- एटीएस ने हिरासत में लेकर की पूछताछ, जांच पूरी होने तक कानपुर नहीं छोड़ने को कहा
- 24 घंटे में एक बार थाने में उपस्थित दर्ज करानी होगी, एलआईयू, थाना पुलिस रखेगी नजर
kanpur : जाजमऊ, चकेरी, लालबंगला, मछरिया, बेकनगंज और कल्याणपुर समेत शहर के तमाम जगहों से 28 लोगों को एटीएस ने हिरासत में लेकर पूछताछ की। गहन पूछताछ के बाद इनको क्लीन चिट दी जा चुकी है। इन सभी लोगों के आधार कार्ड, परिवार के आधार कार्ड, मोहल्ले के सभासद से देखरेख की जिम्मेदारी का पत्र लिया गया है। साथ ही इन लोगों को वार्निग दी गई है कि जब तक मिनहाज, मसरुद्दीन, शकील, मुस्तकीम और मुहम्मद जैद की रिमांड पूरी नहीं हो जाती, कानपुर छोड़ कर बाहर नहीं जाएंगे। तब तक 24 घंटे में एक बार संबंधित थाने में जाकर अपनी उपस्थित दर्ज करानी होगी। इस दौरान ये सभी लोग एलआईयू की निगरानी में रहेंगे। पूछताछ के लिए ले जाए जाने वालों में दो प्रोफेसर, दो बिल्डर, मोबाइल सिम विक्रेता और मिनहाज और मसरुद्दीन से जुड़े लोग थे।
बढ़ता जा रहा जांच का दायरा
लखनऊ से पकड़े गए अलकायदा के आतंकी मिनहाज और उसके साथियों के तार कई शहरों से जुड़े हैं। कानपुर, गाजियाबाद व मुजफ्फरनगर समेत अन्य जिलों से असलहे खरीदने की बात सामने आने के बाद कई टीमों को एक्टिव किया गया है। कई असलहा तस्कर भी एटीएस की निगाह में हैं। आतंकियों को अब कई स्थानों पर ले जाने की तैयारी है। दरअसल लगातार पूछताछ में नए नए तथ्य सामने आ रहे हैं। सभी से अलग-अलग पूछताछ करने के बाद क्रास चेकिंग की तर्ज पर इन्हें आमने सामने लाकर बयानों की समीक्षा की जा रही है।
छोटे जिलों में भी आतंकी
आतंकवादी संगठनों की नजर छोटे शहरों पर भी है। धर्मातरण का मामला हो या आतंकवादियों की गिरफ्तारी, दोनों ही में फतेहपुर व औरैया का जिक्र आया। उन्नाव में भी आतंकी दस्तक तेजी से बढ़ने की सूचना है। दरअसल छोटे जिलों में गरीब मजबूर लोग आसानी से इनके बहकावे में आ जाते हैं। पहले उन्हें अपने संपर्क में रहने वालों से काम दिलवाते हैं, इसमें स्लीपर सेल्स अपने काम को बाखूबी अंजाम देते हैं। इसके बाद इन्हें धर्म से संबंधित वीडियो दिखा कर आतंक में शामिल कर लेते हैं।
धर्म की राह पर चलते चलते
एटीएस सूत्रों के मुताबिक संगठन में शामिल किए गए लोगों को पहले धर्म की राह पर चलाया जाता है। उसके बाद उनका ब्रेन वॉश कर संगठन में शामिल कर लिया जाता है। इन लोगों को इसकी जानकारी तब होती है जब उन्हें कोई टारगेट सौंपा जाता है। इस टारगेट को पूरा करते ही इसे सीमा पार ट्रेनिंग के लिए भेज दिया जाता है। वहां से लौटने के बाद सदस्य स्लीपर सेल बन जाता है। यही स्लीपर सेल संगठन के छोटे-छोटे काम करते हुए एक दिन बड़ा काम करके सुरक्षा एजेंसियों की नजर में आ जाता है। तब इसे बड़ा आतंकी कहा जाने लगता है। मेडल के रूप में कमाण्डर, सब कमाण्डर और कमाण्डर इन चीफ का तमगा देकर इनकी जिम्मेदारी बढ़ा दी जाती है।
करा दी जाती है हत्या
ट्रेनिंग के दौरान ये बताया जाता है कि चाहे जो भी हो जाए, लेकिन अपनी और संगठन की पहचान छिपा कर रखनी है। अगर पहचान सामने आ जाए तो काम न होने पर सदस्य का स्थान परिवर्तन कर दिया जाता है। काम न होने पर उसे ठिकाने लगा दिया जाता है या सुरक्षा एजेंसियों को उनका इनपुट दे दिया जाता है। जिससे उसकी गिरफ्तारी हो जाती है। संगठन की ज्यादा जानकारी होने पर संगठन उनकी हत्या भी करा देता है।