कानपुर (ब्यूरो) पदमश्री डॉ.रणधीर सूद ने मोटापे पर काबू पाने व वेट लॉस के लिए आई नई इंटरगैस्ट्रिक बलून टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इसमें इंडोस्कोपी के जरिए पेशेंट के खाने की थैली में एक पालीमर का बलून डाला जाता है। जिसमें 400 एमएल तक स्लायन भर दिया जाता है। इससे हमेशा मोटापे के शिकार शख्स को लगता है कि उसका पेट भरा है। नार्मल बैरियाट्रिक सर्जरी में भी खाने की थैली छोटी की जाती है.इस इंटरवेंशनल प्रोसीजर के जरिए 3 से 6 महीने में 10 से 15 किलो तक वजन कम किया जा सकता है, लेकिन इस बलून को एक साल बाद निकालना पड़ता है। इसके बाद वेट कम करने के लिए दवाओं व डायट कंट्रोल पर फोकस किया जाता है।
महिलाओं में मोटापा ज्यादा
डॉ.सूद ने बताया कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में मोटापे की प्रॉब्लम ज्यादा है। नई इडोस्कोपिक बलूनिंग तकनीक से शुगर कंट्रोल भी बेहतर तरीके से होता है। मौजूदा दौर में मोटापे पर काबू पाने के लिए सबसे सामान्य चीज लाइफ स्टाइल मोडिफिकेशन है। एक्सरसाइज और संतुलित आहार से मोटापे के साथ कई दूसरी प्रॉब्लम्स से बचा जा सकता है।
कोरोना का असर पड़ा पेट पर
हैदराबाद के एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी के डायरेक्टर प्रो.संदीप लखटकिया ने अपने सेशन में इंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड प्रोसीजर्स की नई टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस इंटरवेशनल प्रोसीजर में अल्ट्रासाउंड की वजह से पर्दे के बीच पीछे की भी चीजों जैसे ट््यूमर व गांठ का पता चल जाता है। जिसे उसी दौरान हटाया भी जा सकता है और बायोप्सी के लिए उसका सैंपल भी लिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कोरोना काल में सेकेंड वेव के दौरान कई मरीज ऐसे पहुंचे जिन्हें लीवर में स्वैलिंग, आंतों में प्रॉब्लम थी। कोरोना की वजह से पेट में थ्रंबोलिसिस हो रहा था। जिससे काफी मरीजों की मौत भी हुई। इस सेशन में मुख्य रूप से डॉ.गौरव चावला, आईएमए सेकेट्री डॉ.देवज्योति देबरॉय मौजूद रहे।