कानपुर (ब्यूरो) उन्होंने कहा कि अपने देश में युद्ध में रस संस्कृति रही होगी, क्योंकि युद्ध में वादन किया गया है, इतिहास में ऐसे उल्लेख मिलते हैं। विभिन्न वाद्यों के नाम भी आते हैं। लेकिन वो परंपरा विलुप्त हो गई। भारतीय परिवेश की परम्परा आज के युग में फिर से जीवित हो गई है। भारतीय संगीत पुरातन काल से चलता आ रहा है। स्वयंसेवकों के वादन में संगीत की दृष्टि से कोई कमी नहीं होती।
80 प्रतिशत लोग अच्छा बनना चाहते हैं
जो कार्यक्रम सुना, जो संगीत के विशेषज्ञ नहीं हैं, उनको भी अच्छा लगा। संगीत के असली समीक्षक श्रोता होते हैं, जिन्होंने सुना उनको अच्छा लगा, तो राग आ गया। हमारे स्वयंसेवक उत्कृष्ट करते हैं, क्योंकि इससे देशभक्ति का भाव बनता है। 10 प्रतिशत लोग दुष्ट होते हैं। 10 प्रतिशत ही संत समान होते हैं। 80 प्रतिशत लोग अच्छा बनना चाहते हैं, वो देख कर अच्छा बनते हैं।
परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता
जो वादन सीखने आए हैं, इनमें पहली बार सीखने वाले भी हैं। आज जो प्रदर्शन हुआ, वह अच्छा था लेकिन यदि मौसम खराब नहीं होता और यह प्रदर्शन मैदान में रहता, तो और अच्छा लगता। मिलकर जो परिश्रम किया है, वो कभी व्यर्थ नहीं जाएगा। इसके परिणाम जरूर होंगे। समाज के लिये संगठन करना है। रोज की संस्कार साधना पुरुषों के लिए संघ में और महिलाओं के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति में होती है। समाज के काम में दोनों मिलकर कार्य करते हैं।
संघ प्रमुख के सामने कला का प्रदर्शन
इस शिविर में आये हुए प्रतिभागियों में से चयनित घोष वादकों ने डॉ। मोहन भागवत जी के समक्ष हॉल में अपनी कला का प्रदर्शन भी किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से क्षेत्र संघचालक वीरेंद्रजीत सिंह, क्षेत्र प्रचारक अनिल जी, प्रांत संघचालक ज्ञानेंद्र सचान, प्रांत प्रचारक श्रीराम जी, सह प्रांत प्रचारक रमेशजी, सह प्रांत कार्यवाह भवानी भीख, प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ। अनुपम आदि मौजूद रहे।
बारिश के चलते कार्यक्रम हुए निरस्त
संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख अनुपम मिश्र ने बताया कि 6 अक्टूबर से शुरू हुआ स्वर संगम को बारिश के चलते सीमित किया गया है। खुले मैदान में होने वाले कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए। स्वयंसेवकों को एक हाल में बुलाकर संघ प्रमुख का उद्बोधन करा दिया गया। 10 अक्टूबर को संघ परिवार के सदस्यों के बीच संघ प्रमुख का उद्बोधन होना था। इसके लिए एक हजार करीब आमंत्रण पत्र वितरित किए गए थे।