कानपुर (ब्‍यूरो)। Bird Flu in Kanpur: कानपुर में बर्ड फ्लू का प्रकोप शुरू हो चुका है। हालांकि अभी इससे सिर्फ पक्षियों की की मौत हुई है, लेकिन बर्ड फ्लू जिस वायरस से फैलता है। उसके इंसानी ट्रांसमिशन की भी संभावना रहती है और जान भी जा सकती है। ऐसे में इससे बचाव के सभी जरूरी उपाय करना जरूरी है। बर्ड फ्लू के इंसानों पर असर को लेकर डॉक्टर्स का कहना है कि वैसे तो इसकी संभावना कम है, लेकिन अगर लोगों पर एच5एन1 वायरस का प्रभाव पड़ता भी है, तो उसे मैनेज किया जा सकता है। इसके लिए डरने की जरूरत नहीं है।

इंसानों में कैसे फैलता है?

- पक्षी की बीट या सलाइवा के संपर्क में आने से या हवा (एयरोसोल) के जरिए

इंसानों में लक्षण-

- सर्दी, जुकाम और खांसी आना

- गले में खराश, मसल्स में पेन और सांस लेने में दिक्कत होना

- मल्टी आर्गन फेल्योर भी कई बार

काेरोना जैसी ही सावधानी

- बर्ड फार्म, बर्ड सेंचुरी, किसी जलाशय या झील के पास जाने से बचे

- पक्षी फार्म या सुअर पालन से बचे

- अंडे और मांस को खूब पका कर ही खाएं

- हाथ बार बार साफ करें, किसी सरफेज को छूने के बाद आंख, नाक या चेहरे के पास हाथ ले जाने से बचे, मास्क पहने

इन्हें खतरे की संभावना ज्यादा-

पोल्ट्री फार्म और चिकन का कारोबार करने वाले लोग, बर्ड सेंचुरी या बर्ड्स के बाड़ों की देखरेख करने वाले लोग, उन एरियाज में रहने वाले लोग जहां पंछी ज्यादा आते जाते हैं।

- दो साल से कम उम्र के बच्चे या म्भ् साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग

- प्रेगनेंट महिलाएं या वह महिलाएं जिनकी कुछ दिन पहले ही डिलीवरी हुई है।

  • डायबिटीज, लंग्स डिसीज या किसी क्रोनिक डिसीज से ग्रसित लोगों में

    सबके लिए अलर्ट-

- कहीं पर पक्षी मरा मिले तो उसे न छुएं इसके बारे में कंट्रोल रूम में सूचना दें।

- सर्दी, जुकाम, बुखार के पीडि़तों के संपर्क में न रहें।

- चिडि़याघर के आसपास विशेष सफाई अभियान चलेगा।

- अस्पताल और मेडिकल कॉलेज हाई अलर्ट पर रखे गए।

- सभी निजी अस्पतालों को भी फ्लू ओपीडी के लिए अलर्ट किया गया।

बर्ड फ्लू का इंफेक्शन होने पर काफी हद तक कोरोना जैसे प्रभाव होते हैं। इसका इलाज उपलब्ध है। अगर किसी शख्स में इसके लक्षण दिखते हैं तो उसे आइसोलेशन में रहना चाहिए और पास के अस्पताल में दिखाना चाहिए।

- डॉ। बृजेश कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसिन डिपार्टमेंट

बर्ड फ्लू के इंफेक्शन का प्रभाव भी लंग्स पर ज्यादा पड़ता है। सांस लेने में तकलीफ होती है। इलाज न मिले तो इसका अन्य आर्गन्स पर भी प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में सावधानी बरतना बेहद जरूरी है।

  • डॉ। अवधेश कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, रेस्पेरेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट

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