यूरोज़ोन ऋण संकट और इसके लिए बनी योजनाओं के दौरान कई अफवाहें चलती रहीं जिसके मूल में शायद ये बात सबसे महत्वपूर्ण रुप से उभरी थी कि कैसे चीन पूरी दुनिया को बचा लेगा या फिर वो कैसे यूरोज़ोन को बचाएगा।
जी-20 की बैठकों में लगता है कि राष्ट्रपति हू सबसे ताकतवर स्थिति में हैं क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था नौ प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है और उसके पास अच्छी खासी धनराशि जमा है। लेकिन यहां पर एक बात देखने लायक है कि राष्ट्रपति हू वाकई इतनी मज़बूत स्थिति में नहीं हैं। वो शायद ही यूरोप को बचा पाएं।
यूरोप को बचाने की छोड़िए, हू इस बात से किसी और नेता की तरह ही चिंतित हैं कि ग्रीस किस तरह आर्थिक तंगी में डूबता जा रहा है और यूरोज़ोन के हालात अच्छे नहीं हैं. दुनिया को प्रभावित करने की चीन की क्षमता के बारे में जो भी कहा जा रहा है वो मूल रुप से वो विशेषज्ञ कह रहे हैं जो चीन से बाहर हैं लेकिन चीन में इस पर राय बिल्कुल अलग है।
चीन की भूमिका
सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने हफ्ते के अंत में एक रिपोर्ट में साफ कहा, ‘‘ चीन न तो यूरोप को बचाने में कोई बड़ी भूमिका निभा सकता है और न ही यूरोपीय बीमारी का कोई निदान ही उपलब्ध करा सकता है.’’
अगर इस तथ्य को आकड़ों की नज़र से देखा जाए तो चीन की अर्थव्यवस्था वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का दस प्रतिशत है जबकि अमरीका और यूरोप के विकसित देशों की अर्थव्यवस्था वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 50 प्रतिशत बनाता है।
संकट के दौरान में होने के बावजूद भी यूरोप चीन की ही मदद कर रहा है क्योंकि यूरोप में आयात होने वाले सामानों का एक बड़ा हिस्सा चीन से आता है। पिछले वर्ष चीन ने यूरोपीय देशों को 280 अरब यूरो का निर्यात किया है। यूरोप चीन का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है। यूरोप में बढ़ता हुआ संकट चीन के लिए भी घाटे का सौदा होने वाला है।
पिछले हफ्ते ग्वांग्जू में होने वाले आयात निर्यात मेले के दौरान मैं जितने भी लोगों से मिला सभी का कहना था कि यूरोप से आने वाले आर्डर कम होते जा रहे हैं और उससे चीनी निर्यातकों को नुकसान हो रहा है।
दूसरी तरफ चीन यूरोप को निर्यात तो करता है लेकिन यूरोप से बहुत कम चीज़ें आयात करता है और ये आयात निर्यात संतुलन कुछ दिनों में बदलने वाला नहीं है। यूरोपीय देशों में सिर्फ़ जर्मनी चीन के साथ बड़ा व्यापार कर रहा है क्योंकि जर्मनी चीन की गाड़ियों के लिए बड़े पैमाने पर मशीनरी बनाता है।
चीन ने यूरोप में निवेश भी काफ़ी कम किया है। पिछले साल यूरोप में चीन का निवेश एक अरब डॉलर से भी कम रहा है जो कि यूरोप में हो रहे विदेशी निवेश का मात्र एक प्रतिशत है। उधर यूरोप ने चीन में काफी निवेश किया है जो चीन में विदेशी निवेश का पाँच प्रतिशत है।
चीन से बाहर के विशेषज्ञ चीन को भले ही चीन के नेताओं को मज़बूत और उभरती हुई शक्ति के रुप में देखें, चीन ने इस मामले में काफ़ी सावधानी बरती है। राष्ट्रपति हू अगले वर्ष पद छोड़ने वाले हैं और संभव नहीं है कि वो इससे पहले कोई बहुत बड़ा फैसला करें।
पिछले कुछ समय से चीन अपनी अर्थव्यवस्था को धीमा करने की कोशिश में है ताकि महंगाई पर नियंत्रण हो सके। यूरोप को चीन से फ़ायदा सिर्फ़ इसी हालत में हैं कि चीन में यूरोपीय सामान का एक बड़ा बाज़ार बने लेकिन निकट भविष्य में ये इतनी जल्दी होना संभव नहीं दिखता है।
हालांकि पिछले कुछ समय में चीन ने कई बार ग्रीस, पुर्तगाल और इटली को मदद करने की बात कही है लेकिन चीन ने कुछ ख़ास किया नहीं है क्योंकि चीन को संकट के माहौल में निवेश करना शायद खतरनाक लग रहा है।
चीन के पास भारी मात्रा में यूरो है। यूरोप चीन के लिए महत्वपूर्ण भी है इसलिए चीन यूरोप में निवेश तो करेगा लेकिन कोई चीन से ये उम्मीद न करे कि वो दुनिया को बचाने की कोशिश करेगा बल्कि वो यूरोप में निवेश अपने हितों के आधार पर ही करेगा। सोच समझकर करेगा।
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