कानपुर (ब्यूरो)। जिस डिस्ट्रिक की पहचान लेदर के प्रोडक्ट से है। जहां साल में लेदर की दम पर 6500 करोड़ का बिजनेस होता है। विदेशी मुद्रा भंडारण में अहम योगदान देता हो। उसी शहर में गवर्नमेंट लेदर इंस्टीट्यूट (जीएलआई) में टेनरी की मशीनें खराब पड़ी है। बरसों से टेनरी में ताला बंद है। आलम यह है कि टेनरी के चैनल में मकड़ी ने जाला बना लिया है। ऐसे में यहां लेदर सिटी में लेदर बनाना सिख रहे स्टूडेंट्स को किस तरह से जानवर की खाल से लेदर बनाने में परफेक्ट किया जा रहा है। यह एक बड़ा सवाल है। बिना टेनरी के लेदर बनाने की ट्रेनिंग दिया जाना स्टूडेंट्स के साथ में धोखा है। बताते चलें कि प्रदेश में केवल दो जीएलआई है, जिसमें एक कानपुर और दूसरा आगरा में है।
टेक्निकल एजूकेशन डिपार्टमेंट
सूटरगंज वीआईपी रोड में साल 1916 के अक्टूबर महीने में जीएलआई की स्थापना की गई थी। यह टेक्निकल एजूकेशन डिपार्टमेंट यूपी से एफिलिएटेड है। यहां तीन डिप्लोमा कोर्स चलते है। सभी में 75-75 सीटें है
ऐसे बनता है खाल से लेदर
जानवर की खाल से लेदर बनाने के लिए खाल को गीला करके डस्ट, ब्लड और साल्ट को अलग किया जाता है। इसे सोकिंग प्रोसेस कहते है। इसके बाद केमिकल प्रोसेस से खाल से बालों को हटाया जाता है। इसे लाइमिंग कहते है। इस प्रोसेस के बाद पैल्ड बन जाती है उसके बाद पिगलिंग, क्रोम टेनिंग, बेसिफिकेशन प्रोसेस होता है। यह सभी प्रोसेस ड्रम में होते है। इसके बाद मैकेनिकल आपरेशन स्टार्ट होता है, जिसमें सेमिंग, स्पिलिटिंग, सेविंग, वेड बैक, क्रोमिंग, फिनिशिंग, बफिंग, स्नफिंग, आटो स्प्रे, हाइड्रोलिक प्रेस, रोलर कोटर और मेजरिंग मशीन से प्रोसेस के बाद लेदर रेडी होता है।
जीएलआई की टेनरी का यह है हाल
जीएलआई कैंपस में एकेडमिक बिल्डिंग के पीछे की ओर टेनरी है। पड़ताल के दौरान टेनरी के चैनल पर ताला और मकड़ी का जाला मिला। अंदर रखी मशीनों पर मिट्टï जमा और जंग लगी थी। इंस्टीट्यूट ने टेनरी की 90 परसेंट मशीनों को निष्प्रयोज डिक्लियर कर दिया है। वहीं आटो स्प्रे और हाइड्रोलिक प्रेस समेत कई माडर्न मशीनें यहां की टेनरी में नहीं है
सेकेंड सेमेस्टर से शुरू होती ट्रेनिंग
जीएलआई से डिप्लोमा इन लेदर टेक्नोलॉजी (टेनिंग) की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को सेकेंड सेमेस्टर से टेनरी में ट्रेनिंग दी जाने लगती है। टीचर्स का कहना है कि इंस्टीट्यूट की टेनरी की दशा खराब होने के चलते स्टूडेंट्स को जाजमऊ की टेनरियों में ले जाकर ट्रेनिंग दिलाई जाती है। तीन साल वाले इस डिप्लोमा कोर्स के पहले साल में 61, दूसरे साल में 34 और तीसरे साल में 43 स्टूडेंट पढ़ाई कर रहे है। कोर्स में टोटल इंटेक 75 है
जीएलआई में चलने वाले कोर्स
डिप्लोमा इन लेदर टेक्नोलॉजी (टेनिंग) - खाल से लेदर बनाना
डिप्लोमा इन लेदर टेक्नोलॉजी (फुटवियर) - लेदर से प्रोडक्ट बनाना
पीजी डिप्लोमा इन एकाउंटेंसी - एकाउंटिंग का कोर्स
नोट - जीएलआई में एडमिशन के लिए जेईईसीयूपी का फार्म भरकर एंट्रेस एग्जाम देना होता है। डिप्लोमा कोर्स में 10वीं और पीजी डिप्लोमा कोर्स में ग्रेजुएट को एडमिशन मिलता है।
इसके बारे में आइडिया नहीं है। प्रिंसिपल के द्वारा भेजा गया लेटर भी मेरी नॉलेज में नहीं है। प्रिंसिपल से पूरी बात समझकर टेनरी को अपडेट कराया जाएगा। स्टूडेंट्स की एजूकेशन और ट्रेनिंग हमारी प्रियारिटी में है।
के राम, डायरेक्टर टेक्निकल एजूकेशन, यूपी
मशीनों के निष्प्रयोज होने और नई मशीनों को लगवाने के लिए टेक्निकल एजूकेशन डायरेक्ट्रेट में लेटर लिखा जा चुका है। हम स्टूडेंट्स को जाजमऊ स्थित टेनरियों में ट्रेनिंग के लिए भेजते हैैं। किसी भी स्टूडेंट की ट्रेनिंग अधूरी नहीं रहती है।
डॉ। ऋचा, प्रिंसिपल, जीएलआई
एलुमिनाई एसोसिशन स्टूडेंट्स को प्लेसमेंट दिलाने में योगदान देती है। इसके अलावा स्टूडेंट्स को 5-6 के ग्रुप में टेनरियों में लेकर जाया जाता है। जीएलआई में भी टेनरी को अपडेट होना चाहिए।
संदीप शुक्ला, कोषाध्यक्ष, जीएलआई एलुमिनाई एसोसिएशन