रक्षा विश्लेषक इसे चीन की ओर से एशिया में अव्वल नौसैनिक ताकत बनने की महत्वाकांक्षा में एक अहम कदम मान रहे हैं। दक्षिणपूर्वी एशिया में जापान और कुछ अन्य देश पहले ही चीन की बढ़ती नौसैनिक ताकत पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं। चीन और जापान के बीच पूर्वी चीन सागर में मौजूद द्वीप समूहों के मालिकाना हक़ को लेकर खासा तनाव है।

चीन की नौसैनिक ताकत बढ़ी

चीन के रक्षा मंत्रालय ने रविवार को जारी बयान में कहा कि जे-15 लड़ाकू विमान ने एक अभ्यास के दौरान चीन के पहले विमानवाहक युद्धपोत लियाओनिंग पर लैंडिंग की है। लियाओनिंग एक पूर्व सोवियत युद्धपोत है जिसकी मरम्मत करके उसे चीन ने अपने सैन्य इस्तेमाल के लिए तैयार किया है।

उधर जे-15 विमान का निर्माण ख़ुद चीन ने किया है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार जे-15 के युद्धपोत पर कामयाबी से उतर पाने की क्षमता का मतलब है चीन की सैनिक शक्ति में इज़ाफ़ा हुआ है। देश की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने नौसेना के सुत्रों के हवाले से कहा है कि जे-15 विमान युद्धपोत-रोधी, हवा से हवा और हवा से ज़मीन पर मार करने के साथ-साथ लक्ष्य-निर्धारित बम फेंकने की क्षमता रखते हैं।

लियाओनिंग

चीन ने पिछले दिनों यूकरेन से अपना पहला विमानवाहक युद्धपोत ख़रीदा था जिसे री-फिटिंग के बाद 'लियाओनिंग' का नाम दिया गया और इस साल सितंबर में नौसेना में कमिशन किया गया है। चीन का कहना है युद्धपोत उसे अपने सामरिक हितों की रक्षा करने में मदद करेगा।

लियाओनिंग युद्धपोत के कारण चीन की बढ़ी सैन्य शक्ति पड़ोसी मुल्कों की चिंताओ को बढ़ाएगी जो पहले ही चीन की बढ़ती सैन्य ताक़त से फ़िक्रमंद हैं। जहाँ चीन और जापान के बीच पूर्वी चीन सागर में मौजूद द्वीप समूहों के मालिकाना हक़ पर विवाद है, वहीं इसी सागर में सीमा को लेकर उसके अन्य दक्षिण-पूर्वी देशों के साथ भी विवाद हैं।

चीन की साम्यवादी सरकार सैन्य ताक़त में इज़ाफ़े की ग़र्ज़ से अरबों डॉलर खर्च कर रही है। लेकिन समझा जाता है कि ये ताक़त महज़ चीन की सीमाओं की हिफ़ाज़त के लिए नहीं बल्कि उस क्षेत्र में उसका दबदबा दिखाने के लिए भी है।

तैरता जुआखाना

लियाओनिंग का निर्माण सोवियत नौ सेना के लिए किया गया था लेकिन वो कुछ कारणों से पूरी तरह से तैयार नहीं हो सका था। वरयाग के नाम से जाने जाने वाला ये जहाज़ 1991 में सोवियत रूस के विघटन के बाद यूक्रेन की बंदरगाह पर पड़ा रहा। बाद में चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी से संबंध रखने वाली एक कंपनी से इसे ख़रीद लिया। तब जहाज़ को नष्ट करने की तैयारी चल रही थी।

उस समय कहा गया था कि इसका इस्तेमाल मकाउ में एक जुएघर के तौर पर किया जाएगा। लेकिन साल 2001 में इसे चीन ले जाया गया। चीन की सेना ने जून 2011 में इस बात की पुष्टि कर दी कि ये देश का पहला विमानवाहक युद्धपोत होगा।

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