कानपुर (ब्यूरो)। अगर बच्चा नजर मिलाने से कतराए और अकेलापन पसंद करे तो सतर्क हो जाएं और बिना देरी किए उनको पीडियाट्रिक एक्सपर्ट को जरूर दिखाएं। यह आटिज्म के प्राथमिक लक्षण हो सकते हैं, जिसको समय रहते काफी हद तक कम किया जा सकता है। तीन वर्ष की उम्र से ही माता-पिता अगर बच्चे के हाव-भाव को समझने का प्रयास करेंगे तो बच्चों को चलना-फिरना, बोलना, बात करना सिखाया जा सकता है। इ्ससे निश्चित तौर पर उनमें बदलाव आएंगे और उसका जीवन बिना किसी की निर्भरता के व्यतीत हो सकेगा। जीएसवीएम मेडिकल कालेज के पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट में डेली एक से दो केस आ रहे हैं। जिनमें आटिज्म के प्राथमिक लक्षण की संभावना दिखती है।
भारतीय बाल रोग अकादमी के सचिव और जीएसवीएम मेडिकल कालेज के पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट के डॉ। अमितेश यादव ने बताया कि आटिज्म में बच्चे का सोशल जीवन परिवर्तित होता है। इससे ग्रसित बच्चों में देर से चलने, फिरने, उठने-बैठने और बोलने की समस्या अक्सर दिखती है। जिसे स्पीच और फिजियोथेरेपी की मदद से काफी हद तक सही किया जा सकता है। ज्यादातर मामलों में बच्चे पैरेंट्स से आंख मिलाने में कतराते हैं। उन्होंने कहा कि जल्द ही डिपार्टमेंट में ऐसे लक्षणों के साथ आ रहे बच्चों की गतिविधियों पर शोध किया जाएगा।
आईआईटी अर्ली डिटेक्शन की विधि कर चुका विकसित
आटिज्म ग्रसित बच्चों के लिए आईआईटी कानपुर की ओर से साफ्टवेयर आधारित अर्ली डिटेक्शन विधि विकसित की जा चुकी है। जिसका लाभ भी बच्चों को मिल रहा है। इसमें बच्चों की आंखों की हरकत, बातचीत के तरीके और चलने के अंदाज के आधार पर लक्षणों के आकलन के लिए साफ्टवेयर तैयार किया जाता है। साफ्टवेयर पर बच्चे के वीडियो अपलोड कर पैरेंट््स स्वत: ही परीक्षण करते हैं कि बच्चा आटिज्म पीडि़त है या नहीं। आईआईटी के रिसर्च को एशियन जर्नल आफ साइकियाट्री में स्थान मिला है।