पिछले साल दो मई को अल कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद पाकिस्तानी सरकार और उसकी खुफिया एजेंसियों के कामकाज पर कई सवाल उठे थे।

सबसे बड़ा सवाल यह था कि इतनी बड़ी सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया एजेंसियों की सतर्कता के बीच कैसे अमरीकी सैनिक ऐबटाबाद पहुँचे और दुनिया के सबसे वंछित व्यक्ति ओसामा बिन लादेन को मार कर बाहिफाजत वापस चले गए?

उस घटना के बाद सरकार और सेना के बीच संबंधों में तनाव पदा हुआ और दूसरी ओर विपक्षी दलों ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया। बाद में सरकार ने 21 जून 2011 को उस घटना की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायधीश जस्टिस जावेद इकबाल की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग का गठन किया।

पचीस बैठकें

इस जाँच आयोग की 25 से ज्यादा बैठकें हो चुकी हैं, जिसमें सैन्य और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों सहित कुछ राजनीतिक नेताओं को भी तलब किया गया।

बताया जाता है कि इस जाँच आयोग ने सौ से अधिक लोगों के इंटरव्यू किए और बयान रिकॉर्ड किए लेकिन अभी तक आयोग उस नतीजे पर नहीं पहुँच सका कि अमरीकी सैनिकों की कार्रवाई में मरने वाला व्यक्ति ओसामा बिन लादेन ही था।

आयोग ने ओसामा बिन लादेन की विधवाओं और अन्य लोगों से भी पूछताछ की उससे भी किसी अंतिम नतीजे पर पहुँचने में सफलता नहीं मिली है।

सिंध पुलिस के पूर्व प्रमुख अफजल शिगरी का कहना है, "अगर सेना और अन्य संस्थानों की चूक सामने आती है तो उसका यह मतलब नहीं है कि कोई संस्थान इसमें लिप्त है। आयोग की ओर पेश किए गए प्रस्तावों पर अमल करना बहुत जरुरी है."

उनके मुताबिक लोगो को यह बात भी संदेह में डाल देती है कि इस आयोग के प्रस्तावों पर अमल करना तो दूर की बात लेकिन इसको सर्वजानिक भी नहीं किया जा सका है।

कैसे आजादी से घूमते रहे ओसामा?

आमतौर पर ऐसी घटनाओं में पुलिस अधिकारियों के व्यापक स्तर पर तबादले होते हैं लेकिन ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद ऐबटाबाद पुलिस ने अगर कार्रवाई की तो केवल एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का ताबदला कर दिया गया।

आयोग के प्रमुख जस्टिस जावेद इकबाल का कहना है कि आयोग ने पिछले साल के अंत कर अपनी रिपोर्ट पेश करनी थी लेकिन इस समय चार महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद भी आयोग अपनी रिपोर्ट पूरी नहीं कर सका है।

ख़बरे हैं कि आयोग अपने प्रस्ताव लिखने में व्यस्त है जबकि सैन्य सूत्रों का कहना है कि दो मई की घटना से संबधित कथित मेमो के सामने आने के बाद आयोग के प्रस्ताव को अंतिम रुप देने में दिक्कतें हो रही हैं।

ऐसे में ओसामा बिन लादेन की छोटी विधवा बयान भी आया है कि उनके पति 9/11 के हमलों के बाद पाकिस्तान के विभिन्न इलाकों में रहे।

इस बयान ने भी आयोग को मुश्किल में डाल दिया है कि इसकी जिम्मेदारी किस संस्थान पर लगाई जाए कि दुनिया सबसे वंछित व्यक्ति कैसे पाकिस्तान में आजादी से घूमता रहा और खुफिया एजेंसियों को पता क्यों नहीं था। आयोग अभी तक इन अहम मुद्दों पर किसी परिणाम तक नहीं पहुँच सका है।

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