूरतमंद हों और जिनका शिक्षा का स्तर भी कम हो। अपनी कोई सोच न हो। ऐसे लोगों के विचारों और मत को बदलना अपेक्षाकृत आसान होता है। यहां भी वही हुआ। पहले यह पता किया गया कि इस क्षेत्र में कौन-कौन सी आबादी कितनी रहती है। उनका शिक्षा का स्तर क्या है और जब लगा कि ये गांव उनके लिए आसान है तो फिर यहां का रुख किया।
पादरी आए और पर्चे बांटे गए
गांव का चयन करने के बाद यहां बाहरी लोगों का आना शुरू हुआ। गांव के लोग कहते हैं कि एक दशक पहले ही इस गांव में बाहर से कुछ पादरी आए और गांव को दौरा किया। इस दौरान उन लोगों ने गांव वालों को कुछ पर्चे भी बांटे। इस बात को खुद गांव के राम सहाय, बलवंत सिंह और नीरज भी स्वीकार करते हैं। इन पर्चों में ईसाई धर्म और प्रभु ईशू जैसे टॉपिक पर कुछ विचार थे, जिसके जरिए गांव में रहने वाले ग्रामीणों को इस धर्म और प्रार्थना के बारे में बताना था। लोगों ने पर्चे पढ़े भी और कई लोग उसमें लिखे विचारों से प्रभावित भी होने लगे। मतांतरण कराने वालों के लिए यह एक प्री टेस्ट की तरह ही था।
फिर किताब भी बांटी
पर्चे बाटने के कुछ दिन बाद ही वो लोग दोबारा गांव में आए। इस दौरान उन्होंने लोगों को एक छोटी किताब भी दी और यह कहा कि इसे पढऩे से सारे दुख दूर हो जाएंगे। आपके जीवन में चमत्कार होगा और प्रेत व बुरी आत्माओं का साया उतर जाएगा। जीवन में सफलता मिलेगी। गांव वालों ने इस पुस्तक को पढऩा शुरू कर दिया। और यहां से शुरू किया गया विचारों में परिवर्तन। इन लेख के जरिए लोगों को अपने धर्म और विचारों के प्रति आकर्षित करने की कोशिश की जाने लगी।
फिर जानी लोगों की हकीकत
इसके बाद भी वो लोग गांव में आते-जाते रहे और लोगों से मिलते रहे। कभी चार तो कभी तीन लोग अक्सर गांव का भ्रमण करने लगे। इस दौरान उन लोगों ने गांव वालों की मनोदशा और उनकी समस्या को समझना शुरू किया। मकसद था कि कैसे उनके मन और जरूरतों पर अपना अधिकार जता पाएं। लोगों से बात कर उनके घर के हालात का पता कर लिया गया और फिर शुरू हुआ वो तरीका जो किसी की संवेदनाओं को पर सीधे प्रहार करता है।
प्रेत आत्मा और शैतान का डर दिखाया
इस दौरान यह भी पता लगाया गया कि गांव में कौन से लोग परेशान है। बीमार हैं। ऐसे लोगों से मिला गया और उन्हें यह बताया गया कि उनके ऊपर बुरी आत्माओं का साया है। उनके घर में शैतानी शक्तियों का वाश है। उनके दिमाग में शैतान चढ़ गया है।
शैतान को भगाने का दावा
इसके बाद इन लोगों को किताब पढऩे को कहा गया। यह भी कहा गया कि वो अपने घर में ईशू की प्रार्थना करने लगें तो शैतान भाग जाएगा और बुरी आत्माएं चली जाएंगी। जब हमने गांव के राम सहाय से बात की तो उसने भी यही स्वीकार किया कि बाहर से पादरी लोगों ने ऐसा ही कहा था। हम किताब पढऩे लगे। शैतान चिल्लाने लगा और यह कहने लगा कि वह दोबारा नहीं आएगा। हम सभी जानते हैं कि इस तरह की बुरी आत्मा या शैतान कुछ भी नहीं होता है, लेकिन इन लोगों के अंदर शैतान का डर इसलिए भरा गया ताकि उसके इलाज के नाम पर यह अपना प्रचार कर सकें।
फल तभी मिलेगा जब हिंदू वाली पूजा छोड़ दोगे
शैतानी ताकतों से छुटकारा और अन्य तरह की मदद के नाम पर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश शुरू कर दी गई। लोगों के घरों में प्रार्थना शुरू करा दी। गीता व अन्य हिंदू धार्मिक पुस्तकें और पुराण पढऩे वाले घरों में बाइबिल पढऩा शुरू करा दिया और इस तरह उन गांव वालों के घरों में उनके विचारों का कब्जा हो गया। इसी दौरान उनसे कहा गया कि उन्हें सही फल तभी मिलेगा जब वो हिंदू वाली पूजा छोड़ देंगे। अगर उन्हें चंगाई होना है तो घर से भगवान को हटाना होगा। मूर्तियों की पूजा को बंद करना होगा। गांव के नीरज पाल ने भी इस बात को कहा कि वो भी प्रार्थना में शामिल होने लगे थे, लेकिन बाद में जब पादरी ने यह शर्त रख दी कि उन्हें भगवान की पूजा नहीं करनी है और घर से भगवान को हटा देना है तो फिर उन्होंने प्रार्थना करना बंद कर दिया और अपने भगवान के पास ही बने रहे।
और फिर बनी चर्च
अब तक गांव की एक बड़ी आबादी ईसाई धर्म के प्रति आकर्षित हो चुकी थी। लोगों के घरों में भगवान की पूजा की जगह ईशू की प्रार्थना होने लगी थीं। लोग मन से ईसाई हो चुके थे और यही सही मौका था मतांतरण कराने वालों के लिए गांव में एक चर्च बनाने का। क्योंकि जिस गांव में दूर दूर तक कोई भी मूल रूप से ईसाई न हो, वहां चर्च कैसे हो सकती है और उसकी उपयोगिता क्या होगी। लेकिन अब तक इस गांव में ईसाई धर्म को मानने वाले और भगवान को घर से हटाने वालों की संख्या बहुत बढ़ चुकी थी तो चर्च का कोई विरोध नहीं करने वाला था। हुआ भी यही, यहां एक संस्था ने गांव के ही एक गुप्ता फैमिली का खेत खरीद लिया और फिर वहां पर चर्च का निमार्ण कराया और फिर यहां हर संडे को प्रार्थना सभा होने लगी। आज की स्थिति में करीब डेढ़ से दौ सौ लोग इस चर्च में आते हैं।