एशिया में समृद्धि बढ़ रही है और युवा लोगों के जीने का अंदाज बदल रहा है। इसीलिए वो बीयर के लिए सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ बाज़ार है। बीयर पीने के मामले में एशिया पिछले कुछ वर्षों में ही यूरोप और अमरीका से आगे निकल गया है। एशिया में बीयर सात हजार साल से बनाई जा रही है। वैसे बीयर की प्रति व्यक्ति खपत के हिसाब से देखा जाए तो एशिया अब भी यूरोप से बहुत पीछे है।
'यूरोमॉनिटर' नाम की संस्था के मुताबिक बीयर पीने वाले देशों में चेक रिपब्लिक सबसे आगे है। वर्ष 2011 के आंकड़े बताते हैं कि वहां प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 174 लीटर बीयर की खपत हुई।
इसके बाद आयरलैंड और सात अन्य यूरोपीय देशों का नंबर आता है। इस सूची में जापान इकलौता एशियाई देश है जिसे 41वें स्थान पर रखा गया है। वहां प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 64 लीटर बीयर की खपत थी।
लेकिन अगर कुल खपत की बात करें, तो एशिया ने यूरोप और अमरीका महाद्वीप को वर्ष 2007 में ही पीछे छोड़ दिया। यूरोमॉनिटर के अनुसार वर्ष 2011 में एशिया में 67 अरब लीटर बीयर पी गई। इसी दौरान अमरीका में 57 अरब और यूरोप में 51 अरब लीटर बीयर की खपत हुई।
यूरोमीटर का अनुमान है कि जहां यूरोप, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित क्षेत्रों में आर्थिक मुश्किलों के बीच बीयर पीने वालों की तादात घट सकती है, वहीं 2011 से 2016 के बीच एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बीयर की खपत प्रति वर्ष 4.8 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी।
युवा आबादी और बढ़ती समृद्धि
हाल के वर्षों में कई एशियाई देशों में समृद्धि बढ़ी है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड कंपनी में उपभोक्ता अनुसंधान विश्लेषक निर्गुनन तिरुचेलवम कहते हैं कि मज़बूत आर्थिक विकास के साथ बीयर का सीधा संबंध है। वे कहते हैं, "विकास के दौर में लोग बीयर पीने लगते हैं। जबकि अच्छे और बुरे समय शराब को तरजीह देते हैं."
तिरुचेलवम बताते हैं कि 1930 के दशक में महामंदी के दौरान बीयर की खपत कम हो गई थी, जबकि शराब की खपत पर ज़्यादा असर नहीं पड़ा था।
दुनिया भर में आज बीयर के जबरदस्त प्रचार और मार्केटिंग से भी ये बात साबित होती है। मसलन भारत की किंगफ़िशर बीयर का स्लोगन ही है, "किंग ऑफ़ गुड टाइम्स" यानी 'अच्छे दौर का राजा'।
तिरुचेलवम की मानें तो बीयर को लेकर झुकाव की एक वजह उसका 'फ़िज' या झाग भी हो सकता है। वे कहते हैं, "कोला पेयों में भी ऐसा ही फ़िज़ या झाग होता है। जब लोग मौज कर रहे होते हैं, वे बीयर पीना पसंद करते हैं."
बीयर में भी चीन आगे
चीन की आर्थिक प्रगति ने एशिया की तरफ खास तौर से दुनिया का ध्यान खींचा है। लगभग हर देश में देखा गया है कि एक ख़ास स्तर तक समृद्धि आ जाने के बाद बीयर की बिक्री बढ़ जाती है। चीन में ये दौर 1980 और 90 के दशक में आया और वर्ष 2003 में उसने बीयर के मामले में अमरीका को पीछे छोड़ दिया।
फिलहाल चीन दुनिया का सबसे बड़ा बीयर उत्पादक भी है। वर्ष 2010 में चीन में 44 अरब लीटर, अमरीका में 23 अरब, ब्राज़ील में 12 अरब और रूस में 10 अरब लीटर बीयर का उत्पादन हुआ।
बाज़ार पर नज़र रखने वाली एक संस्था प्लेटो लॉजिक के मुताबिक चीन की 'स्नो' बीयर दुनिया में सबसे ज़्यादा बिकने वाले वाला बीयर ब्रांड है जबकि उसे चीन से बाहर बहुत कम पीया जाता है। इसके अलावा वियतनाम, कंबोडिया और लाओस ऐसे देश समझे जा रहे हैं जहां बीयर की खपत बढ़ने की सबसे ज़्यादा संभावनाएं हैं।
बढ़ता चलन
लेकिन इस चलन को हर कोई अच्छा नहीं मानता। बहुत से लोग बीयर पीने को पश्चिम के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखते हैं। ज़रूरत से ज़्यादा शराब पीने को रोकने के लिए सिंगापुर में 'सिन टैक्स' लगाया जाता है और सार्वजनिक जगहों पर नशे में धुत पाए जाने पर वहां अधिकतम एक हज़ार डॉलर का जुर्माना और एक महीने तक की जेल सज़ा का प्रावधान है।
इसके बावजूद सिंगापुर मेडिकल जर्नल में जुलाई में छपे एक लेख के अनुसार देश में शराब की खपत बहुत तेज़ी से अमरीकी स्तर तक पहुंच रही है और 1992 से 2004 के बीच वहां शराब की खपत दोगुनी हो गई है।
लेकिन इन सब बातों का फिलहाल सिंगापुर के लोगों पर असर पड़ता नज़र नहीं आ रहा है। वहां मंहगी बीयर की मांग बढ़ रही है। सिंगापुर में बीयर पीने वालों के साथ साथ बीयर बनाने वालों की संख्या भी बढ़ रही है।
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