कानपुर (ब्यूरो)। 26 जनवरी 1952 को हमारा संविधान लागू हुआ था। जिसके बाद से हर साल हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 या आजादी से पहले तक 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था। इसकी शुरुआत साल 1930 से हुई थी। 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग की गई लेकिन इसकी आधिकारिक घोषणा 26 जनवरी 1930 को की गई। इसके बाद से ही हर साल 26 जनवरी को इंडिपिडेंस डे के रूप में मनाने की शुरुआत हुई है।
यूथ लीग ने निकाला विशाल जुलूस
26 जनवरी सन 1930 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (कानपुर) के आदेशानुसार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में यूथ लीग ने एक विशाल जुलूस निकाला। जो दोपहर एक बजे सनातन धर्म कॉलेज नवाबगंज से शुरू होकर सारे शहर में घूमता हुआ शाम को 6 बजे श्रद्धानंद पार्क पहुंचा। सभा में पंडित बालकृष्ण शर्मा ने स्वतंत्रता की घोषणा को पढ़ा। बालकृष्ण उन दिनों उन दिनों यूथ लीग के सभापति थे। कानपुर इतिहास समिति के जनरल सेक्रेटरी अनूप शुक्ला बताते हैैं कि 1930 से शुरू हुआ सिलसिला 1947 को आजादी मिलने तक चला।

गिरफ्तारी हुई सजा भी मिली
सन 1934 में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के अवसर उत्सव मनाने के चलते गोपीनाथ सिंह, प्रकाश नारायण सक्सेना और शिवराम पांडे गिरफ्तार किए गए और इनको ढाई वर्ष जेल की सजा भी दी गई। सत्याग्रह के सिलसिले में यह आखिरी गिरफ्तारियां थीं और यह लोग सबसे आखिर में पूरी सजा काटकर जेल से छूटे। गिरफ्तारी के समय प्रकाश नारायण सक्सेना पीटे भी गए, जिससे उनका एक कान हमेशा के लिए खराब हो गया।

1938 में डीएवी मेें फहरा था झंडा
डॉ। जवाहरलाल रोहतगी डीएवी कॉलेज सोसाइटी कानपुर के मंत्री थे। 1938 में डॉ। रोहतगी ने स्टूडेंट्स के साथ मिलकर वहां की लॉन में झंडा फहराया और झंडा प्रार्थना कराकर उनसे राष्ट्रीय प्रतिज्ञा दोहरवाई थी। साल 1939 में स्वतंत्रता दिवस ( 26 जनवरी ) आने से पहले डॉक्टर साहब और स्टूडेंट्स के बीच झंडा फहराने को लेकर मतभेद हो गए.स्टूडेंट्स, कॉलेज के गुंबद पर जहां ओम का झंडा सदा फहरता था वहां पर राष्ट्रीय झंडा फहराना चाहते थे। डॉक्टर रोहतगी का कहना था कि राष्ट्रीय झंडा एक दिन के लिए फहराया जाता है, पिछले वर्ष की भांति उसे मैदान में ही फहराया जाए। लेकिन स्टूडेंट्स नहीं माने और उन्होंने कालेज के गुंबद पर झंडा फहरा दिया। मैनेजिंग कमेटी की ओर से प्रधान बृजेंद्र स्वरूप व मंत्री जवाहरलाल रोहतगी के हस्ताक्षर से विद्यार्थियों को नोटिस जारी किया गया कि अगले रोज 27 जनवरी को झंडा हटा लें।

कुछ ऐसे होता था आयोजन
कानपुर इतिहास समिति के अनूप शुक्ला बताते हैैं कि आजादी से पहले 26 जनवरी को शहर में जश्न मनाया जाता था। कालेजों और मोहल्लों के युवाओं की टोली निकलकर नारे लगाते हुए झंडा लेकर निकलती थी। इसी बीच अंग्रेजी गवर्नमेंट के नुमाइंदे उन पर लाठी डंडे चलाते, अत्याचार करते और गिरफ्तारी करके जेल भेजते थे।