सुरक्षा परिषद में अभी भी इस बात को लेकर मतभेद हैं कि सीरिया में हो रही हिंसा से किस तरह निपटना चाहिए। अभी तक सुरक्षा परिषद ने इस मामले में एक बयान पर भी राज़ी नहीं हो सका है।
पिछले चार महीने से सीरिया में चल रहे विरोध प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ राष्ट्रपति बशर अल असद ने कड़ी कार्रवाई की है और रविवार को प्रदर्शनकारियों पर टैंकों से हमला किया गया जिसमें सौ से अधिक लोगों के मारे जाने की ख़बर है।
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि सीरिया की सरकार का अपने ही लोगों पर हिंसक बल प्रयोग चकित करने वाला है। तुर्की ने भी रमजान के महीने से पहले सीरिया जैसे इस्लामी देश में हिंसा पर दुःख और निराशा प्रकट की है।
इस समय सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता जर्मनी के पास है लेकिन अगस्त महीने में ये अध्यक्षता भारत को मिलने वाली है। अध्यक्ष देश परिषद में होने वाली बहस का एजेंडा तय करता है।
जर्मनी के एक प्रवक्ता अलेक्जेंडर एबर्ल ने कहा है कि उनका मिसन भारत को इस बात के लिए राज़ी करना है कि सीरिया के मुद्दे पर बंद कमरे में बातचीत का आयोजन करे।
पिछले कुछ समय से ब्रिटेन और फ्रांस समेत कई यूरोपीय देश सीरिया के मुद्दे पर किसी तरह की कार्रवाई या कम से कम इसकी सार्वजनिक निंदा की बात कर रहे हैं।
भारत उन देशों में है जो सीरिया के ख़िलाफ़ किसी मसौदे का समर्थन नहीं कर रहा है। इसके अलावा रुस और चीन ने भी सीरिया की सरकार के ख़िलाफ़ किसी प्रस्ताव को वीटो करने की बात कह दी है।
उधर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान कि मून ने सीरिया के राष्ट्रपति से अपील की है कि वो आम नागरिकों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग बंद करें और जनता की आकांक्षाओं को सुनें।
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