ये आंकड़े ब्रिटेन की नियामक संस्था जीएस-1 ने दिए हैं। रविवार, सात अक्तूबर को बार-कोड की 60वीं वर्षगांठ मनाई गई। 1952 में पहली बार अमरीका ने पूरी दुनिया का परिचय बार-कोड से करवाया था।

ये अलग बात है कि बार-कोड यानि ये 'ब्लैक एंड व्हाइट' पट्टी 1974 तक अमरीकी दुकानों तक नहीं पहुंच पाई थी। क्योंकि उस वक्त तक इसे पढ़े जाने के लिए ज़रूरी लेज़र तकनीक अस्तित्व में नहीं आया था।

जीएस-1 के अनुसार क्यू-आर यानी क्विक रिस्पांस कोड तकनीक से लीनियर बार-कोड को कोई खतरा नहीं है। क्यूआर कोड बिंदुओं से बनी एक आकृति होती है जिसमें एक बारकोड से ज्य़ादा जानकारी होती है।

जीएसवन के मुख्य अधिकारी गेरी लिंच के मुताबिक, ''क्यूआर कोड का उद्देश्य अलग है। एक टिन के डिब्बे के कोने में अंकित बारकोड जहां बिक्री से संबंधित जानकारी देता है वहीं एक क्यूआर कोड उपभोक्ताओं को सही कीमत और स्टॉक रिकॉर्ड को लेकर ज्यादा आश्वस्त करता है.''

उनका कहना है कि 'क्यूआर' तकनीक दरअसल एक व्यक्ति को मल्टीमीडिया तकनीक की स्कैनिंग के लिए तैयार करती है। लेकिन अभी इसकी मांग कम है।

बढ़ता दायरा

बारकोड का इस्तेमाल सबसे पहले 1974 मे ओहियो के सुपर मार्केंट में च्यूंइग-गम की स्कैनिंग के लिए किया गया था। हालांकि बार-कोड को अभी भी दुनिया भर में खुलकर अपनाया नहीं किया गया है।

वाइन बनाने वाली कुछ कंपनियों ने अपनी ब्राडिंग की सुंदरता को बनाए रखने का बहाना कर के भी बार-कोड को खारिज कर दिया है। लेकिन अब बार-कोड का दायरा बड़ रहा है।

यहां तक की बार-कोड का इस्तेमाल अब बॉडीआर्ट के तौर पर भी हो रहा है। इसके सबसे लोकप्रिय उदाहरण अमरीकी गायक पिंक हैं जिन्होंने अपने शरीर पर बारकोड की आकृति के टैटूज़ बनवाए हैं।

लिंच का कहना है कि बार-कोड एक प्रतिमान बन चुका है और ये बातें उन्हें काफी खुश करता है। लेकिन अगर उनकी बेटियों में से कोई एक अपने पिता को बार-कोड समर्पित करना चाहेंगी तो इससे वे खुश नहीं होंगे।

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