ट्विटर, फेसबुक और दूसरी सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स के इस्लमात से दुनिया में क्रांति आते हुए देखी गई है और उसका ताज़ा उदाहरण तियूनिस, मिस्र और दूसरे अरब देशों में मिलता है और युवाओं ने इसको हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया।
अरब देशों के लोगों ने तो शासकों से आज़ादी के लिए संघर्ष किया लेकिन बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से आज़ादी के लिए संर्घष कर रहे हैं।
बलूचिस्तान पिछले कई सालों से गंभीर मसलों का सामना कर रहा है और लगातार मानवाधिकारों को उल्लंघन हो रहा है लेकिन पाकिस्तानी मीडिया ने उसको अनदेखा कर दिया है। बलोच नेताओं का कहना है इसका कारण मीडिया पर पाकिस्तानी सेना का बहुत ज़्यादा प्रभाव है।
कुछ साल पहले पाकिस्तान से बाहर लोगों को बलूचिस्तान के मुद्दे के बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी लेकिन अब ब्रिटेन, यूरप, अमरीका और अन्य देशों के नागरिक यह जानते हैं कि बलूचिस्तान में क्या हो रहा है।
'ट्विटर-फेसबुक का कमाल'
ट्विटर और फेसबुक ने इसमें अहम भूमिका अदा कर रहे हैं और विदेश में बैठे बलोच युवा इसका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। लंदन में रह रहे फैज़ मोहम्मद बलोच भी उनमें से एक हैं।
उन्होंने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा, “मैं केवल बलूचिस्तान के बारे में ही टिवीट करता हूँ और ऐसी ख़बरें बाहर की दुनिया को बताते हैं जो पाकिस्तानी मीडिया नज़रअंदाज़ करता है.”
उन्होंने एक ख़बर का उदाहरण देते हुए बताया कि कुछ दिन पहले बलूचिस्तान के ज़िला पंजगूर में पुलिस ने दो युवाओं की हत्या कर दी लेकिन किसी भी पाकिस्तानी चैनल या अखबार ने वह ख़बर नहीं दी।
वे कहते हैं कि एक दौर था जब बलूचिस्तान की उपेक्षा की जाती थी लेकिन अब वह ऐसा नहीं सकते हैं क्योंकि अगर एक सूई भी गायब हो जाती है तो वह ट्विटर पर आत जाती है।
फैज़ कहते हैं, “70 के दशक में सैन्य अभियान में बलूचिस्तान के हज़ारों लोग मारे गए थे लेकिन आज तक किसी को पता नहीं है। आज ट्विटर और फैसबुक पर बलोच युवा पल पल की ख़बरें देते हैं.”
उनके मुताबिक ट्विटर के माध्यम से अमरीका, ब्रिटेन, भारत और अन्य देशों के विदेश मंत्रालयों से संपर्क किया जाता है और उन्हें बलूचिस्तान की स्थिति की विस्तार की जानकारी दी जाती है ताकि पाकिस्तानी सरकार पर दबाव पड़ सके।
उन्होंने कहा, “हम संगठित हो कर किसी एक देश के लिए एक दिन चुनते हैं और लगातार ट्विट करते रहते हैं क्योंकि एक ट्विट से कुछ नहीं होता है और उसको कोई नोटिस नहीं करता है.”
सुहैब बलोच मेंगल लंदन में पढ़ते हैं और वह भी ट्विटर पर काफी एक्टिव हैं। वे कहते हैं कि बलूचिस्तान के उन इलाक़ों में जहाँ सैन्य कार्रवाई हो रही है, वहाँ से जानकारी लेने के लिए मोबाईल फोन और इंटरनेट ने अहम भूमिका निभाई है।
'संगठित हैं बलोच'
उन्होंने कहा, “हमारे लोग हैं जो दूर दराज़ इलाक़ों जैसा कि डेरा बुग्टी, मंद और दूसरे इलाक़ों से लाईव ट्विट कर रहे होते हैं और हमें पल पल की जानकारी देते हैं। ऐसे कई इलाके हैं जहाँ बिजली नहीं है लेकिन वह बैट्री पर मोबाईल चार्ज कर अपना काम कर रहे होते हैं.”
सुहैब मेंगल कहते हैं कि पहले कुछ लोग ट्विटर और फेसबुक थे लेकिन आज उन लोगों की संख्या हज़ारों में है और बड़े संगठित तरीके से अपनी आवाज़ पहुँचाने की कोशिश की है और कामयाबी भी मिली है।
उन्होंने बताया कि ट्विटर और फैसबुक इस्तेमाल करने वाले बलोच युवाओं ने अमरीकी सांसदों को मजबूर किया कि वह बलूचिस्तान की स्थिति पर पाकिस्तान दबाव डालें और एक अमरीकी सांसद ने प्रस्ताव भी पेश कर दिया।
ग़ौरतलब है कि अमरीकी सांसद डेना रोहरबैकर ने कुछ दिन पहले दो अन्य साथियों के साथ संसद में एक प्रस्ताव पेश किया था कि बलोच लोगों को आत्मनिर्णय दिया जाना चाहिए और उन्हें ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच में से चुनने की आज़ादी दी जानी चाहिए।
पाकिस्तानी सरकार ने उस प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने उस प्रस्ताव की निंदा की थी जिसमे कहा गया था कि पाकिस्तान के बलोच लोगों को देश से स्वतंत्र होने का विकल्प दिया जाए।
विदेश मंत्री हिना रब्बानी खर ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और अमरीका को चेतावनी दी थी कि वह पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे।
उन्होंने यह भी कहा था कि अमरीकी संसद का प्रस्ताव बेतुका और अस्वीकार्य है साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि यह प्रस्ताव अमरीका के मौजूदा सरकार की राय नहीं है।
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