कानपुर(ब्यूरो)। यूक्रेन पर रूस के हमले के दसवें दिन भी हालात ज्यादा नहीं बदले। इस बीच वहां फंसे कानपुर के पांच मेडिकल स्टूडेंट अपने वतन पहुंच गए। कुछ स्टूडेंट्स ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से दहशत भरे वो पल भी साझा किए। कई दिनों से भूखे-प्यासे कडक़ड़ाती ठंड में सफर के कारण थकान इतनी ज्यादा कि सोने के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा, लेकिन वतन की मिट्टïी की खुशबू और अपनों के प्यार को देख थकान काफूर हो गई। मौत के मुंह से बचकर आए स्टूडेंट््स को देखकर घरवाले बेहद खुश हैं। इसी बीच ओडेसा यूनीवर्सिटी ने रिजल्ट भी जारी कर दिया। पास होने की खुशी ने उत्साह दूना कर दिया।

आंखों से देखी फायरिंग तो दहल उठे
नौबस्ता निवासी डॉ। पीएस राजपूत का बेटा संकेत राजपूत ओडेसा मेडिकल यूनीवर्सिटी में फिफ्थ इयर के स्टूडेंट हैैं। संकेत सैटरडे सुबह चार बजे कानपुर पहुंचे हैैं। उनके कानपुर आते ही उनकी यूनीवर्सिटी के मैनेजमेंट ने न सिर्फ उनके पास होने की जानकारी दी। साथ ही ऑनलाइन क्लास भी अटेंड करने को कहा गया। संकेत ने बताया कि 26 फरवरी से ओडेसा में वार की जानकारी हुई। एक बार तो वह बॉलकनी में खड़े थे, तभी सामने शेलिंग हो रही थी। इसके बाद सभी को बंकर में जाने को कहा गया। अब लगा कि कैसे भी घर निकलना चाहिए। 28 फरवरी को 200 बच्चों के साथ उजूक्रत रवाना हुए। कांट्रैक्टर कुलमीत ने पांच गुना पैसा लिया और हंगरी बॉर्डर तक पहुंच गए। एक मार्च की रात सात घंटे में बार्डर पार किया। इसके बाद ट्रेन से बुडापेस्ट और उसके बाद एम्बेसी आए। फ्राइडे सुबह गाजियाबाद के हिंडन एयरपोर्ट पहुंचे और वहां से यूपी सरकार की गाड़ी से कानपुर आए।

खेतों में लेटकर बचाई जान
ओडेसा नेशनल मेडिकल यूनीवर्सिटी के फोर्थ इयर के स्टूडेंट विपुल सिंह ने बताया कि वार की आहट तो जनवरी से शुरू हो गई थी। लेकिन, सोचा नहीं था कि इतनी जल्दी हालात बिगड़ जाएंगे। 24 फरवरी की रात ढाई बजे तक इंडिया पहुंचने को टिकट तलाशते रहे। 25 फरवरी की शाम ब्लास्ट होने से दहशत बढ़ गई। 26 की शाम तक खाने-पीने का सामान और कैश कलेक्ट करता रहा। 27 फरवरी को निकलकर 120 किलोमीटर दूर मालदोवा बॉर्डर पहुंचे। 3 दिन यहां स्टे किया। इसके बाद स्कुलेनी बॉर्डर पर भेजा गया। 4 फरवरी की रात फ्लाइट मिली और दिल्ली आ गए। विपुल सिंह ने बताया कि बॉर्डर पर लगातार फायरिंग हो रही थी। एयर अटैक के सायरन बज रहे थे। उस पर नाइजीरियन और दूसरे देशों के लोगों का उपद्रव बेहद परेशान करने वाला था। कई बार दीवार से चिपक कर और खेतों में लेटकर जान बचाई। कितनी मुसीबत से बॉर्डर क्रॉस हुआ, हम ही जानते हैैं।


पेरेंट्स मिलते ही छलक गईं सृष्टि की आंखें
कल्याणपुर के अम्बेडकर नगर निवासी अमरेंद्र यादव की बेटी सृष्टि यादव भी सैटरडे सुबह दिल्ली पहुंच गईं। उनके पैरेंट्स ने उन्हेें दिल्ली एयरपोर्ट पर रिसीव किया। पैरेंट्स को एक साथ देखकर सृष्टि की आंखों में खुशी के आंसू छलक गए। इसके बाद शताब्दी एक्सप्रेस से देर शाम सृष्टि शहर पहुंचीं। सृष्टि पोलैैंड बॉर्डर से दिल्ली की फ्लाइट में सवार हुई थीं।